Lessons from Practice

अग्रगामी के सिविक लर्निंग एंड डेमोक्रेटिक एंगेजमेंट (CLDE) प्रोजेक्ट से प्राप्त सबक

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) इस प्राकल्पना पर आधारित है कि प्रत्येक बच्चा कम से कम एक भाषा के पूर्ण ज्ञान के साथ स्कूल शुरू करता है। इसमें शामिल कुछ कौशलों की गणना करने का अर्थ है कि किसी बच्चे में कम से कम एक हज़ार या अधिक शब्दों, जटिल वाक्यों और वाक्यों के समूहों को समझने की क्षमता है जिनसे कोई कहानी तैयार हो सकती है, या जो किसी घटना को किसी अन्य व्यक्ति से जोड़ने में भी उसकी मदद कर सकते हैं।

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अग्रगामी के सिविक लर्निंग एंड डेमोक्रेटिक एंगेजमेंट (CLDE) प्रोजेक्ट से प्राप्त सबक

आदिवासी बच्चों में रचनात्मक भाषा विकास

द्वारा : इंदिरा विजयसिंह

1.  सन्दर्भ

2013 की शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER report1) के अनुसार, रायगढ़ (ओडिशा), आदिवासी आबादी के उच्च अनुपात वाला एक ज़िला, कक्षा I और II के ऐसे बच्चों के प्रतिशत के मामले में 30 ज़िलों में से 25 वें स्थान पर था, जो अक्षर, शब्द या उससे अधिक पढ़ सकते थे। ज़िले में 6-14 आयु वर्ग के स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत भी ओडिशा में सबसे अधिक है। आदिवासी छात्रों के पिछड़ने का एक कारण यह है कि 1% से भी कम आदिवासी बच्चों को अपनी मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने का वास्तविक अवसर मिलता है (Mohanty, Mishra, Reddy & Gumidyala 2009)। झिंगरान (Jhingran) के 2005 के अध्ययन में पाया गया कि पाँचवीं कक्षा के छात्र अपनी घरेलू भाषा में भी अपने विचारों को स्वतंत्र और सुसंगत रूप से व्यक्त नहीं कर सकते थे। उनकी किसी एक साधारण अज्ञात पाठ/विषय वाक्य को समझने और उसे समझ कर प्रश्नों के उत्तर देने की क्षमता बहुत असंतोषजनक थी। लगभग कोई भी बच्चा ऐसे प्रश्नों के सही उत्तर नहीं दे सका जिनके उत्तर पाठ में प्रत्यक्ष या सीधे मौजूद नहीं थे।

शिक्षक आमतौर पर पारम्परिक ‘बारहखड़ी’ पद्धति पर निर्भर रहते हैं, जिसमें छात्रों को पहले सभी ‘व्यंजनों’ और ‘स्वरों’ से परिचित कराया जाता है और उसके बाद, व्यवस्थित रूप से ‘मात्राओं’ से परिचित कराया जाता है, जिसके बाद उन्हें पाठों, शब्दों और वाक्यों के क्रम में परिचय कराया जाता है। बच्चों ने, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के बच्चों ने शायद ही कभी बुनियादी स्कूली शिक्षा के पाँच साल पूरे किए हों और उन्होंने अक्सर पढ़ने-लिखने में समर्थ हुए बिना स्कूल छोड़ दिया। साक्षरता प्रदान करने के लिए शिक्षक कोई वैकल्पिक तरीका नहीं ला पाए, जिससे इन ज़िलों में बच्चों के लिए बेहतर अधिगम परिणाम सम्भव हो सकें।

राज्य और राष्ट्रीय स्तर की पहलों ने ‘द्विभाषी स्थानान्तरण मॉडल’ के आधार पर प्रारम्भिक स्तर की कक्षाओं के लिए कई जनजातीय/आदिवासी भाषाओं में बड़ी संख्या में प्रारम्भिक पुस्तकें (primers) तैयार करके समस्याओं के समाधान का प्रयास किया है। ज्यादातर मामलों में, दृष्टिकोण पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन तक सीमित था, जबकि इसमें शिक्षक प्रशिक्षण, नियमित शैक्षणिक अनुवर्तन और मूल्यांकन के घटक शामिल नहीं किए गए थे। भाषा और साक्षरता सीखने के सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य में पर्याप्त आधार के बिना और शिक्षक तैयार किए बिना, इन प्रयोगों का विफल होना अवश्यंभावी था। कक्षा I के शुरुआती महीनों में शिक्षकों के लिए द्विभाषी भाषा की सूची या बच्चों के लिए शब्द और वर्णमाला कार्ड्स के उपयोग जैसे प्रयासों को शिक्षक तैयार करने और अनुवर्तन के सन्दर्भ में पर्याप्त सहायता नहीं मिली।

2.  शिक्षा के क्षेत्र में अग्रगामी का कार्य

ओडिशा के आदिवासी ज़िलों में सीमान्त और वंचित समुदायों के साथ काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन ‘अग्रगामी’ (Agragamee2) ने आदिवासी क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के सामने आने वाली समस्याओं को कई तरीकों से सम्बोधित करने के प्रयास किए हैं, जिनमें वकालत, अभियान और ओडिशा राज्य के कुछ सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में वैकल्पिक स्कूल शामिल हैं। इन वर्षों में, अग्रगामी ने ओडिशा के कुछ सबसे दूरस्थ और दुर्गम आदिवासी ज़िलों में तीन हज़ार से अधिक बच्चों को प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच प्राप्त करने और आगे की स्कूली शिक्षा में शामिल होने में मदद की है। रायगड़ा के काशीपुर और कालाहांडी के थुआमुलरामपुर के आदिवासी ब्लॉक्स में अग्रगामी का प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम आदिवासी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक मॉडल विकसित करने का प्रयास करता है, जो गरीबी, प्रणालीगत विफलताओं और अप्रभावी वितरण सहित अनेक जटिल कारणों से प्राथमिक शिक्षा तक पहुँचने में असमर्थ हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इसके स्पष्ट प्रयासों और ठोस प्रभाव ने अग्रगामी को आदिवासी लड़कियों को – जो आबादी का शैक्षिक रूप से सबसे वंचित वर्ग है – शिक्षित करने के लिए एक कार्यक्रम विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

2.1  अग्रगामी द्वारा विकसित पठन कार्यक्रम

कई वर्षों तक शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम के दौरान, अग्रगामी ने स्कूली शिक्षा के प्रथम तीन वर्षों में बच्चों के लिए पढ़ने और लिखने का एक अनूठा कार्यक्रम विकसित किया है। इस कार्यक्रम के माध्यम से, बच्चों ने बड़े पैमाने पर प्रवाह हासिल किया है और कक्षा III में प्रवेश करने तक वे ओडिशा राज्य की मानक पाठ्यपुस्तकों का आसानी से प्रयोग करने में सक्षम हो जाते हैं। यह कार्यक्रम चित्रपूर्ण पुस्तकों, कार्यपुस्तिकाओं और पाठ्यपुस्तकों के सन्दर्भ में अच्छी तरह से समर्थित है, जिन्हें अग्रगामी की निदेशिका, विद्या दास और स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों की उनकी टीम द्वारा संस्था में ही तैयार किया गया है। इस अनूठे वाचन कार्यक्रम को संक्षेप में ‘रचनात्मक भाषा विकास प्रयास’ या CLDE कहा गया है।

2.2 बुनियादी भाषा और अधिगम क्षमता का निर्माण

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) रचनावादी दृष्टिकोण से प्रेरित है, जो अधिगम को एक ऐसा संज्ञानात्मक अनुभव मानता है जो प्रत्येक शिक्षार्थी के अपने दृष्टिकोण से अद्वितीय होता है और पूर्व ज्ञान नए ज्ञान के निर्माण में मदद करता है। इस दृष्टिकोण में यह माना जाता है कि अधिगम संवादात्मक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है और ऐसा सिर्फ तभी हो सकता है जब शिक्षार्थी वह समझने में सक्षम हो जो उसे पढ़ाया जा रहा है। पहली कक्षा के किसी बच्चे के लिए कक्षा प्रक्रिया से रचनात्मक और सकारात्मक तरीकों से जुड़ने में उसकी मदद करने के लिए यह अर्थ आवश्यक है। जब ऐसा नहीं होता है, जैसे कि वर्णमाला-केन्द्रित तरीके में, जिसमें बच्चे को या तो बार-बार अक्षर लिखने के लिए कहा जाता है, जिसे वह बिलकुल भी नहीं समझता है; या जब उसे शब्दों के पहले अक्षरों के स्वरविज्ञान से जुड़ने के लिए समझ में आने वाले किसी सन्दर्भ के बिना एकाक्षरीय शब्द लिखने पड़ते हैं, तो बच्चा भावनात्मक और संज्ञानात्मक रूप से कक्षा की प्रक्रियाओं से जुड़ने में असमर्थ होता है। दूसरी ओर, जब बच्चा अपना और अपने परिवार के सदस्यों के नाम लिखता है, या रोज़मर्रा की वस्तुओं या जानवरों के नाम लिखता है, तो वह जो कर रहा होता है उससे तत्काल सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। जब यह अभ्यास वाक्य और ज्ञात तुकबन्दी लिखने के लिए आगे बढ़ाया जाता है और बच्चे को वह पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो उसने लिखा है, तो बच्चा पढ़ने के उद्देश्य को अधिकाधिक समझने में सक्षम होता है, और पाठ को समझने और मुद्रण और लेखन की दुनिया में प्रवेश करने के लिए स्व-प्रेरित हो जाता है। यह प्रक्रिया बच्चों के लिए पढ़ने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से या छोटे निर्देशित पठन समूहों में अन्य बच्चों के साथ विभिन्न तरीकों से स्वयं को व्यक्त करने के अवसरों की एक पूरी श्रृंखला भी निर्मित करती है।

शिक्षण के दौरान अपनाई जाने वाली आनन्दपूर्ण प्रक्रियाएँ, जिनमें नाट्य-गीत सीखना और सुनाना; चित्रकारी और रंगाई; पढ़ने की नकल करते हुए इन तुकबन्दियों के पाठ पर उंगली चलाना भले ही पढ़ने की वास्तविक क्षमता अब तक विकसित नहीं हुई हो; और, चित्रों के कार्ड्स से खेलना शामिल है, बच्चे को पाठ से परिचित कराने और कम से कम प्रयास करते हुए उसे याद रखने में मददगार होती हैं। अब यह भलीभाँति मान्य है कि खेल वास्तव में संज्ञानात्मक विकास में मदद करते हैं। बच्चे न केवल उन चीज़ों का अभ्यास करते हैं जिन्हें वे पहले से जानते हैं, वे नई चीज़ें भी सीखते हैं। इस प्रकार विकसित पठन कौशल, बच्चे की ओर से आगे पढ़ना और सीखना सुगम बनाता है, क्योंकि वह उसकी स्वयं की रुचि और ज्ञान के आधार पर निर्मित सकारात्मक भावनाओं और उमंगों को प्रक्रिया के साथ जोड़ने में सक्षम होता है।

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) इस प्राकल्पना पर आधारित है कि प्रत्येक बच्चा कम से कम एक भाषा के पूर्ण ज्ञान के साथ स्कूल शुरू करता है। इसमें शामिल कुछ कौशलों की गणना करने का अर्थ है कि किसी बच्चे में कम से कम एक हज़ार या अधिक शब्दों, जटिल वाक्यों और वाक्यों के समूहों को समझने की क्षमता है जिनसे कोई कहानी तैयार हो सकती है, या जो किसी घटना को किसी अन्य व्यक्ति से जोड़ने में भी उसकी मदद कर सकते हैं। वह परिवार के सदस्यों और गाँवों के नाम भी याद रख सकता है और इनके साथ व्यक्ति या स्थान की पहचान जोड़ सकता है, जिसमें अमूर्त भी शामिल है, यानी यहाँ तक कि जब वह व्यक्ति वहाँ नहीं है, या जब वह खुद अपने गाँव से दूर है। इसके अलावा, अधिकांश बच्चे तुकबन्दियों और गीतों का आनन्द लेते हैं, उन्हें तब भी आसानी से याद कर लेते हैं जब वे उनका अर्थ पूरी तरह नहीं समझते हैं।

यह ऐसे कौशल हैं जो बुनियादी साक्षरता या पढ़ने और लिखने के लिए आवश्यक कौशलों से कहीं अधिक जटिल हैं। और फिर भी, प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा में मुख्य रूप से निम्न साक्षरता के कारण बाधा आती है क्योंकि वर्णमाला जबरन याद कराने के साथ साक्षरता शिक्षण शुरू होता है और अर्थ-निर्माण में बच्चे की संज्ञानात्मक नैसर्गिक क्षमताओं को शामिल नहीं किया जाता है। वर्णमाला या वर्णमाला-केन्द्रित विधियों के माध्यम से किसी बच्चे में पढ़ने और भाषा सम्बन्धी कौशल विकसित करना एक नकारात्मक और कठिन कार्य है, क्योंकि वर्णमाला के प्रतीक किसी भी ऐसी चीज़ से जुड़े नहीं होते जिसके बारे में बच्चे कुछ भी जानते हों। प्रथम अक्षर विधि के माध्यम से पढ़ाने की प्रक्रिया और भी अधिक भ्रमित करने वाली है क्योंकि बच्चा शब्द निर्मित करने वाले बाकी प्रतीकों को समझ नहीं पाता है।

3. रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) दृष्टिकोण

अपने काम में, अग्रगामी ने पाया है कि यदि पारम्परिक वर्णमाला-केन्द्रित दृष्टिकोण को एक अधिक बाल-केन्द्रित दृष्टिकोण द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, जिसमें अधिगम शब्दों और बच्चों की परिचित वस्तुओं; आनन्दपूर्ण तुकबन्दियों और गीतों, जिन्हें बच्चा याद रख सकता है; और, उसके करीबी लोगों के नामों के माध्यम से होता है, तो अधिगम अधिक संगठित बनता है, जिससे इसमें अधिक तीव्रता आती है और यह बच्चे और शिक्षक के लिए बहुत कम तनावपूर्ण होता है।

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) निम्नलिखित दो घटकों पर अत्यधिक निर्भर है :

  1. शिक्षकों की शिक्षा-विज्ञान सम्बन्धी समझ और कौशल विकसित करना
  2. गुणवत्तापूर्ण सामग्री तैयार करना

यह रिपोर्ट रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) दृष्टिकोण की प्रभावशीलता पर दृष्टि डालती है। यह क्षेत्र के अवलोकन और अर्ध-संरचित साक्षात्कार पर आधारित है।

3.1  पढ़ना और लिखना

अग्रगामी के शिक्षकों ने, विद्या दास के निर्देशन में, साक्षरता शिक्षा के लिए एक अलग दृष्टिकोण आज़माना शुरू किया। इसके लिए प्रारम्भिक प्रेरणा सिल्विया एश्टन वार्नर के लेखन पर आधारित थी। इस पद्धति को ‘जैविक पठन’ पद्धति (‘organic reading’ method) के रूप में सन्दर्भित किया जाता है, जिसमें प्रत्येक छात्र से ऐसे शब्दों की एक प्रमुख शब्दावली प्राप्त करना शामिल होता है जो उस व्यक्ति के लिए विशेष महत्त्व के होते हैं। इस प्रकार बच्चों को पहले पूरे शब्दों से परिचित कराकर ‘जैविक विधि’ (organic method) का अनुकूलन करने का प्रयास किया गया। यह शब्द उनके अपने नाम, उनके परिवार के सदस्यों के नाम और जानवरों के नाम थे – अपने स्वयं के सन्दर्भ से प्राप्त शब्द जिनसे बच्चे जुड़ सकते थे। शिक्षकों के काम को सुविधाजनक बनाने के लिए, एक प्रारम्भिक पुस्तक ‘कौ दके का’ विकसित की गई है और शिक्षक कक्षा में तुकबन्दियों और कविताओं के साथ इसका इस्तेमाल करते हैं।

समन्वेशी (exploratory) दौरे के दौरान, शोधकर्ता ने कोई संरचित पठन परीक्षण नहीं किया, लेकिन उसे कक्षा I से V तक के बच्चों का अवलोकन करने में सफलता मिली। कई बच्चे जो छह महीने तक स्कूल गए थे, वे पूर्ण शब्दों को पहचानने में सक्षम थे और आत्मविश्वास के साथ एक-दूसरे के नाम लिख सकते थे और स्कूल के पुस्तकालय में उपलब्ध बच्चों की विभिन्न किताबों से शब्दों को समझने का प्रयास करने में संकोच नहीं करते थे। ऐसे शोधकर्ता के लिए यह आश्चर्यजनक था, जिसे स्कूलों और बच्चों के साथ काम करने का कई वर्षों का अनुभव हो। शोधकर्ता ने स्वयं एक शहरी क्षेत्र में एक वैकल्पिक स्कूल की स्थापना की है और इस दूरस्थ आदिवासी बस्ती के बच्चों की पढ़ने की क्षमता ने उन्हें काफी प्रभावित किया। जब कक्षा II के बच्चों (लगभग डेढ़ साल की स्कूली शिक्षा के बाद – क्योंकि दिसम्बर में दौरा किया गया था) से आगंतुकों के नाम लिखने के लिए कहा गया, तो वे बहुत आत्मविश्वास के साथ ऐसा करने के लिए आगे बढ़े। वर्तनी पूरी तरह से सही नहीं थी, लेकिन ध्वनि-विज्ञान की एक बुनियादी समझ देखी जा सकती थी। पुनः, इन ज़िलों में पढ़ने के निम्न स्तर की सामान्य स्थिति को देखते हुए यह कोई औसत उपलब्धि नहीं थी। निःसन्देह बच्चों की क्षमताओं में भिन्नता थी, लेकिन यह अपेक्षित था। साथ ही, कुछ बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते थे और उन बच्चों की तरह धाराप्रवाह नहीं थे जिनकी उपस्थिति अधिक नियमित रहती थी। कक्षा III, IV और V के अधिकांश बच्चे राज्य की पाठ्यपुस्तकों को पढ़ने और समझने में सक्षम थे और स्वतंत्र रूप से अलग-अलग स्तर के प्रवाह के साथ अखबार भी पढ़ सकते थे।

लिखने के सम्बन्ध में, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यहाँ तक ​​कि स्कूल के प्रथम पहले वर्ष के बच्चों ने भी शब्द बनाना शुरू कर दिया था और उनमें ध्वनि सम्बन्धी जागरूकता का एक अच्छा स्तर पाया गया। कक्षा III के बच्चे पहले से ही अपनी ध्वनि सम्बन्धी जागरूकता अंग्रेज़ी में स्थानांतरित करने में सक्षम थे। एक छात्र प्रशिक्षु (student intern) की शोध रिपोर्ट के एक अंश में यह कहा गया है, “मैं कक्षा III की अंग्रेज़ी उत्तर पुस्तिकाओं को देख रहा था, कुछ आविष्कृत वर्तनियाँ देखी, जैसे किसी बच्चे ने ‘yacht’ के लिए ‘yakht’ लिखा। ऐसा सम्भवतः इसलिए हुआ होगा क्योंकि ‘c’ से शुरू होने वाले शब्दों, जैसे कि cold के लिए भी ध्वनि /क(k)/ है। बहुत से लोग सोचते होंगे कि अंग्रेज़ी एक जटिल भाषा है जिसके कारण बच्चे भ्रमित हो गए लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है; इसका मतलब है कि उनकी ध्वनि-सम्बन्धी जागरूकता विकसित हो रही है। साथ ही, कक्षा V के बच्चों ने ‘baegona’, ‘pulakobi’, ‘mula’, ‘anda’ के लिए आविष्कृत वर्तनियाँ लिखीं। बेशक, यह अंग्रेज़ी के शब्द नहीं हैं, लेकिन वे इन शब्दों को उनके उच्चारण के अनुसार लिख सकते थे। यहाँ, कोई यह देख सकता है कि वे ध्वनि-सम्बन्धी प्रसंस्करण और स्वनिमिक प्रसंस्करण दोनों कर रहे हैं। यह अच्छा है; प्रक्रियाएँ और रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) कार्यक्रम न केवल पढ़ने की क्षमता बढ़ाने में मदद करने का बल्कि ध्वनि-सम्बन्धी और स्वनिमिक जागरूकता के सम्बन्ध में भी अपना लक्ष्य प्राप्त कर रहा है। कुछ और मार्गदर्शन और ध्यान देने पर बच्चों का प्रदर्शन अच्छा होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि यह वास्तव में एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि उनके घरों में मुद्रण-समृद्ध (print-rich) वातावरण नहीं है और कई मामलों में, वे ‘पहली पीढ़ी के स्कूल जाने वाले’ हैं। वे सच में प्रतिभाशाली हैं। कुछ बच्चे ‘b’ और ‘d’ के बीच भ्रमित थे और कुछ ने उल्टा ‘s’ लिखा था, लेकिन विशेषाधिकार प्राप्त सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों के साथ भी ऐसा होता है।”

स्कूल की दीवारों पर लगे प्रदर्शन पट्ट (display boards) बच्चों के लेखन से भरे हुए थे, उन पर स्वयं बच्चों ने चित्र बनाए थे और यह भी इस बात का प्रमाण था कि स्कूल ने किस तरह बहुत कठिन परिस्थितियों के बावजूद बच्चों की पढ़ने और लिखने की क्षमताओं को विकसित किया है। वही प्रशिक्षु (intern) अपनी रिपोर्ट में आगे लिखती है, “अगले दो दिनों तक मैंने अग्रगामी स्कूल में बच्चों के साथ एक लेखन कार्यशाला की। उस दिन स्कूल में कुछ ही शिक्षक मौजूद थे इसलिए मैंने एक कक्षा ली और उन्हें अपनी मर्ज़ी से कुछ भी लिखने के लिए कहा। इस गतिविधि का उद्देश्य यह देखना था कि क्या यह बच्चे सरल वाक्य से आगे बढ़कर लिखने की कोशिश करने में सक्षम हैं। पढ़ने की क्षमता किसी चीज़ को लगातार पढ़कर उसे जानने तक ही सीमित नहीं है; बल्कि यह उनका वैश्विक नज़रिया स्पष्ट करती है। वे पढ़ते हैं और उस पर पुनः विचार करते हैं, चीज़ों को अपने जीवन से जोड़ने की कोशिश करते हैं और चीज़ों का पूर्वानुमान लगाते हैं। कोई भी जो कुछ भी कहना या लिखना चाहता है उसे व्यक्त करने के तरीकों के बारे में जितना अधिक सोचता है, शब्दावली उतनी ही बेहतर होती जाती है … इसलिए, मैंने सोचा कि क्यों न कक्षा III के बच्चे कुछ पूछें और कक्षा IV के बच्चे कुछ ऐसा लिखें जो एक मूल पाठ हो और कहीं से नकल न किया गया हो या किसी कहानी से फिर से न लिखा गया हो जिसे वे पहले से जानते हों।

कागज़ के एक टुकड़े पर अपने विचारों को उतारने के लिए बहुत सोच-विचार और मंथन की आवश्यकता होती है, यहाँ तक ​​​​कि हम वयस्कों के लिए भी कभी-कभी किसी के द्वारा कहे जाने पर तुरन्त कुछ लिखना मुश्किल हो जाता है। उन छोटे बच्चों को भी ऐसा ही लगा, उन्होंने सोचा और सोचा, एक कच्चा लेख (rough note) तैयार किया और फिर उस कागज़ पर लिखा जो मैंने उन्हें दिया था।

तीसरी कक्षा के लिए, मैंने उन्हें एक तस्वीर दिखाई, जिसमें एक लड़की और एक लड़का बारिश का आनन्द ले रहे हैं और उन्हें तस्वीर अच्छी तरह से देखने के बाद वह लिखने के लिए कहा जो कुछ भी उनके मन में आए।

छात्र ‘अ’ ने अच्छी तरह से वर्णन किया कि बादल कितना सुन्दर दिखता है, उसका रंग और बनावट कैसी है। अपने विचारों का वर्णन करने के लिए उसके द्वारा शब्दों का बहुत अच्छा प्रयोग किया गया था। एक और छात्र ‘ब’ ने एक कहानी लिखी जिसमें एक भाई और एक बहन बारिश में खेल रहे थे और उनकी माँ उन्हें बारिश में नहीं खेलने के लिए कहती है वरना वे बीमार पड़ जाएँगे। लेकिन बच्चों ने माँ की एक नहीं सुनी और वह नाराज़ हो गई। फिर वे अपनी माँ से माफी माँगते हैं और कहते हैं कि वे दोबारा ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन किसी कारण माँ मर जाती है, बच्चे ने यह नहीं लिखा कि माँ कैसे मर जाती है, और कहानी का अन्तिम वाक्य यह था कि बच्चे घर वापस चले जाते हैं और अन्ततः वे भी भूख से मर जाते हैं क्योंकि घर पर उनके लिए खाना बनाने वाला कोई नहीं था।

कक्षा IV में, मैंने उन्हें अपनी मर्ज़ी से कुछ भी लिखने के लिए कहा, जो एक कहानी या कोई घटना या उनके जीवन के अनुभव हो सकते हैं।

छात्र ‘स’ ने एक कुत्ते और एक हाथी के बारे में एक कहानी लिखी जो सबसे अच्छे दोस्त हैं और हाथी कुत्ते के लिए मछली पकड़ता है और फिर वे दोनों उसे पकाते और खाते हैं, कुत्ते और हाथी के बीच के घनिष्ठ सम्बन्ध के बारे में थोड़े विवरण हैं जो आनन्ददायक हैं। प्रधानाध्यापक ने जब मुझे यह पढ़कर सुनाया तो मैं अपनी हँसी नहीं रोक सकी। कक्षा IV के अधिकांश बच्चों ने अपने परिवार, गाँव और स्कूल के बारे में लिखा। यह सभी संकेतक हैं जो किसी के लिए यह बात समझने में मददगार हैं कि रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) पद्धति से यहाँ के बच्चों को कितनी अच्छी तरह लाभ मिल रहा है।”

3.2  कुई बोलने वाले बच्चे

कक्षा में शिक्षण का अवलोकन करते हुए शोधकर्ता ने ध्यान दिया कि लगभग हर कक्षा में बच्चों का एक छोटा समूह ऐसा प्रतीत हो रहा था जो या तो बिलकुल भी भाग नहीं ले रहे थे या अन्य बच्चों की तुलना में बहुत कम भाग ले रहे थे। पूछताछ करने पर यह बात सामने आई कि अक्सर शान्त दिखाई पड़ने वाले बच्चे, जो सीखते हुए प्रतीत नहीं हो रहे थे, और साथ-साथ अन्य बच्चे भी, उन घरों से आते थे जिनमें उड़िया नहीं बोली जाती थी और जो इस भाषा से परिचित नहीं थे। चूँकि यह एक अनुदैर्ध्य अध्ययन नहीं है, इस समय यह कहना सम्भव नहीं है कि क्या इन बच्चों ने अन्ततः कक्षा V पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ दिया। उपाख्यानात्मक साक्ष्यों से यह प्रतीत होता है कि जो बच्चे कक्षा में दूसरों जितना नहीं बोलते थे और चुप रहते थे, उनमें अक्सर अनुपस्थित रहने और कक्षा V पूर्ण करने से पहले पढ़ाई बन्द करने की प्रवृत्ति होती थी। शिक्षक इस बात को लेकर उलझन में थे कि इन बच्चों के साथ कैसे काम किया जाए। उन्होंने दण्ड या अन्य कठोर उपायों का उपयोग नहीं किया, लेकिन उनकी ऐसे बच्चों की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति थी। इस पहलू पर बाद के खण्ड में चर्चा की जाएगी जो शिक्षकों और उनके शिक्षण से सम्बन्धित है।

3.3  शिक्षक विकास

दूर-दराज़ के ज़िलों में काम करने के इच्छुक प्रेरित और सक्षम शिक्षकों को काम पर रखने में आने वाली कठिनाइयों के कारण आदिवासी बच्चों की शिक्षा में सुधार के लिए नागरिक समाज संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किए जाने वाले प्रयास और जटिल हो जाते हैं। योग्यता प्राप्त शिक्षक जो शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण होते हैं, वे सरकारी नियुक्तियाँ पाना पसन्द करते हैं। एक आदर्श दुनिया में, यह एक अच्छी बात होगी और हम उम्मीद करेंगे कि बच्चे इन शिक्षकों से अच्छी तरह सीखेंगे। हालाँकि, जैसा कि पहले बताया गया है और जैसा कि शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) और अन्य अध्ययनों से संकेत मिलता है, आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों के अधिगम का स्तर चिन्ता का विषय बना हुआ है। इसके अलावा, अग्रगामी सहित कई गैर-सरकारी संगठनों ने पाया है कि बी.एड. या प्रमाणित शिक्षक (Certified Teacher) योग्यता प्राप्त शिक्षक शिक्षण की सूत्रित शैलियों से बाहर निकलने और ऐसे अनुकूली और अभिनव समाधान प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं जो बच्चों के अधिगम स्तर में सुधार करने में सक्षम हों। शिक्षक प्रशिक्षण और उनके पेशेवर/व्यावसायिक विकास के पारम्परिक तरीके अत्यन्त अधोगामी और स्कूल और कक्षा की वास्तविकताओं से बहुत अलग हैं जो कार्यप्रणाली पर अधिक प्रभाव डालने में असमर्थ हैं।

इस प्रकार शिक्षकों डी-स्कूलिंग (de-schooling) और अधिक रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए उन्हें पुनः कुशल बनाना एक बड़ी चुनौती थी। आंशिक रूप से इस चुनौती को नए युवाओं को ‘शिक्षा साथियों’ या सहायक शिक्षकों के रूप में भर्ती करके संबोधित किया गया था। प्रभावी शिक्षक विकास में पहला महत्त्वपूर्ण कदम भर्ती प्रक्रिया के साथ शुरू हुआ। चयन प्रक्रिया में उच्च माध्यमिक या उच्च योग्यता वाले आवेदकों को एक लिखित परीक्षा देने की आवश्यकता थी जिसके माध्यम से उनकी लेखन दक्षता का मूल्यांकन किया गया था। केवल अच्छे लेखन कौशल वाले उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए चुना गया था। अधिक महिलाओं को शामिल करने और ऐसे उपयुक्त योग्यता प्राप्त शिक्षा साथियों को खोजने का एक साभिप्राय निर्णय लिया गया था जो आदिवासी समुदायों से सम्बन्धित हों। चुने गए 18 शिक्षा साथियों में से सात महिलाएँ थी, छह के पास कॉलेज की डिग्री थी और नौ आदिवासी समुदायों के थे।

शिक्षा साथी विकास कार्यक्रम निम्नलिखित प्रमुख सिद्धान्तों पर आधारित था:

  • चर्चा और संवादात्मक सत्रों के माध्यम से वैचारिक समझ विकसित करना
  • बच्चों और कक्षा शिक्षण का अवलोकन करना
  • रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) कार्यक्रम के लिए भलीभाँति तैयार किए गए पाठ्यक्रम सम्बन्धी संसाधनों का प्रावधान
  • शिक्षण-अधिगम गतिविधियों का अनुभव प्राप्त करने के अवसर प्रदान करना
  • प्रेक्षकों की उपस्थिति में योजना बनाना और पढ़ाना और उसके बाद पढ़ाए गए पाठ (पाठ अध्ययन) पर समूह की मध्यस्थता में चिन्तन करना
  • कार्यस्थल के दौरों और सहायता सहित सतत अनुवर्ती बातचीत
  • छात्र अधिगम का आवधिक मूल्यांकन
  • व्यक्तियों का सम्मान
4. जाँच-परिणाम

4.1  छात्रों पर प्रभाव  
4.1.1  भय का निवारण

इस तथ्य का उल्लेख शिक्षा साथियों, अन्य पर्यवेक्षकों और बच्चों के अभिभावकों द्वारा कई बार किया गया है कि बच्चे अब स्कूल से डरते नहीं हैं और स्कूल आने और पढ़ने में अधिक से अधिक रुचि दिखा रहे हैं। यह देखते हुए कि साथियों ने स्वयं विद्यार्थियों के रूप में कठोर और सत्तावादी स्कूली शिक्षा का अनुभव किया था, यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। परियोजना के तहत आने वाले स्कूलों के बच्चे अधिक आत्मविश्वासी थे और आगंतुकों के साथ स्वतंत्र रूप से बातचीत करने में समर्थ थे। बच्चों ने खुद बताया कि उन्हें अब स्कूल आना पसन्द था क्योंकि शिक्षक मिलनसार हैं और सीखना मज़ेदार हो गया था। बच्चों के बारे में बेहतर समझ विकसित करने और अधिक सहानुभूतिपूर्ण बनने के लिए साथियों ने माता-पिता के साथ अनौपचारिक रूप से बातचीत की। वे अपने छात्रों को भावनात्मक और शैक्षिक दोनों प्रकार की सहायता प्रदान करने में सक्षम थे। बच्चों को व्यक्तिगत रूप से जानने के कुछ दिलचस्प परिणाम थे जैसा कि एक साथी के इस बयान से संकेत मिला “… पहले कोई उपस्थिति रिकॉर्ड नहीं रखा जाता था लेकिन अब उपस्थिति लिए जाने के दौरान बच्चे हमें बताते हैं कि कौन मौजूद है और कौन नहीं।”

4.1.2  बेहतर उपस्थिति

बच्चे स्कूल जाने में अधिक नियमित हो गए हैं। वे जल्दी स्कूल आने लगे हैं और सिर्फ मध्याह्न भोज (mid-day meal) के लिए नहीं आ रहे हैं। जब साथियों ने उनके साथ स्कूल आने के लिए बच्चों को बेसब्री से इन्तज़ार करते देखा तो वे खुद जल्दी स्कूल आने के लिए जोश महसूस करने लगे। जो बच्चे आश्रम स्कूलों में नामांकित थे, लेकिन छात्रावास में रहने के इच्छुक नहीं होने के कारण घर वापस आ गए थे, अब वे नियमित रूप से गाँव के स्कूल में जाने लगे हैं।

4.1.3  बेहतर पठन

साथियों के प्रयासों का एक स्पष्ट संकेतक बच्चों के पठन स्तर में प्रगति थी जैसा कि मध्य-रेखा मूल्यांकन (mid-line evaluation) में दर्शाया गया है। प्रारम्भ में, केवल 11% बच्चे ही पठन मूल्यांकन परीक्षण (reading assessment tests) में 70% अंक पाने में सक्षम थे। शिक्षा साथियों द्वारा किए गए लगभग सात महीने के काम के बाद, यह 11% से बढ़कर 46% हो गया जो एक बड़ी छलांग थी।

4.2  शिक्षण पर प्रभाव
4.2.1  व्यक्तिगत शिक्षार्थी पर ध्यान

शिक्षकों में प्रत्येक बच्चे के प्रति अत्यधिक जागरूकता और संवेदनशीलता विकसित हुई है। वे अब अपने विद्यार्थियों के बारे में सामान्य शब्दों में बात नहीं करते थे और प्रत्येक बच्चे की प्रगति का पता लगाने में सक्षम थे। एक साक्षात्कार में, एक शिक्षा साथी ने कहा, “कक्षा अवलोकन में, मैं देखता हूँ कि कौन ध्यान दे रहा है और कौन पीछे छूट रहा है या परेशान हो रहा है। जो बच्चे पिछड़ रहे हैं, हम उनसे सवाल पूछेंगे। अगर हम उन्हें कोई कहानी पढ़ा रहे हैं, तो कहानी खत्म होने के बाद हम उनसे कम से कम एक सवाल तो पूछ ही लेते हैं।”

हालाँकि यह कुछ ऐसा प्रतीत हो सकता है जो सभी शिक्षकों के लिए मानक होना चाहिए, लेकिन वास्तव में स्थिति वैसी नहीं थी जैसा कि इस अध्ययन से पहले के कक्षा अवलोकनों से प्रमाणित होता है। शिक्षकों ने अध्ययन कक्ष के सामने खड़े होकर पाठ पढ़ाया और बच्चों की ओर से अवांछनीय व्यवहार के रूप में मानी जाने वाली चीज़ों/हरकतों पर अंकुश लगाने को छोड़कर वे बच्चों की अन्य बातों पर ध्यान देते प्रतीत नहीं होते थे। अधिक शिक्षार्थी-केन्द्रित शिक्षण की दिशा में बढ़ने में आंशिक रूप से शिक्षार्थियों को विशिष्ट व्यक्तियों के रूप में देखने की क्षमता शामिल है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि शिक्षक में प्रत्येक बच्चे की अधिगम सम्बन्धी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अपनी अध्यापन-कला अनुकूलित और संशोधित करने की इच्छा और क्षमता हो। कक्षा में साथियों की बातचीत से संकेत मिलता है कि वे इन दोनों का अभ्यास करते हैं। अपेक्षित अधिगम में कमियों के लिए बच्चों या परिस्थितियों को दोष देने की तरफ शिक्षा साथियों का अब कम झुकाव है और वे खुद को ऐसे सशक्त पेशेवर के रूप में देखने में सक्षम हैं जो शैक्षणिक समस्याएँ हल करने में समर्थ हैं।

4.2.2  बच्चे के अनुकूल शिक्षण सामग्री और तरीकों का इस्तेमाल करना

“रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) के तहत शिक्षक प्रशिक्षण से पहले, हम बच्चों को काम में नहीं लगा पाते थे। प्रशिक्षण ने यह समझने में हमारी मदद की है कि उनकी रुचि क्या है और उन्होंने मेरे पाठों को जल्दी समझना शुरू कर दिया है।” (एक साक्षात्कार में शिक्षा साथी)

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) कार्यक्रम इस धारणा पर आधारित है कि प्रत्येक बच्चा स्वाभाविक रूप से अपने आस-पास की दुनिया को समझने की प्रक्रिया में लगा होता है और वास्तविक शिक्षा इस स्वाभाविक प्रवृत्ति पर आधारित होनी चाहिए। इसके अलावा, कार्यक्रम मानता है कि संज्ञानात्मक विकास में खेल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। कार्यक्रम में शामिल शिक्षकों के साथ इन दो प्रमुख अन्तर्दृष्टियों पर पूर्णतया चर्चा की गई क्योंकि हम चाहते थे कि शिक्षा साथी रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) प्रक्रिया के साथ गम्भीरतापूर्वक जुड़ें और कक्षा प्रक्रियाएँ/तकनीकें यंत्रवत क्रियान्वित न करें।

प्रशिक्षण केवल संसाधनों और प्रक्रियाओं से शिक्षकों को परिचित कराने पर ही केन्द्रित नहीं था, बल्कि उन्हें सामग्री तैयार करने के पीछे मौजूद रही सोच के बारे में सोच-विचार करने में संलग्न करना था। प्रशिक्षण के इस दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप दो प्रमुख विकास हुए हैं : क) शिक्षा साथी प्रदान किए गए संसाधनों का बुद्धिमानीपूर्वक उपयोग करने में समर्थ हुए हैं और अपनी कक्षा की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अनुकूलित कर सकते हैं; ख) कई मामलों में, शिक्षा साथी अपनी स्वयं की शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) विकसित करने और अपनी कक्षाओं में इनका प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सक्षम रहे हैं।

एक शिक्षा साथी का यह कहना था, “मैं कम से कम यह जानता हूँ कि मैं उन्हें अब उसी तरह शिक्षा नहीं दे रहा हूँ। मैं उन्हें वैसे ही पढ़ाता था जैसे मुझे हमारे प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया गया था। शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) और कक्षा अवलोकन का महत्त्व मुझे समझ आ गया है… मैं शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) और कहानी के चार्ट के माध्यम से पढ़ाता हूँ जो आसानी से समझने में बच्चों की मदद करते हैं, हमारे समय में हमारे पास यह नहीं थे। बच्चों के साथ खेलने से भी मदद मिलती है। कहानी चार्ट में, यदि एक बच्चा नहीं बता पाता है, तो दूसरा बच्चा उसकी समझने में मदद करेगा। शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) जैसे जानवरों और पक्षियों के चित्रों के कार्ड मददगार रहते हैं। गणित में, मैंने अपनी खुद की शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) लकड़ियों और पत्थरों से विकसित की।”

बच्चों के पूर्व ज्ञान का सम्मान करना रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) की अध्यापन-कला के प्रमुख सिद्धान्तों में से एक है और शिक्षा साथी सफलतापूर्वक यह कर रहे हैं। वे प्रारम्भिक पुस्तकों के गीतों का उपयोग करते हुए बच्चों के लिए अनुकूल तरीकों के माध्यम से पढ़ाने में अधिक कुशल हो गए हैं। अधिगम को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए, शिक्षक खेल और शिक्षण-अधिगम-सामग्री (TLM) आधारित गतिविधियों का इस्तेमाल करते हैं और ऐसी खेल (play-way) गतिविधियों का उपयोग करके बच्चों के अधिगम का मूल्यांकन करने में भी सक्षम हैं। यह बच्चों द्वारा बहुत पसन्द किया जाता है।

एक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान, शिक्षा साथियों को कहानियों और कक्षा में ‘ज़ोर से पढ़कर सुनाए जाने’ की भूमिका से परिचित कराया गया और वे कहानी-आधारित पाठों का सफलतापूर्वक उपयोग करने में सक्षम हुए हैं। बच्चों ने इन पाठों से मिलने वाला आनन्द व्यक्त किया है और ऐसा लगता है कि इसने सकारात्मक शिक्षक-छात्र सम्बन्धों को और मज़बूत किया है। साथियों द्वारा कक्षा का वातावरण आनन्दमय बनाए जाने से स्कूल छोड़ने वाले कुछ बच्चों को स्कूल लौटने की प्रेरणा मिली है।

4.2.3  भाषाई अन्तरों को संबोधित करना

बच्चे की भाषाई पहचान को सकारात्मक रूप से स्वीकार करने का महत्त्व रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण तत्व रहा है। एक साथी के साक्षात्कार का यह उद्धरण किसी बच्चे की भाषा को स्वीकार करने के महत्त्व का भलीभाँति चित्रण करता है, “जब हम शुरू में स्कूल गए, तब हम अप्रशिक्षित थे। अगर मैं विद्यार्थियों से उनका नाम, उनका पता, उनके माता-पिता का नाम पूछता, तो वे जवाब नहीं देते थे। मैंने उनसे उड़िया भाषा में बात करने की कोशिश की और उसे समझना उनके लिए वास्तव में मुश्किल रहा होगा लेकिन प्रशिक्षण के बाद, मैंने जो पहला काम किया, मैंने उनसे देसिया (स्थानीय भाषा) में बात करना शुरू किया और इसने उन्हें वास्तव में प्रोत्साहित किया और हमारे बीच बेहतर संवाद सम्भव बनाया।”

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) की प्रारम्भिक पुस्तकें (primers) उड़िया भाषा में हैं और उम्मीद थी कि साथी बच्चे की घरेलू भाषा और उड़िया के बीच भाषा मध्यस्थ के रूप में कार्य करेंगे। कुई और पिंगो जैसी आदिवासी भाषाओं में उड़िया गीतों का अनुवाद करने के लिए प्रारम्भिक प्रोत्साहन के बाद, शिक्षा साथी अब सहजता से ऐसा कर रहे हैं। उन्हें बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा का सम्मान करने और बच्चों द्वारा समझी जाने वाली किसी भी भाषा में उनके साथ स्वतंत्रतापूर्वक संवाद करने के लिए संवेदनशील बनाया गया था। नौरंगपुर में सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों और स्कूल प्रबन्धन समिति (SMC) सदस्यों के साथ एक सहभाजन कार्यशाला (sharing workshop) के दौरान, साथी ने बताया कि रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) की प्रारम्भिक पुस्तक ‘कौ डाके का’ के माध्यम से कुई बोलने वाले बच्चों की सीखने में मदद कैसे की जा सकती है। “पहले चरण में, बच्चों को अपनी भाषा के शब्दों का उपयोग करते हुए चित्रों की पहचान करने के लिए कहा जाता है। इसके बाद बच्चों को उसी तस्वीर के लिए उड़िया शब्द से अवगत कराया जाता है। चित्र के नीचे उड़िया शब्द लिखा हुआ होता है। तब बच्चा कुई शब्द कहता है और उसका उड़िया शब्द कहते हुए दोनों भाषा में शब्द सीखता है। इसके बाद शिक्षक बच्चे को अपनी नोटबुक/कॉपी में उड़िया शब्द लिखने के लिए प्रोत्साहित करता है।”

4.2.4  प्रणालीगत चुनौतियों के जवाब में कार्यवाही करना

रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) परियोजना के प्रारम्भिक चरण में जो आश्चर्यजनक बात उभरी वह थी बहु-कक्षा स्थितियों का प्रसार । रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) परियोजना में प्रारम्भिक पुस्तकें (primers) और अन्य शिक्षण-अधिगम सामग्री (TLM) विकसित करते समय इसकी विशेष रूप से परिकल्पना नहीं की गई थी। हालाँकि, एक बार जब यह स्पष्ट हो गया कि शिक्षा साथियों को बहु-कक्षा अध्ययन कक्षों में काम करना है, तो इस पर काफी गहन चर्चा हुई कि इसे कैसे सम्भाला जा सकता है। उन्होंने समस्याओं पर चर्चा की और वह रणनीतियाँ भी साझा की जिन्हें उन्होंने समस्या हल करने के लिए आज़माया था। पाई गई स्थिति के कारणों का विश्लेषण करने के बजाय समस्या-समाधान पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। साथी वहाँ मौजूद परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने में समर्थ रहे हैं और उन्होंने अनेक समाधान प्रस्तुत किए जिन्हें उन्होंने एक-दूसरे के साथ स्वतंत्र रूप से साझा किया। उल्लेखनीय है कि इस दौरान बाद की समीक्षा/प्रशिक्षण बैठकों में, बहु-कक्षा अध्ययन कक्षों को सम्भालने की समस्या सामने नहीं आई जो इस बात का संकेत था कि साथियों ने स्थिति को प्रबन्धित करने और बच्चों को समझ के साथ पढना सिखाने के अपने काम को जारी रखने के तरीकों को खोज लिया था।

5.  निष्कर्ष

अन्य बातों के अलावा, यह केस स्टडी शिक्षक विकास कार्यक्रम में प्रयोगशाला-विद्यालय के महत्त्व पर प्रकाश डालती है। यह अपेक्षा की जाती है कि ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (DIETs) जैसे शिक्षक विकास संस्थानों के साथ प्रयोगशाला-विद्यालय संलग्न रहें और इस केस स्टडी से पता चलता है कि इनमें शिक्षक के व्यावसायिक विकास सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा करने की कितनी अधिक क्षमता है।

अग्रगामी की रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) परियोजना की समग्र योजना प्रभावी शिक्षक विकास के साथ भलीभाँति तालमेल कायम करने में सफल सिद्ध हुई है। कई वर्षों के काम के आधार पर पठन की प्रारम्भिक पुस्तक का विकास शिक्षा साथियों के कक्षा शिक्षण में सहायता करने में सक्षम था। कार्यशालाओं ने उन्हें रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) कार्यक्रम की बुनियादी अवधारणाएँ समझने और व्यवहार में इसका पालन करने में भी मदद की। काम में संलग्न अनुभवी शिक्षकों को देखने के अलावा, साथियों को एक अभिनव पठन कार्यक्रम में बच्चों के साथ काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी प्राप्त हुआ। नियमित रूप से कार्यस्थल के दौरों ने यह सुनिश्चित किया कि साथियों को अपना काम अपेक्षित तरीके से करने के लिए मिलने वाली सहायता और दबाव दोनों का अनुभव हो। दूसरी कार्यशाला में प्रासंगिक मुद्दे सामने रखने की अनुमति दी गई और बहु-कक्षा की स्थिति में अध्यापन कक्ष प्रबन्धन के कई समाधान उभर कर सामने आए। रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) प्रक्रिया पर बहु-कक्षा स्थिति का क्या प्रभाव पड़ सकता है, इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता है। शिक्षा साथियों के शुरुआती दल से कुछ साथी बाहर निकल गए हैं और कार्यक्रम चक्र में नए व्यक्तियों के प्रवेश के लिए अब तक कोई सुनियोजित जवाबी कार्यवाही नहीं की गई है।

दीर्घकालिक स्थिरता और मापनीयता के दोहरे प्रश्न क्षितिज पर दिखाई दे रहे हैं और इन दोनों प्रश्नों के समाधान के लिए सावधानीपूर्वक सोच-विचार कर तैयार की गई योजना क्रियान्वित करना आवश्यक है। यह अफसोस की बात होगी कि वर्तमान में रचनात्मक भाषा विकास प्रयास (CLDE) परियोजना का हिस्सा रहे उत्साही युवा पुरुषों और महिलाओं को परियोजना समाप्त होने के बाद शिक्षा के क्षेत्र से बाहर जाना होगा। अदिवासी बच्चों की शिक्षा में इन प्रयासों का संचयी योगदान क्या होगा शायद यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

जहाँ तक ​​शिक्षक के व्यावसायिक विकास का सम्बन्ध है, यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह एक सतत प्रक्रिया है, न कि एक बार की घटना। एक बार जब शिक्षक अपने प्रयासों के फल का स्वाद चख लेते हैं, तो वे आजीवन सीखने की अपनी यात्रा शुरू करते हैं। प्रक्रिया को कायम रखने और इसे आगे बढ़ाने के लिए, हमें निम्नलिखित बातों पर विचार करने की आवश्यकता है :

  • शिक्षकों के समुदाय का निर्माण और उसकी सहायता करना।
  • शिक्षकों के लिए नोट्स का आदान-प्रदान करने और समाधान और नवाचार साझा करने के लिए मंच तैयार करना।
  • उपयोगी संसाधन जैसे लेख, शिक्षण पत्रिकाएँ, किताबें, वीडियो और शिक्षण-अधिगम सामग्री (TLM) उपलब्ध कराना।
  • शिक्षकों को लगातार सहायता और प्रतिपुष्टि प्रदान करना।
  • शिक्षक लीडर्स विकसित करना।

लेखिका
डॉ इंदिरा विजयसिंह स्कूल ऑफ़ एजुकेशन, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ी हुई हैं और शिक्षक विकास और सस्टेनेबिलिटी के लिए शिक्षा के क्षेत्रों में काम करती हैं। यह लेख ओडिशा में अग्रगामी के साथ उनके कार्य पर आधारित है।

References

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