Personal Reflections on Practice

आनंदशाला के जतन से विद्यालय के बदलाव का सफ़र

हम सभी जानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में लड़का-लड़की हमेशा अलग-अलग बैठते हैं , अलग–अलग खेलते है साथ में गतिविधि कराना एक चुनौती रहती है। एक दिन एक विद्यालय में गया तो मेरी आँखे खुली की खुली रह गई, काफी मित्रतापूर्ण व्यवहार से पंचमी वर्ग की लड़की–लड़का मिलकर फुटबॉल खेल रहे थे । बच्चों को हम कैसी शिक्षा एवं वातावरण देते है इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। चुनौतियों को हल करने के लिए उसके कैरेक्टर को महसूस करते हुए चुनौतियों की तह तक जाना और कैरेक्टर की बातों को महत्त्व देते हुए अपनी बातों को रखने पर व्यक्ति को समझाना सरल हो जाता है ।

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Practice Insights Personal Reflections on Practice

आनंदशाला के जतन से विद्यालय के बदलाव का सफ़र

लेख: सुनील कुमार
संपादन: गुरबचन सिंह

हम सभी जानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में लड़का-लड़की हमेशा अलग-अलग बैठते हैं , अलग–अलग खेलते है साथ में गतिविधि कराना एक चुनौती रहती है। एक दिन एक विद्यालय में गया तो मेरी आँखे खुली की खुली रह गई, काफी मित्रतापूर्ण व्यवहार से पंचमी वर्ग की लड़की–लड़का मिलकर फुटबॉल खेल रहे थे । बच्चों को हम कैसी शिक्षा एवं वातावरण देते है इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। चुनौतियों को हल करने के लिए उसके कैरेक्टर को महसूस करते हुए चुनौतियों की तह तक जाना और कैरेक्टर की बातों को महत्त्व देते हुए अपनी बातों को रखने पर व्यक्ति को समझाना सरल हो जाता है ।

शुरूआत

जिस प्रकार लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़ कर एक बड़ी जंजीर बन जाती है और उससे अनेक कार्य करना सरल हो जाते हैं । उसी तरह आनंदशाला में मेरी कार्यशैली की रूपरेखा को देखें तो इस कार्यक्रम में विद्यालय और ब्लॉक स्तर पर जितने हितधारक है, उनको जोड़ कर जंजीर बनाने का कार्य किया है। 2012 से 2018 तक अपनाई गई कार्यशैली के मुख्य बिन्दुओं को देखें तो इस प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी।

समस्तीपुर में Quest Alliance और क्रिएटिव एसोसिएट की साझेदारी में शुरू हुए School Dropout Prevention Pilot Program में मेरी यात्रा प्रोग्राम ऑफिसर के रूप में शुरू होती है ।इस कार्यक्रम के लिए पहले किए गए अध्ययन से यह निकल कर आया था कि भारत के विद्यालयों में बच्चों का छीजन वर्ग पंचम से बहुत अधिक में होता है। जब बिहार में जिलों के स्तर पर देखा गया तो पाया कि दो जिलों शिवहर और समस्तीपुर में छीजन अधिक होता है। शिवहर जिला कार्य करने के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं पाया गया तब समस्तीपुर जिले में अनुसंधान कार्य शुरू किया गया। इस अनुसंधान से यह जानकारी हासिल करना थी कि ऐसा क्या किया जाए जिससे छीजन कम हो सके। पूर्ण संकेत प्रणाली, समृद्धि वर्धक और समुदाय का जुड़ाव जैसे घटकों को केंद्र में रखकर इस रिसर्च की शुरूआत की गई । मैं इसके अंतर्गत ब्लॉक में विद्यालय स्तर पर समुदाय चैंपियन की चयन प्रक्रिया और उनके आयोजित किए जाने वाले उन्मुखीकरण अथवा प्रशिक्षण कार्यक्रम की सभी प्रक्रियाओं में शामिल रहा । समुदाय चैंपियन के साथ कार्य करना भी चुनौतीपूर्ण रहा है क्योंकि इनको बच्चों, शिक्षक एवं समुदाय के साथ कार्य करने का पहला मौका मिला था। मेरी पहल इनके साथ मिलकर कार्य करना एवं हमेशा प्रेरित और प्रोत्साहित करना रही है जिससे समुदाय चैंपियन के आत्मविश्वास को मजबूती मिल सके । कार्यक्रम के प्रति खुद की समझ विकसित कर विद्यालय के शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों को प्रशिक्षण देना एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य रहा है । मैंने कार्यक्रम को विद्यालय स्तर पर लागू करने में एक मेंटर की भूमिका निभायी है ।विद्यालय एवं समुदाय में जाकर कार्यक्रम की गतिविधियों ( लक्षित छात्र की पहचान, बच्चे की ट्रैकिंग, छात्र प्रबंधन, समुदाय से जुड़ाव, समृद्धिवर्धक कार्यक्रम- बच्चों के लिए विषय आधारित कला-कृति एवं खेल ) को खुद करके समुदाय चैंपियन एवं शिक्षकों को उदाहरण के रूप में डेमो अर्थात प्रदर्शन के साथ मदद करना जिससे कि समुदाय चैंपियन एवं शिक्षकों के लिए कार्य की समझ विकसित हो और वे इसे सरलता से कर सकें।

समय-समय पर बैठक कर अवलोकन करना कि क्या कार्यक्रम के लिए तय उद्देश्य की ओर बढ़ रहे हैं या नहीं ! कार्यक्रम की समझ विकसित करने के साथ-साथ चुनौतियों को भी समझना और उन चुनौतियों का हल भी किया है ।

चुनौती से परिवर्तन तक

एक उदाहरण : “ एक बार की बात है कि पटोरी प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय तारा धमौन डीह से समुदाय चैंपियन, अमर कुमार और पुनीता कुमारी, का फोन आया कि समुदाय का एक व्यक्ति दर्जन राय विद्यालय में धारदार हसुआ लेकर आया है और समृद्धि वर्धक कार्यक्रम नहीं करने दे रहा है और कह रहा है कि कल से विद्यालय पर फालतू चीज बंद करना होगा । विद्यालय में उसकी पोती भी सातवीं कक्षा में पढ़ती है । मैं तुरंत विद्यालय में गया और दर्जन राय से मिला ।मैंने समझने का प्रयास किया कि क्यों मना कर रहे है । बातचीत के दौरान यह निकल कर आया कि इन्हें अपने पोती से ज्ञात हुआ है कि विद्यालय में बच्चों से पेंटिंग कराते है, गाना गाते है, नाचते है , बहुत मजा आता है ।दर्जन राय को लगा की विद्यालय में पढ़ाई होती ही नहीं है , शिक्षक बच्चों का समय बर्बाद करते हैं, पढ़ाते नहीं हैं । हमने उन्हें बताया कि ‘यह कार्यक्रम क्या है, इसका उद्देश्य क्या है , समृद्धिवर्धक गतिविधि से किस तरह उनकी पोती को लाभ मिल सकता है और सीखने सिखाने की प्रक्रिया में बच्चों की बौद्धिक और मानसिक क्षमता विकसित होता है । खुद निर्णय लेना, झिझक टूटना एवं सही-गलत का अवलोकन करने की क्षमता का विकास होता है ।जब इस सब बातों के बारे में दर्जन राय की समझ बनी तो उसने कहा ‘हम इस तरह की गतिविधि कभी देखे ही नहीं, इससे इतना कुछ बच्चे में विकसित हो सकता है कभी सोचे ही नहीं । यह तो बहुत ही अच्छी चीज है इसको करने में कोई भी बाधा नहीं आने देंगे और इसको होने में सहयोग करेंगे’ |”

बदलाव की हवा चलने लगी

हम सभी जानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में लड़का-लड़की हमेशा अलग-अलग बैठते हैं , अलग–अलग खेलते है, उनके बीच साथ में गतिविधि कराना एक चुनौती रहती है। एक दिन एक विद्यालय में गया तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं, काफी मित्रतापूर्ण व्यवहार से पंचमी वर्ग की लड़की–लड़का मिलकर फुटबॉल खेल रहे थे । यह सब हम बच्चों को कैसी शिक्षा एवं वातावरण देते है इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। चुनौतियों को हल करने के लिए उसके कैरेक्टर को महसूस करते हुए चुनौतियों की तह तक जाना और कैरेक्टर की बातों को महत्त्व देते हुए अपनी बातों को रखने पर व्यक्ति को समझाना सरल हो जाता है ।

अनुसंधान से मिली कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी

अनुसंधान का कार्यक्रम 2015 में समाप्त हुआ ।इससे यह समझ बनी कि विद्यालय में समृद्धिवर्धक जैसी गतिविधियाँ हों । शिक्षक बच्चों को समझें और बच्चों की समस्या के अनुसार उन्हें सहयोग दें तो विद्यालय में बच्चों का ठहराव हो सकता है । इस तरह बच्चों की उपस्थिति एवं उपलब्धि में बढ़ोतरी देखी गयी और विशेष रूप से शिक्षकों के व्यवहार में काफी परिवर्तन देखा गया ।

कार्यक्रम के बाद भी समुदाय चैंपियन बने रहे चैंपियन

समुदाय चैंपियन को बच्चों एवं अभिभावकों के साथ कार्य का एक अलग ही अनुभव हुआ है ।इस कार्यक्रम में समुदाय चैंपियन के जीवन कौशल का विकास हुआ है । आज की तारीख में कुछ समुदाय चैंपियन अपना व्यवसाय कर रहे है और कुछ विद्यालय के शिक्षक बन गए है । ‘विकास कुमार ने बातचीत के दौरान साझा किया कि हमारे लिए बच्चों एवं समुदाय के साथ कार्य करना सरल होता है क्योंकि यह सब अनुभव स्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंशन प्रोग्राम (SDPP) में कार्य करने से आया है जैसे बच्चों को समझना, इन्हें समस्या के अनुरूप सहयोग देना, समृद्धि वर्धक गतिविधि के माध्यम से बच्चों का मन लगाना आदि। इसी के साथ बच्चों , शिक्षक एवं अभिभावक से किस प्रकार का वार्तालाप किया जाता है , अभिभावक बैठक का आयोजन और समुदाय को शिक्षा के प्रति प्रेरित करना आदि सीखा है । आज इसका उपयोग अपने काम करने के तरीकों में करता हूँ’

प्रोजेक्ट से प्रोग्राम का सफ़र

कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार इतने सारे ह्यूमन रिसोर्स को आगे लेकर नहीं जाना चाहती थी ।विद्यालय स्तर पर जो सरकारी हितधारक हैं उनको कैसे इस उद्देश्य के साथ जोड़कर आगे ले जा सकते हैं और सरकारी कार्यक्रम के साथ इस कार्यक्रम को कैसे जोड़ सकते हैं , इसका रिव्यु और दस्तावेजीकरण किया गया । आनंदशाला में तीन स्तरीय ( 1. छात्रों का जुड़ाव 2. समृद्धि वर्धक कार्यक्रम 3. अभिभावक का जुड़ाव ) प्रक्रिया को निर्धारित किया गया, जिसमें छात्रों को अच्छी तरह समझने और उसी के अनुरूप सहायता देना जिससे हर बच्चा स्कूल में ठहरे, स्कूल से जुड़े और स्कूल में सीखे ताकि विद्यालय से बच्चों का छीजन न हो सके, आदि शामिल हैं । सिस्टम स्तर से चेंज लीडर, रिकाग्निशन और तकनीकी एवं विद्यालय स्तर पर पूर्व संकेत प्रणाली (छात्रों की पहचान, छात्रों की ट्रैकिंग और प्रतिक्रिया रणनीति), समुदाय के साथ जुड़ाव और समृद्धि वर्धक कार्यक्रम को लेकर कार्य करने की रूपरेखा तैयार की गई । सिस्टम

स्तर से उत्तरदायी शिक्षा प्रणाली और विद्यालय स्तर से समावेशी शिक्षा प्रणाली लागू की गई जिससे आनंददायी सीखने का माहौल का निर्माण हो सके ।

आनंदशाला : टूल किट और मैं

मैं आनंदशाला टूल किट विकसित करने के लिए थीमेटिक समूह का सदस्य बना ।जिसमें पूर्ण संकेत प्रणाली की लक्षित छात्र की प्रक्रिया पर विशेष रूप से कार्य करने का मौका मिला ।लक्षित छात्र की प्रक्रिया में छह मापदंड (उपस्थिति, विषय में उपलब्धि, व्यवहार, अभिभावक की साक्षरता, कार्य का बोझ, विद्यालय से जल्दी चले जाना) को लेकर शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों एवं हितधारकों से प्रतिक्रिया लेकर विद्यालय की मौजूदा प्रणाली के साथ जोड़ते हुए केवल तीन मानदंड (उपस्थिति, विषय में उपलब्धि और कक्षा में सहभागिता) बनाए गए जिससे कि शिक्षक इस प्रक्रिया को सरलता के साथ अपना सकें ।स्कूल मैन्युअल विकसित करने में मेरी अहम भूमिका रही है ।अन्य टूलकिट जैसे- प्रधानाध्यापक डायरी, संकुल समन्वयक डायरी, कलैंडर के निर्माण में भी सहभागी रहा हूँ ।

20 प्रखंड के लगभग 1000 मध्य विद्यालयों को सहयोग दे पाने में भी एक चुनौती हो रही थी ।मुझे लग रहा था की मैं घोड़े को लग्घी से घास खिला रहा हूँ, लेकिन इतने दिनों से जुड़े रहने से एक तरफ आत्मबल भी मिल रहा था कि प्रक्रिया में विश्वास रखना है ।संकुल समन्वयक के साथ मिल कर प्रखंड स्तर पर विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों / शिक्षकों को उन्मुखीकरण / प्रशिक्षण दिया । प्रखंड स्तर पर साधनसेवी, संकुल समन्वयक एवं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के साथ मिलकर योजना बनाना कि विद्यालय के शिक्षकों को कैसे सहयोग दें । प्रखंड के एक इनोवेशन स्कूल में जाकर भी शिक्षकों को सहयोग देना। चेतना सत्र एवं अंतिम घंटी को समझना फिर आनंदशाला के उद्देश्य के साथ जोड़ कर चेतना सत्र और अंतिम घंटी को बच्चों के अनुकूल व मजेदार बनाना जिससे वे विद्यालय में ठहरें और कुछ सीख कर जायें ।इनोवेशन स्कूल के शिक्षकों के व्यवहार में बदलाव के साथ-साथ बच्चों में लीडरशिप की भावना, नैतिकता एवं अपनी समस्या का हल करने के लिए सोच विकसित करने में मुझे आनंदशाला से मिला प्रशिक्षण, टूलकिट एवं मेंटरिंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है ।

शिक्षा विभाग की मुहीम (गृह भ्रमण एवं बच्चे को समझना) की परिकल्पना एक तरह से पत्र में ही सिमट कर रह गई थी । समस्तीपुर में प्रखंड स्तर पर एक मुहीम रिसोर्स पर्सन बनाया गया ।अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ की प्रखंड के सभी मध्य विद्यालयों के शिक्षक मुहीम शब्द से अवगत है ।60 प्रतिशत शिक्षक समझ रहे हैं कि मुहीम में करना क्या है, 25 प्रतिशत शिक्षक विद्यालय में इस प्रक्रिया को कर रहे है ।किसी भी प्रक्रिया को लागू करने में चुनौतियाँ तो

आती हैं लेकिन शून्य से इस तरह बढ़ना अपने आप में सफलता की ओर एक कदम है ।अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। अन्य जिलों में मुहीम शब्द एवं इसकी परिकल्पना की समझ कितने शिक्षकों में होगी यह कहना बहुत ही कठिन है । यहाँ थोड़ी संभावना तभी दिख रही थी जब हम विद्यालय भ्रमण, गुरू गोष्टी, संकुल कार्यशाला समन्वयक एवं संसाधन सेवी के साथ मिलकर कार्य कर रहे थे, इनको सहयोग के साथ साथ फीडबैक भी दिया है ।

मैंने देखा बदलाव

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शाहपुर उंडी के शिक्षकों ने चेतना सत्र में सभी बच्चों की भागीदारी के साथ अंतिम घंटी को रोचक बनाया जिससे की बच्चों का ठहराव हो सके और वे सीख सकें । इस विद्यालय के शिक्षकों ने समुदाय में जाकर अभिभावक बैठक करना शुरू कर दी, इससे अभिभावक का विद्यालय से जुड़ाव बढ़ेगा। विद्यालय में चारदीवार नहीं थी विद्यालय काफी व्यस्त रोड से सटा होने के कारण टिफिन और छुट्टी के समय शिक्षक हमेशा डरे भी रहते थे कि कहीं कोई दुर्घटना ना घट जाए । इस कारण स्कूल का वातावरण बच्चों के लिए खुशनुमा नहीं था। विद्यालय के बच्चों ने सबसे पहले यह समस्या शिक्षकों के सामने रखी । शिक्षक और अभिभावकों के सहयोग से विद्यालय की चारदीवार का निर्माण किया गया, साथ ही बच्चे और शिक्षक मिल कर बागवानी भी करने लगे। आज की तारीख में यह विद्यालय एक खुशनुमा विद्यालय की तरह दिखता है । इस विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ी है और दुर्घटना की समस्या से भी निजात मिली है । इस तरह का बदलाव अपनी आँखों से देखने को मिला है।

बदलाव के लिए कुछ अनवरत कदम

विद्यालय स्तर पर इस तरह के कार्यों को दूसरे विद्यालयों के शिक्षकों एवं प्रखंड के सरकारी साझेदार के साथ साझा करना जिससे कि अन्य विद्यालय प्रेरित होकर आनंदशाला की टूल किट का इस्तेमाल कर बच्चों का ठहराव करने का प्रयास कर सकें।

संकुल समन्वयकों के लिए टीम के साथ मिल कर एजेंडे का निर्धारण करना जिससे कि प्रखंड स्तर पर संकुल समन्वयकों एवं साधनसेवी के साथ मिल कर पूरे माह के कार्य की समीक्षा करना एवं अगले माह में किये जाने वाले मुख्य बिन्दुओं पर योजना बनवाना, जिससे कि जब समन्वयक विद्यालय जाए तो उनका उस माह के मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित रहे । वे शिक्षकों की संकुल स्तरीय एक दिवसीय कार्यशाला का संचालन अच्छे से कर पायें इसके लिए समन्वयकों से गतिविधि आधारित एजेंडा का निर्माण करवाना और इसका डेमो करके दिखाना

एवं उससे करवाना। संकुल समन्वयक जब शिक्षकों की कार्यशाला कर रहे हैं या विद्यालय भ्रमण कर रहे हैं तो तकनीकी (मिनी प्रोजेक्टर, टैब, स्पीकर एवं डिजिटल टूल) का उपयोग करके शिक्षकों की समझ विकसित करने में सहयोग देना और कार्यशाला को अर्थपूर्ण बनाना।

बदलाव की कहानी

मध्य विद्यालय दरबा में जसिया कुमारी आठवीं वर्ग की छात्रा थी जो कि स्कूल नहीं आती थी क्योंकि अभिभावकों ने उसकी शादी तय कर दी थी। जब शिक्षक ने इस छात्रा को ट्रैक किया तभी इसकी जानकारी हुई । शिक्षक ने जसिया के माता-पिता को समझाया बुझाया जिसके परिणाम स्वरूप आज वह दसवीं कक्षा में पढ़ रही है ।

आमतौर पर समुदाय, शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं कर पाता है वह अपने सीमित क्षेत्र में अपनी सीमित आवश्यकताओं और ढंगों वाली संस्कृति से ही लिपटा रहता है। इससे उसकी निर्धनता जस की तस बनी रहती है। इसलिए प्रत्येक समुदाय अपनी प्रगति के लिए नई पीढ़ी को अच्छी से अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास करता है । यही कारण है कि प्राचीन काल से लेकर अब तक समुदाय ने अपनी प्रगति के लिए राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा को सदैव अपने आदर्शों और उद्देश्यों के अनुसार मोड़ा है और अब भी मोड़ रहा है।

आज विद्यालय और समुदाय के बीच एक बड़ी खाई है, जिस कारण वे एक-दूसरे से एक तरह की दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि सरकारी विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव तभी आ सकता है जब समुदाय का विद्यालय से जुड़ाव होगा। संकुल समन्वयक को एक चेंज लीडर के रूप में विकसित कर शिक्षा में भागीदारी के लिए समुदाय को जोड़ कर चेंज का प्रोजेक्ट किया है, जिसमें समुदाय ने विद्यालय के बच्चों के लिए सिलाई मशीन, साइकिल स्टैंड, पुस्तकालय, वर्ग में पंखे आदि की व्यवस्था की है । इसी के साथ समुदाय के हुनरमंद व्यक्ति अपने ज्ञान को बच्चों के बीच साझा करने का कार्य करते हैं जैसे – मूर्तिकार, कुम्हार, चित्रकार, आदि शिक्षक के रूप में एवं सिलाई प्रशिक्षक इत्यादि के रूप में अपनी योगदान देते हैं । इस कार्य में पीओ ने चेंज लीडर के साथ योजना बनाकर सफलता की ओर ले जाने का कार्य किया। अगर आप एक ऐसी प्रक्रिया में शामिल होते हैं कि समुदाय विद्यालय के लिए सोच विचार करने लगे और बदलाव की प्रक्रिया की ओर बढ़ने लगे तो आश्चर्य की बात ही है । समुदाय की सोच में इस तरह का थोड़ा परिवर्तन लाना मेरे लिए आनंददायी अनुभूति से कम नहीं है। इस अनुभव से मेरी सोच में काफी बदलाव आया है । मैं आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ कि समुदाय विद्यालय से जुड़ता है सिर्फ इसके पास जाने की आवश्यकता है और सामुदायिक विकास की बागडोर इनके माध्यम से ले जाने की आवश्यकता है।

सरकारी तंत्र के से साथ कार्य करना सरल नहीं होता है क्योंकि प्रखंड स्तर के जो साझेदार होते हैं वे पूर्व धारणाओं से काफी पीड़ित होते हैं, उनको लगता है कि सिस्टम में जितना चाहे कर लो, कुछ नहीं हो सकता है ।ऐसे साझेदारों से रिश्ता बना पाना काफी कठिन होता है ।इनके साथ कार्य करना तो एक अलग ही मसला है ।इन साझेदारों के साथ बार-बार सम्पर्क में रहना, उनकी चुनौतियों को अपनी चुनौती समझना, साथ मिल कर काम करना, धीरे- धीरे विश्वास में लाना कि एक विद्यालय के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही सलाह मिल रहीहै और इससे हमारा कार्य आसान या सरल होगा ।जब हितभागी को स्वयं, बच्चों में और विद्यालय की कार्यप्रणाली व गतिविधियों में बदलाव दिखने लगता है तो वे प्रखंड स्तर के साझेदारों की बदलाव की कहानियों को अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर साझा करते हैं । इससे उनको आत्मविश्वास के साथ-साथ आत्मसम्मान भी मिलता है, जिससे हितभागी के साथ रिश्ता मजबूत होता जाता है और इनके साथ कार्य करना सरल होता जाता है।

अनुकरणीय अभ्यासों को पुरस्कृत कर प्रोत्साहित करना

सरकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक विद्यालय स्तर पर लगातार कार्य करते हैं लेकिन वे क्या अच्छा कर रहे हैं यह देखने वाला और इन्हें आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान देने वाला कोई नहीं होता है ।भीड़ इतनी होती है की बहुत सारे अच्छे कार्य करने वाले विद्यालयों की भीड़ में गुम हो जाते हैं , फिर वह अच्छे कार्य के लिए कभी आगे नहीं आ पाते हैं। आत्मसम्मान से ही आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। किसी विषय पर निर्णय लेने में स्वयं पर भरोसा करके उसके बारे में अच्छा सोचना चाहिए। अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा ही अपने सोचने के तरीकों को बदल सकते हैं। नकारात्मक विचार को हटाकर इच्छा शक्ति को प्रबल बनाया जा सकता है, क्योंकि इच्छा शक्ति नकारात्मक विचारों पर हावी होती है। जिन विद्यालयों ने बच्चों के ठहराव एवं सीखने सिखाने की प्रक्रिया में अच्छा प्रदर्शन किया उनको ‘आनंदशाला शिक्षा रत्न पुरस्कार’ के माध्यम से पुरस्कृत कर सम्मानित किया गया, जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़े और अन्य विद्यालय भी प्रेरित होकर अच्छे अभ्यास करें । ‘आनंदशाला शिक्षा रत्न पुरस्कार’ की प्रकिया प्रखंड स्तर से शुरू होती है । विद्यालय को अच्छे अभ्यास करने के लिए प्रेरित करना, कहानी लिखने में सहयोग, प्रखंड संसाधन केंद्र पर कहानियों का संग्रहण करवाना, प्रखंड स्तर पर शिक्षाविदों का समूह संगठित कर स्क्रीनिंग और भौतिक सत्यापन कर जिला स्तर पर भिजवाने तक की पुरी प्रक्रिया में पीओ अपनी भूमिका निभाता है। वह जिला स्तर पर स्क्रीनिंग के लिए कोआर्डिनेशन करने से लेकर टीम के साथ आनंदशाला गोष्ठी की तैयारी पूरी कर चयनित अच्छे अभ्यास को सम्मानित करने तक की प्रक्रिया में शामिल रहता है । अब तक 20 विद्यालयों को पुरस्कृत कर

सम्मानित किया गया है । प्रखंड के विद्यालयों से जब-तब फोन आता है कि मेरे विद्यालय आएँ और मुझे भी सहयोग करें ।

छात्र सहभागिता और नेतृत्व

विद्यालय में बच्चों के ठहराव एवं आधारभूत कौशल का विकास करने के लिए समृद्धिवर्धक गतिविधियों ( स्वतंत्र निर्णय लेना एवं नेतृत्व करने की क्षमता, स्वयं को समझना, स्व अभिव्यक्ति, निरंतर खोज एवं नैतिकता की भावना) को संचालित करने में बाल संसद के समूह को काफी एक्टिव किया गया है । ‘बाल संसद’ का उद्देश्य भी ऐसी विषयवस्तु पर बल देता है कि बच्चों के जीवन कौशल का विकास हो सके और वे अपने अधिकारों की बात खुल कर कह सकें ।दो वर्ष पूर्व की बात करें तो विद्यालयों में बाल संसद की सिर्फ लिस्ट चिपकी रहती थी । लिस्ट के बच्चों को भी पता नहीं होता था की वह बाल संसद के सदस्य हैं और इसका संयोजक कौन है। यह तो बहुत दूर की बात थी कि यह सब सभी बच्चे जानते हैं । जब शिक्षकों में कार्य करने की इच्छा शक्ति एवं समझ में कमी होती है तभी इस तरह की परिस्थिति विद्यालय में बनती है । विद्यालयों में ‘बाल संसद’ के चयन की पहल ने लोकतांत्रिक ( वोटिंग प्रणाली ) प्रक्रिया को मजबूत किया है ।60 प्रतिशत विद्यालयों के सभी बच्चों को जानकारी होती है कि बाल संसद के सदस्य कौन है । हर साल बच्चे बाल संसद के सदस्य बनने के लिए आतुर रहते हैं । 30 प्रतिशत विद्यालयों में ‘बाल संसद’ अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं लेकिन अभी इनके साथ और ज़्यादा कार्य करने की आवश्यकता है।

बदलाव की प्रक्रिया में मेरा छोटा अनुभव

एक बच्चा , विद्यालयों में बहुत कम बोलने वाला, बोलने में शर्माना, बहुत धीमी आवाज से बोलना, डरे रहना, बोलेंगे तो कही गलत न हो जाए। इस वजह से मान लेते हैं की यह बच्चा कुछ नहीं कर पायेगा । इस तरह के गुणों वाले छात्र या छात्रा विद्यालय में एक्टिव नहीं होते हैं । लेकिन ऐसे सोचने वाले को यह पता नहीं होता है कि अगर ऐसे बच्चों को मौका दिया जाए और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो विद्यालय की गतिविधियों में अपनी भागीदारी इस तरह सुनिश्चित करते हैं कि तेज समझे जाने वाले बच्चे भी सोच नहीं पाते हैं । इसका सही उदाहरण रूप में उत्क्रमित मध्य विद्यालय चकरमन पहाड़पुर, पटोरी के बाल संसद के बच्चों में देखने को मिला है । बाल संसद बैठक में बच्चे कुछ बोल ही नहीं पाते थे, बहुत मुश्किल से कुछ बोल पाते थे। संयोजक शिक्षिका कहती कि इसको एक्टिव करने के लिए हम बहुत प्रयास करते हैं लेकिन होता ही नहीं है, इससे पिछले सत्र वाले बच्चे ठीक थे । संयोजक शिक्षिका ने आस नहीं

छोड़ी और इन बच्चों को मोटीवेट करती रहीं । आज के दिन में बाल संसद के बच्चों में आश्चर्यजनक बदलाव आया है । विद्यालय की गतिविधियों में इनकी भागीदारी काफी अधिक बढ़ गई है । चेतना सत्र हो या अंतिम घंटी या जो बच्चे विद्यालय नहीं आते हैं उनको विद्यालय ले कर आने में शिक्षकों का पूरा सहयोग करते हैं । बाल संसद के बच्चों ने मिलकर टोला वार हाउस का निर्माण किया है जो बच्चा नहीं आता है, हाउस का सदस्य मिलकर होम विजिट कर बच्चे को विद्यालय लाते हैं आभा कुमारी ( उप प्रधान मंत्री, वर्ग -8 ) कहती है कि “पहले चेतना सत्र में माइक पकड़ने में मेरा हाथ काँपता था अब नहीं काँपता है । ” आभा कुमारी में इतना आत्मविश्वास आया है कि साप्ताहिक ‘बाल खबर’ की संपादक बन कर विद्यालय में प्रकाशित करने की योजना बनाई । ‘बाल खबर’ में अलग- अलग विषय से संबंधित हर वर्ग से पत्रकार नियुक्त किये गए हैं जैसे – भोजन की गुणवत्ता, खेल की घंटी, चेतना सत्र, सप्ताह में क्या पढ़ाया गया और किस विषय का सिलेबस पूरा हुआ कि नहीं । पत्रकार द्वारा विषय वस्तु से संबंधित समाचार एकत्रित कर संपादक को दिया गया और उसको संग्रह कर ‘बाल खबर’ बनाया । ‘बाल खबर’ विद्यालय में साप्ताहिक प्रकाशित किया जाता है । ‘बाल खबर’ के पत्रकार हमेशा बदलते हैं । बाल संसद के सदस्यों के लिए विद्यालय में ‘बाल खबर’ की यह पहल मध्य विद्यालयों पटोरी प्रखंड के लिए एक अनूठी है । बाल खबर विद्यालय प्रबंधन को सुचारु रूप से चलने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती है ।

‘बाल खबर’ की फीडबैक के अनुसार शिक्षक/प्रधानाध्यापक अपनी रणनीतियाँ बनाते हैं कि विद्यालय में किस प्रकार कार्य करना है । सभी बच्चों के पास एक बराबर टैलेंट नहीं होता लेकिन टैलेंट पैदा करने के एक जैसे मौके जरूर देना चाहिए है । बच्चों के ज़ज्बे का मूल्यांकन कर पाना काफी कठिन है इनमें से कुछ करने की कल्पना शक्ति बहुत अधिक होती है इन्हें सही राह दिखाने एवं तराशने की जरूरत है ।

बदलाव अलग- अलग रूपों में

  • संकुल समन्वयक की सोच में
  • संकुल कार्यशाला करने के तरीके में
  • विद्यालय के अनुश्रवण एवं समर्थन करने में
  • बच्चों को समझने में
  • विद्यालयों में सीखने सिखाने की वातावरण में
  • विद्यालय और समुदाय के जुड़ाव में

शिक्षकों के व्यवहार में

“संकुल समन्वयक (प्रमोद कुमार राय ) बोले कि पहले तो हम केवल पत्र वाहक ही बने थे लेकिन अब ऐसा नहीं है, अब बच्चे और समुदाय को विद्यालय से कैसे जोड़ेंगे इसके वाहक भी बन गए है ।”

“साधन सेवी (शिवनाथ प्रसाद राय ) आनंदशाला ने जो उद्देश्य बनाया है वह हमारी ही है यह हमारे कार्य को सरल बनता है और हमे ही सहयोग करता है |”

सरकार के हितधारक से यह कथन सुनने के बाद यह प्रतीत होता है कि इनके साथ मिल कर काफी कार्य किया गया है और आनंदशाला के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इनके साथ एक सकारात्मक संबंध स्थापित किया है । मुख्य रूप से ये कार्य हैं- संकुल कार्यशाला एवं गुरु गोष्ठी में बच्चों का ठहराव, समुदाय से जुड़ाव, लर्निंग वातावरण का निर्माण या विद्यालय की अच्छे अभ्यास से संबंधित विषयवस्तु को इन समूह के बीच आवश्यक रूप से रखना और इस पर चर्चा करना जिससे शिक्षकों की कार्यशैली में बदलाव आ पाए और बच्चों का विद्यालय में ठहराव एवं इनके सीखने का वातावरण का निर्माण कर सके ।

कदम आगे बढ़ते जा रहे हैं – आनंदशाला के कार्यक्रम को लागू करने के लिए अन्य प्रखंड के नये पीओ को समुदाय चैंपियन की तरह मदद करके और समझ विकसित कर उद्देश्य की प्राप्ति करने में लगा हूँ । आने वाले समय में हितधारक एवं नए पीओ को मैं अपनी तरह ही चेंज एजेंट बनाना चाहता हूँ जिससे कि शिक्षा से संबंधित बच्चों की जो समस्या है उसका निवारण हो सके। बच्चों का विद्यालय में ठहराव सुनिश्चित हो सके ।आने वाले समय में यही बच्चे राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देंगे ।देश का हर बच्चा शिक्षित होगा तभी राष्ट्र का विकास होगा । अभी यात्रा हमारी अधूरी है अभी निरंतर सफ़र जारी है…

इस कदर औरों से नजरों मिला कर चले हैं हम,
जिस पथ पर चले हैं वही है मंजिल सही,
इस नगर की रोशनी हैं हम,
सरकारी विद्यालय बदलने चले हैं हम

लेखक

सुनील कुमार: शिक्षा : अर्थशास्त्र आनर्स में स्नातक, आनंद्शाला समस्तीपुर में साढ़े छह साल कार्य करने का अनुभव

 

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2 comments on “आनंदशाला के जतन से विद्यालय के बदलाव का सफ़र

  1. Sujit Kumar says:

    सर जी आलेख काविलेतारिफ है.।

  2. Anand Pareek says:

    This is wonderful experiance, i use in my school.

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