Lessons from Practice

अनुसूचित जनजातियों के लिए एक बेहतर जीवन

सामुदायिक वन अधिकारों के प्रभावी और सतत उपयोग की दिशा में आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) के प्रयास उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा लगभग 560 परिवारों को शामिल करते हुए ज़िले के कोरची ब्लॉक के छह गाँवों में सामुदायिक वन अधिकारों के प्रभावी प्रवर्तन के लिए आदिवासी सामुदायिक संगठनों, ग्राम सभाओं को मज़बूत बनाने के लिए कार्य किया जाता है। इन क्षेत्रों में गोण्ड और कंवर जनजातियाँ निवास करती हैं। प्रयासों का उद्देश्य स्थाई कटाई, और स्थानीय वन, कृषि वनस्पतियाँ और पेड़ उगाने के माध्यम से आजीविका के अवसरों को मज़बूत बनाना था।

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अनुसूचित जनजातियों के लिए एक बेहतर जीवन: गढ़चिरोली (महाराष्ट्र) से प्राप्त सबक 

द्वारा : वी शांताकुमार एवं सुब्रत मिश्रा

1. परिचय

भारत में अनुसूचित जनजातियाँ (STs) मानव विकास सूचकांक (HDI) में सबसे नीचे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Program) (UNDP, Factsheet 2011) के आकलन के आधार पर, भारत में अनुसूचित जनजातियों के मानव विकास संकेतक अन्य समुदायों की तुलना में 54% कम हैं। इस अनुमान के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों की आबादी के तीन-चौथाई से अधिक भाग की गरीबी बहुआयामी मानी जा सकती है। यह उनकी शैक्षिक उपलब्धियों में भी परिलक्षित (reflected) होता है। 2011 की जनगणना के आधार पर, भारत में अनुसूचित जनजातियों और अन्य लोगों की साक्षरता दर के बीच लगभग 14% अंकों का अन्तर है। इस सामाजिक समूह के लगभग 50% बच्चे प्राथमिक से माध्यमिक कक्षाओं में अवस्थान्तर के दौरान स्कूल छोड़ देते हैं (उसी जनगणना में दर्ज शैक्षिक स्थिति के आधार पर)। जब वे दसवीं कक्षा में होते हैं तो उनमें से लगभग 80% स्कूल छोड़ देते हैं और इसलिए, केवल 20% ही हाई-स्कूल परीक्षा में बैठते हैं।

उनके जीवन के तरीके की अन्तर्निहित ताकत और अनेक प्रकार की आगे की सोच (forward-thinking) और सकारात्मक विशेषताओं के बावजूद उन्हें यह वंचन (deprivation) सहते रहना पड़ता रहता है। उनके बीच प्रचलित लैंगिक मानदण्ड मुख्यधारा के समाज की तुलना में अधिक प्रगतिशील हैं। लिंगानुपात सहित कई विशेषताओं में यह परिलक्षित होता है, जो भारत में अन्य समूहों की तुलना में महिलाओं के प्रति अपेक्षाकृत अनुकूल है। समुदाय के भीतर की बातचीत अधिक जीवन्त और कम पदानुक्रमिक होती हैं। सम्पत्ति के मालिकों और भूमिहीन-श्रमिकों के बीच इस तरह का संरचनात्मक विखण्डन दुर्लभ है। उनके पास एक देशज (indigenous) ज्ञान-आधार भी है जो उन्हें कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों में जीवित रहने में सक्षम बनाता है, और यह ज्ञान हर जगह मनुष्यों के लिए मूल्यवान साबित हो सकता है।

1.1  किसी राज्य के समग्र मानव विकास सूचकांक (HDI) में सुधार अनुसूचित जनजातियों के तुलनात्मक पिछड़ेपन को सम्बोधित नहीं कर सकता

केरल राज्य की स्थिति से यह स्पष्ट है, जो मानव विकास संकेतकों के मामले में सभी भारतीय राज्यों में सर्वोच्च स्थान पर हैं। इसके बावजूद, केरल में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली राज्य की कुल ग्रामीण आबादी की तुलना में अनुसूचित जनजातियों के बीच ग्रामीण गरीबी ढाई गुना अधिक है, जो 2005 में 9.4% थी (HDR 2005)। राज्य के विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए वंचन के एक संयुक्त सूचकांक का आंकलन दर्शाता है कि गैर-अनुसूचित जाति/जनजाति की आबादी की तुलना में अनुसूचित जनजाति का सूचकांक 115% अधिक है। एक ज़िले में जहाँ अनुसूचित जनजातियों की सघनता सबसे अधिक है, वे वंचितों के उच्चतम स्तर पर हैं। केरल में अनुसूचित जनजाति की आबादी की शैक्षिक उपलब्धियाँ भी राज्य की बाकी आबादी की तुलना में निम्न हैं। उनमें और दूसरों के बीच निरक्षरता दर में 15% का अन्तर था। यह सभी आँकड़े संकेत देते हैं कि राज्य के समग्र विकास के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों का तुलनात्मक पिछड़ापन मिट नहीं सकता और इसके लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता होगी।

1.2 आदिवासी पहचान का मानव विकास में रुकावट बनना आवश्यक नहीं

भारत के कुछ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों का जीवन अपेक्षाकृत बेहतर है, जैसा कि मिज़ोरम और पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों में देखा जा सकता है। मिज़ोरम, जहाँ की 80% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों से सम्बन्धित है, साक्षरता दर के मामले में दूसरे स्थान पर है – देश में 74% साक्षरता के मुकाबले 91.6% (HDR 2013)। राज्य मानव विकास रिपोर्ट (State Human Development Report) (2013:27) के अनुसार, ‘राज्य पूरे देश से बहुत आगे है, विशेष रूप से उच्च प्राथमिक नामांकन के मामले में’।

अनुसूचित जनजाति की आबादी की सघनता वाले अन्य क्षेत्रों की तरह, मिज़ोरम में वन प्रमुख प्राकृतिक संसाधन हैं, जो 90% भूमि क्षेत्र में फैले हुए हैं। भूमि का सामुदायिक स्वामित्व और झूम कृषि प्रचलित हैं, हालाँकि इन्हें कृषि में निजी निवेश की वृद्धि के प्रति हतोत्साहनों के रूप में देखा जा सकता है। संक्षेप में, आदिवासी पहचान, वनों पर निर्भरता, या प्राकृतिक संसाधनों का सामुदायिक स्वामित्व मानव विकास संकेतकों में सुधार के लिए गम्भीर अवरोध नहीं हो सकते हैं जैसा कि उत्तर-पूर्व भारत में स्पष्ट है। इसलिए, सम्भव है भारत के अन्य हिस्सों में अनुसूचित जनजातियों के अल्पविकास के लिए अन्य कारक ज़िम्मेदार हों।

1.3 तुलनात्मक रूप से अनुसूचित जनजातियों के विकास की बेहतर स्थिति वाले मध्य भारत के भाग

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी ब्लॉक्स इसके उदाहरण हैं। यह क्षेत्र महाराष्ट्र के पूर्वी छोर पर है और नागपुर से लगभग 170 किमी दूर स्थित है। ज़िले में भूमि का एक बड़ा हिस्सा वनों से आच्छादित है। इस ज़िले में अनुसूचित जनजातियों की आबादी लगभग 45% है। प्रमुख जनजाति गोण्ड है, और इस जनजाति के भीतर कुलीन वर्ग या राजा हुआ करते थे। ज़िले में कुल साक्षरता दर 70.6% है (2011 की जनगणना के आधार पर), और स्कूलों में सकल नामांकन अनुपात 80.7% है (2011-12, Maharashtra Human Development Report, 2012)। शिशु मृत्यु दर (IMR) 2003 में 64 प्रति 1000 से घटकर 2010 में 36 हो गई है। गढ़चिरौली की अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति तब अधिक स्पष्ट हो जाती है जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि इससे सटे हुए छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा और बस्तर ज़िलों में साक्षरता दर क्रमशः 30.2% और 43.9% है जबकि गढ़चिरौली में साक्षरता दर 60.1% है (2001 की जनगणना के आधार पर)।

2.  गढ़चिरौली के उत्तरी ब्लॉक्स में अनुसूचित जनजातियाँ

दिसम्बर 2017 में गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी ब्लॉक्स (कुरखेड़ा और कोरची) में हमारा सीमित फील्डवर्क वहाँ के अपेक्षाकृत बेहतर जीवन स्तर का संकेत देता है। इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवार स्वच्छ और आरामदायक घर बनाने के लिए पारम्परिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। उनकी बिजली और पेयजल तक पहुँच है। सभी परिवारों की शौचालय तक पहुँच है और खुले में शौच के कोई संकेत दिखाई नहीं देते हैं। लगभग सभी बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में जाते हैं (आमतौर पर गाँव के भीतर स्थित), हालाँकि कई दसवीं कक्षा पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। इन बस्तियों के ऐसे लड़के और लड़कियाँ भी हैं जो स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अनुसूचित जनजाति के परिवारों के कई छात्र स्थानीय कॉलेजों में पढ़ते हैं। वहाँ के लोगों के साथ की गई चर्चाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि खाद्य संकट का कोई गम्भीर मुद्दा नहीं है, यह शायद भूमि तक पहुँच और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कामकाज के कारण भी सम्भव हुआ है। लगभग सभी परिवारों के पास उचित आकारों की भूमि पाई जाती है, जो तीन से पाँच हेक्टेयर तक होती है। चूँकि यह बस्तियाँ जंगलों से घिरी हुई हैं, कृषि भूमि उपजाऊ है और हर साल धान की एक फसल की खेती के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। हालाँकि, इन परिवारों की आय का मुख्य स्रोत गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) का संग्रह और बिक्री है, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत सामुदायिक अधिकारों के माध्यम से सम्भव हुआ है। इसके बारे में और वहाँ की अनुसूचित जनजातियों के जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारकों के बारे में निम्नलिखित अनुभागों में अधिक विस्तार से चर्चा की गई है।

2.1   गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) पर सामुदायिक अधिकार

वन अधिकार अधिनियम (FRA) के क्रियान्वयन के माध्यम से, अनुसूचित जनजातियों को उनकी बस्ती के आस-पास के जंगल के एक विशिष्ट क्षेत्र के गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) पर सामुदायिक अधिकार प्राप्त हैं। इन उत्पादों में बाँस, तेन्दूपत्ता (बीड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है), महुए के फूल (जिसका स्थानीय शराब बनाने के लिए किण्वन किया जाता है) और शहद शामिल हैं। हालाँकि यह लोग वन अधिकार अधिनियम (FRA) लागू होने के पहले से ही इन उत्पादों को इकट्ठा करते रहे हैं, लेकिन उनके अधिकारों को संरक्षित नहीं किया गया था और उन्हें इन उत्पादों को अनिवार्य रूप से वन विभाग को बेचना पड़ता था। वन अधिकारी नियमित रूप से उन्हें रिश्वत और कमीशन के लिए परेशान करते थे। वन अधिकार अधिनियम (FRA) लागू होने से यह शोषण खत्म हो गया है। गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) का संग्रह और बिक्री व्यक्तियों द्वारा नहीं की जाती है बल्कि समुदाय की मध्यस्थता के माध्यम से की जाती है। समुदाय जंगलों से एकत्र किए गए उत्पादों की नीलामी करते हैं और उन्हें उन लोगों को बेचते हैं जो सबसे अधिक कीमत चुकाते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।

हमने पाया है कि इन उत्पादों की बिक्री के माध्यम से प्रत्येक परिवार को लगभग एक लाख रुपए या उससे अधिक की पर्याप्त आय (निर्वाह के अन्य स्रोतों के सम्बन्ध में) मिल रही है। ऐसी बस्तियाँ हैं जिनमें कम घर (10-11) हैं जहाँ उनमें से प्रत्येक के लिए इन उत्पादों की बिक्री के माध्यम से सालाना लगभग दस लाख रुपए प्राप्त करना असामान्य बात नहीं है। हमने देखा कि ग्राम सभाओं में गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) की बिक्री से प्रत्येक परिवार को प्राप्त हुई आय प्रदर्शित की गई है। यह प्रथा पारदर्शिता सुनिश्चित करती है। इसलिए, लोगों को गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) की बिक्री के माध्यम से एक उल्लेखनीय धनराशि और निजी भूमि पर खेती के माध्यम से भोजन प्राप्त होता है, जिसमें धान की खेती के लिए एक खेत और सब्ज़ियों और फलों की खेती के लिए एक पिछवाड़े का आँगन शामिल हो सकते हैं।

2.1.1   सामुदायिक अधिकार बनाम व्यक्तिगत अधिकार

ऐसे कई कारण हैं जो वन संसाधनों के उपयोग के सामुदायिक अधिकारों को व्यक्तिगत अधिकारों से बेहतर बनाते हैं। सबसे पहले, शहद और बाँस जैसे कुछ वन संसाधनों के उपयोग के लिए व्यक्तिगत/निजी अधिकार आवण्टित करना और लागू करना मुश्किल होगा। इसके अलावा, एक मानव बस्ती के आस-पास के जंगल का भौगोलिक क्षेत्र उपयोग के लिए निर्धारित (इन दिनों ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम – GPS का उपयोग करते हुए) किया जा सकता है। परिवारों या व्यक्तियों के बीच क्षेत्र का ऐसा विभाजन कहीं अधिक जटिल होगा।

वर्तमान में, प्रत्येक आदिवासी परिवार के लिए एक विशेष वन संसाधन, जैसे बाँस, के उपयोग से राजस्व के दो स्रोत हैं। पहला है उस वस्तु को इकट्ठा करने के लिए मज़दूरी, और; दूसरा है रॉयल्टी (राजस्व में से लागत – मज़दूरी और अन्य मदें घटा कर – पूर्वनिर्धारित मानदण्डों के आधार पर परिवारों की संख्या से विभाजित)। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि जो परिवार बीमारी जैसे कारणों से निकासी या संग्रह में भाग नहीं ले सकते हैं, उन्हें भी एक निश्चित राशि का राजस्व प्राप्त होगा। व्यक्तिगत अधिकारों के मामले में, संग्रह नहीं करने वाले परिवारों के लिए राजस्व केवल दूसरों को उनके अधिकारों के हस्तांतरण के माध्यम से या श्रमिकों के रोज़गार के माध्यम से आएगा, और इन संसाधनों के दीर्घकालिक उपयोग पर इसके अन्य प्रभाव हो सकते हैं।

सामुदायिक अधिकारों का प्रवर्तन या अमल (enforcement) उन व्यक्तियों पर कुछ हद तक नियंत्रण और अनुशासन सुनिश्चित करता है जो एक बढ़ते पेड़ को काटने जैसे अवैध और हानिकारक कार्यों में लिप्त हो सकते हैं। किसी भी अवैध गतिविधि के मामले में, समुदाय वन विभाग के प्रति जवाबदेह होगा और इसलिए वे अपने सदस्यों के कार्यों के प्रति अधिक सतर्क रहते हैं। व्यक्तिगत अधिकारों के मामले में, समुदायों के लिए यह सम्भव नहीं होता कि वे इस तरह का सहकर्मी दबाव डाल सकें और व्यक्ति बाहरी (सम्भवतः गैर-आदिवासी) लोगों के साथ औपचारिक या अवैध रूप से इन अधिकारों के व्यापार में लिप्त हो सकते हैं जिन्हें आदिवासी समुदायों द्वारा नियंत्रित करना सम्भव नहीं हो।

सामुदायिक अधिकार वनों के संरक्षण में भी मदद करते हैं क्योंकि आदिवासी बस्तियाँ जंगलों के भीतर स्थित होती हैं और जो आदिवासी उस इलाके से परिचित रहते हैं वे उन्हें निर्दिष्ट की गई वस्तुओं के संग्रह के लिए जंगल में घूमते हैं। यह वन-संरक्षण की समग्र लागत घटाने में मदद करता है।

सामुदायिक अधिकार अन्तर-सामुदायिक असमानता भी घटाते हैं और जनजातीय परिवारों के बीच सामुदायिक भावनाएँ मज़बूत करने में मदद करते हैं। जो परिवार बीमारी या परिवार के मुखिया की मृत्यु जैसी आपातकालीन स्थितियों का सामना कर रहे होते हैं, उन्हें आर्थिक बोझ और संसाधनों के सहभाजन से सहायता प्राप्त होती है।

2.2   सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता

इस क्षेत्र ने जनजातीय समुदायों के नेताओं के अधीन विभिन्न रूपों में सामाजिक लामबन्दी देखी है। समाजवादी आदिवासी नेता स्वर्गीय श्री नारायण सिंह उइके के नेतृत्व में ‘जबरन जोत आन्दोलन’ के बैनर तले आदिवासी आबादी द्वारा भूमि-उपयोग (भूमि-अतिक्रमण) अधिकारों के लिए एक आन्दोलन और संघर्ष किया गया था। वे पाँच बार संगठन सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रहे। श्री उइके 1952-1972 के बीच सक्रिय थे, बाद में 1977-2015 के बीच संघर्ष का नेतृत्व स्वर्गीय श्री सुखदेवबाबू उइके ने किया। भूमि के स्वामित्व को वैध करने के लिए आन्दोलन का नेतृत्व करने के अलावा, इन लोगों ने जंगल बचाओ आन्दोलन, शराब मुक्ति आन्दोलन और रोजगार गारण्टी के लिए भी काम किया।

2.3   गैर-सरकारी संगठनों जैसे आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) की भूमिका

आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) संगठन (जिसका अर्थ है, हम अपने स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध हैं) की स्थापना एक चिकित्सक सतीश गोगुलवार1 और एक प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता सुभदा देशमुख ने की थी। वे जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संचालित एक आन्दोलन ‘सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन’ (Agitation for Total Revolution) से प्रभावित थे और जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित युवा संगठन – छात्र युवा संघर्ष वाहिनी (CYSV) के सक्रिय सदस्य थे। ‘न्यायसंगत संघर्ष’ और ‘रचनात्मक कार्य’ के संयोजन के लिए जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रेरित होकर गोगुलवार और देशमुख ने अस्सी के दशक की शुरुआत में गढ़चिरोली ज़िले के उत्तरी हिस्सों में इन्हें व्यवहार में लाने का फैसला किया।

वे मोहन हीराबाई हीरालाल (Mohan Hirabai Hiralal) और स्वर्गीय श्री सुखदेवबाबू उइके द्वारा शुरू किए गए कार्य में शामिल हो गए। प्रारम्भ में, उन्होंने जागरूक आदिवासी संगठन के माध्यम से आदिवासी आबादी द्वारा भूमि अतिक्रमण के खिलाफ आन्दोलन में सहायता करने के लिए काम किया। सामाजिक आन्दोलनों के साथ-साथ उनके प्रारम्भिक संघर्ष ने भूमि-जोत अधिकारों की स्थापना की दिशा में बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया और परिणामस्वरूप 1984 में संगठन की स्थापना की गई।

उस समय महाराष्ट्र में एक रोजगार गारण्टी योजना (EGS) लागू थी। हालाँकि, गढ़चिरोली ज़िले में मौसमी बेरोज़गारी और गरीबी के दौर आते रहते थे लेकिन इसके बावजूद लोगों में जागरूकता की कमी के कारण वहाँ इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन का स्तर खराब था। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) ने रोजगार गारण्टी योजना (EGS) के बारे में जागरूकता पैदा करने और लोगों को योजना के क्रियान्वयन की माँग करने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया।

आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) ने स्वर्गीय श्री एन एस उइके द्वारा प्रवर्तित जन संगठनों द्वारा समर्थित सभी आन्दोलनों से जुड़ाव कायम रखा। इन संगठनों में बंधकम और लकड़ कामगार संगठन (Building and Wood Worker Association), और जागरूक आदिवासी संगठन शामिल हैं। डॉ. सतीश गोगुलवार 1984 तक श्री उइके के साथ जुड़े रहे।


आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) कार्यालय में प्रदर्शित एक सन्देश
2.3.1         स्वास्थ्य के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण

हालाँकि एक चिकित्सक होने के नाते संस्थापक डॉ. गोगुलवार आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने में रुचि रखते थे, स्वास्थ्य के प्रति एक एकीकृत दृष्टिकोण में भी उनका विश्वास था, जिसके लिए आजीविका, पानी, स्वच्छता आदि में सुधार की आवश्यकता होती है। संगठन ने स्वयं-सहायता का मार्ग अपनाया जो सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य की प्रतिबद्धता के रूप में उसके नाम में परिलक्षित होता है। उदाहरण के लिए, संगठन ने पिछवाड़े के आँगन में खेती और सब्ज़ियों के सेवन के माध्यम से लौह (iron) की कमी की समस्या हल करने का प्रयास किया।

गढ़चिरौली ज़िले में उन ग्रामीणों के स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए की गई अन्य उल्लेखनीय पहल भी देखी गईं, जिनकी उन्नत और संस्थागत चिकित्सा देखभाल तक पहुँच नहीं हो। गढ़चिरौली में 1986 में दो चिकित्सकों अभय और रानी बांग द्वारा स्थापित एक संगठन सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एण्ड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ (SEARCH) द्वारा की गई परिवार आधारित नवजात शिशु देखभाल के प्रसार की पहल प्रसिद्ध है। परिवार आधारित नवजात शिशु देखभाल (Bang and Bang, 2005) के सुनियोजित क्षेत्र परीक्षण (field trials) किए गए थे। उन्होंने ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और पारम्परिक जन्म परिचारकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एण्ड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ (SEARCH) की गतिविधियों का प्रारम्भिक चरण ज़िले के भीतर गैर-आदिवासी आबादी के बीच था। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) और अन्य संगठनों ने आदिवासी बस्तियों में इन गतिविधियों का विस्तार किया है। इन प्रयासों से गढ़चिरौली ज़िले के कोरची ब्लॉक में नवजात शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है।

गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी भागों में आदिवासी आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) द्वारा संचालित अन्य कार्यक्रम हैं:

  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में समुदाय आधारित निगरानी और नियोजन के तहत इन ब्लॉक्स के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (PHC) और उप-केन्द्रों के अन्तर्गत आने वाली ग्राम स्वास्थ्य पोषण और स्वच्छता समितियों (VHNSC) का गठन और कामकाज का सुदृढ़ीकरण। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (PHC), तालुका और ज़िला स्तर पर विभिन्न समितियों का गठन किया जाता है।
  • नवजात शिशु की परिवार आधारित देखभाल को बढ़ावा देना और विवाहित महिलाओं और किशोरियों को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना।
  • सरकार द्वारा नियुक्त किए गए स्वास्थ्य कार्यकर्ता के अतिरिक्त किसी ग्राम स्तरीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता का चयन एवं प्रशिक्षण।
  • समाज के सबसे गरीब और सीमान्त वर्गों (marginalized section) को स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लक्ष्य के साथ ज़िले के दो उत्तरी ब्लॉक्स में चलित स्वास्थ्य चिकित्सालय संचालित करना जिनसे 75 गाँव लाभान्वित होते हैं। चलित स्वास्थ्य चिकित्सालय स्वास्थ्य शिक्षा की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  • विकलांगों/दिव्यांगों का समुदाय आधारित पुनर्वास। इस कार्यक्रम के तहत लगभग 650 लोगों को आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) से सहायता मिलती है। इनमें से कुछ लाभार्थियों ने आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) और स्थानीय समुदाय की सहायता से छोटे व्यवसाय शुरू किए हैं। संगठन उन्हें ऑनलाइन विकलांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करने में मदद करता है जो सरकार से लाभ प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) ने विकलांगों के बीच स्वयं सहायता समूहों का गठन किया है और उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया है।
2.3.2   सामुदायिक वन अधिकारों के सतत उपयोग को बढ़ावा देना

सामुदायिक वन अधिकारों के प्रभावी और सतत उपयोग की दिशा में आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) के प्रयास उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा लगभग 560 परिवारों को शामिल करते हुए ज़िले के कोरची ब्लॉक के छह गाँवों में सामुदायिक वन अधिकारों के प्रभावी प्रवर्तन के लिए आदिवासी सामुदायिक संगठनों, ग्राम सभाओं को मज़बूत बनाने के लिए कार्य किया जाता है। इन क्षेत्रों में गोण्ड और कंवर जनजातियाँ निवास करती हैं। प्रयासों का उद्देश्य स्थाई कटाई, और स्थानीय वन, कृषि वनस्पतियाँ और पेड़ उगाने के माध्यम से आजीविका के अवसरों को मज़बूत बनाना था।

चयनित गाँवों के लिए सामुदायिक वन क्षेत्र का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) आधारित चिन्हांकन किया गया। प्रत्येक गाँव के लिए एक जैव विविधता रजिस्टर तैयार किया गया, और गाँव के भीतर ही पौधशालाएँ विकसित करने के प्रयास किए गए ताकि आवण्टित वन क्षेत्र में जैव विविधता बढ़ाई जा सके। विभिन्न गाँवों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए केन्द्रीकृत पौधशालाएँ विकसित की गईं।

सामुदायिक वन क्षेत्र में पाँच गाँवों को शामिल करते हुए सामूहिक कार्यवाही के माध्यम से लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस के बागान विकसित किए गए। आदिवासी आबादी के लिए बाँस आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है और पुन: रोपण किए बिना बाँस की कटाई के परिणामस्वरूप आय के एक स्थाई स्रोत की क्षति सम्भव है। इसलिए, बाँस की कटाई और खेती के लिए एक स्थाई प्रणाली की योजना बनाना और क्रियान्वित करना बाँस पर निर्भर आबादी की खुशहाली के लिए महत्त्वपूर्ण है। सफलता के ऐसे मामले मौजूद हैं जिनमें आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) की सहायता से आदिवासी समुदायों ने इसे क्रियान्वित किया है।

जंगल में बाँस रोपण करते हुए
2.3.3   खाद्य सुरक्षा बढ़ाना

समुदाय की खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए, भूमिधारकों को गाँव में कृषि प्रथाओं को मज़बूत बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। चावल की पारम्परिक किस्में और रागी, कोडो और कुटकी जैसे गौण मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाया जा रहा है जिनका इन समुदायों द्वारा पारम्परिक रूप से उपयोग किया जाता रहा है।

आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) द्वारा जिन अन्य कृषि गतिविधियों को मज़बूती प्रदान की गई है उनमें शामिल हैं – ऐसी फसलों की खेती करना जो एक अधिक समृद्ध आहार (तिलहन, दालें, कार्बोहाइड्रेट) प्रदान कर सकती हैं; कन्द, लता, सब्ज़ियों और चारे के लिए पिछवाड़े के आँगन के बहु-स्तरीय बगीचे [Multi-level Backyard Garden (MBG)] लगाना; कम लागत वाली अभिनव लघु सिंचाई तकनीकों (स्टेडी फ्लो पिचर, बॉटल ड्रिप, ग्रेविटी टैंक) का उपयोग करना; खाद और कीट नियंत्रण के लिए खेत, पिछवाड़े के बगीचे और मवेशियों के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करना; जैविक-यांत्रिक-कार्बनिक कीट नियंत्रण तंत्र का उपयोग करना, और अल्प-बाह्य-आदान-कृषि करना (स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों से स्वदेशी बीज बैंक, खाद और कीटनाशक तैयार करना)।

पौधे और वृक्ष विकसित किए जा रहे हैं
2.3.4   राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (NREGS) का क्रियान्वयन

अपनी स्थापना के बाद से आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) की एक प्राथमिकता राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना (नरेगा यानी NREGS) का क्रियान्वयन थी। इस उद्देश्य की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, उन्होंने इसके विषय में योजना बनाने, लागू करने और निगरानी के लिए इस इलाके की स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर काम किया है। नरेगा योजना के तहत किए गए कुछ कार्य भूमि और वन संसाधनों का सतत उपयोग सम्भव बनाते हैं। उन्होंने महिलाओं को लामबन्द (संगठित) किया है और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से ऋण तक उनकी पहुँच बढ़ाई है। ऋणों की वापसी दर लगभग 96% है, जो स्वयं सहायता समूहों के भीतर साथियों के दबाव की प्रभावशीलता का एक स्पष्ट संकेत है।

संक्षेप में, गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी हिस्से में जनजातीय आबादी के अपेक्षाकृत बेहतर मानव विकास संकेतक आदिवासी नेताओं की सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता और आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) जैसे संगठनों द्वारा किए गए रचनात्मक कार्य और क्षमता निर्माण की बदौलत प्राप्त किए गए प्रतीत होते हैं। कुछ अन्य सम्भावित कारकों के सम्भावित प्रभाव पर विचार करते हुए इस प्रकल्पना की पुष्टि किए जाने की ज़रूरत है।

2.4   अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों का सम्भावित प्रभाव खारिज करना
2.4.1   माओवादी शक्तियों का प्रभाव

छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र राज्यों में फैले इस क्षेत्र के कई ज़िलों में नक्सली (या माओवादी) शक्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश ज़िलों में अनुसूचित जनजातियों के जीवन में कोई स्पष्ट विकास नहीं हुआ है और इस बात का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है कि इन चरम वामपंथी शक्तियों की मौजूदगी ने अनुसूचित जनजातियों को किसी भी उल्लेखनीय तरीके से सशक्त बनाया है। हालाँकि भूमि अधिकारों का प्रावधान इस राजनीतिक सक्रियता2 का एक एजेण्डा है, इस सम्बन्ध में उनकी सफलता स्पष्ट नहीं है। वन अधिकार अधिनियम (FRA), जो कानूनी रूप से अनुसूचित जनजातियों को कुछ अधिकार प्रदान करता है, महाराष्ट्र के ज़िलों के अलावा अन्य अधिकांश ज़िलों में सही अर्थों में लागू नहीं किया गया है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) का क्रियान्वयन या शिक्षा का प्रसार माओवादी शक्तियों की माँग की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं है।

2.4.2   अनूठी भौगोलिक विशेषताएँ

गढ़चिरौली के विकास संकेतकों में तुलनात्मक सुधार इसकी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं के कारण हुआ प्रतीत नहीं होता क्योंकि जो गढ़चिरौली के पड़ोसी ज़िले हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के अधीन हैं, उन्होंने इसी तरह के विकास का अनुभव नहीं किया है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और बस्तर ज़िलों में भी गढ़चिरौली के समान भू-भाग और भू-आवरण मौजूद हैं और वहाँ भी जनजातीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा है।

गढ़चिरौली के दक्षिणी ब्लॉक्स भी मानव विकास संकेतकों के मामले में उत्तरी ब्लॉक्स की तुलना में अपेक्षाकृत पिछड़े प्रतीत होते हैं जहाँ आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) सक्रिय है।

टेबल 1 : विकास संकेतक : उत्तर बनाम दक्षिण गढ़चिरौली
        उत्तर गढ़चिरौली     दक्षिण गढ़चिरौली    
कुरखेड़ा कोरची अरमोरी भामरागढ़ एटापल्ली अहेरी
1    ग्रामीण विद्युतीकरण 63.36% 40.03% 68.82% 18.31% 23.81% 46.71%
2    सकल सिंचित क्षेत्र 6601हेक्टेयर 3391 हेक्टेयर 8669 हेक्टेयर 539हेक्टेयर 1779  हेक्टेयर 1597 हेक्टेयर
3   एक परिवार की भूमि जोत (1 हेक्टेयर से कम) 298 78 184 28 70 57
4     कोई भूमि नहीं 37 172 214 249 342 214
5     मनरेगा के तहत काम करने वाले कुल व्यक्ति 22000 14000 22000 2000 3500 6000
6    शिक्षा का अधिकार (RTE) के 10 बुनियादी मानदण्ड पूर्ण करने वाले स्कूलों का प्रतिशत 46.45% 49.64% 46.15% 6.67% 35.98% 19.76%
7    प्रवासी लोगों की संख्या 7.97% 5.26% 17.24% 10.63% 8.63%
8    स्वास्थ्य सूचकांक में ब्लॉक्स का क्रम 7 6 8 5 9 11
9    बैंक खाते – पुरुष 86% 75% 52% 68% 66%
10   बैंक खाते – महिलाएँ 90% 75% 53% 62% 58%
11   साक्षरता क्रम – पुरुष 89.29 82.42 66.90 63.57 69.80 77.58
12   साक्षरता क्रम – महिलाएँ 73.45 65.40 70.67 45.67 54.50 62.45
13   सड़कों से जुड़े गाँवों का प्रतिशत 60.8% 37.6% 74.7% 27.3% 29.1% 35.2%

14   शौचालय की सुविधा प्राप्त

       परिवारों का प्रतिशत           36.68%     16.83%  36.14%  8.66%       12.54%  21.01%

इस अन्तर के पीछे अलग-अलग कारण हो सकते हैं। एक तर्क है कि दक्षिणी क्षेत्र को जनजाति के भीतर के कुलीन वर्गों (या राजाओं) द्वारा नियंत्रित किया गया था और इस तरह का नियंत्रण बड़े पैमाने पर लोगों की लामबन्दी के लिए अनुकूल नहीं था। समाजवादी, आदिवासी नेताओं श्री नारायणसिंह और सुखादेवबाबू उइके के नेतृत्व में ‘जबरन जोत आन्दोलन’ (भूमि अतिक्रमण अधिकारों के लिए आन्दोलन) जैसे आन्दोलन इस क्षेत्र में सक्रिय नहीं थे। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) की गतिविधियाँ भी उत्तरी ब्लॉक्स पर केन्द्रित थीं हालाँकि इसने अपनी गतिविधियों को दक्षिण में फैलाने का प्रयास किया है, लेकिन वहाँ इसे वैसा समर्थन नहीं मिला जैसा उसे उत्तरी ब्लॉक्स में मिला।

2.4.3   राज्य की नीतियाँ और कार्यक्रम

गढ़चिरौली के उत्तरी ब्लॉक्स में अनुसूचित जनजातियों के विकास की स्थिति में तुलनात्मक सुधार केवल महाराष्ट्र राज्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के कारण नहीं है। सम्भव है कि महाराष्ट्र राज्य ने वहाँ इन वर्गों के बीच राजनीतिक लामबन्दी के कारण अपने पड़ोसियों से आगे रहते हुए दलित और आदिवासी आबादी की बेहतरी के लिए प्रगतिशील नीतियाँ अपनाई हो, हालाँकि, गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी और दक्षिणी भागों के बीच विकास संकेतकों में पाए जाने वाले स्पष्ट अन्तर के कारण यह गढ़चिरौली ज़िले में अनुसूचित जनजातियों के विकास संकेतकों में सुधार की व्याख्या नहीं करता है। इसलिए राज्य सरकार द्वारा नीतियाँ और कार्यक्रम अपनाए जाना, हालाँकि महत्त्वपूर्ण है, यह लोगों की जागरूकता और सार्वजनिक कार्यक्रमों की प्रभावी ढंग से माँग और उपयोग करने की क्षमता के अभाव में लोगों के किसी समूह के विकास संकेतकों में सुधार लाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। इसमें स्थानीय राजनीतिक/सामाजिक लामबन्दी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, प्रतिबद्ध गैर-सरकारी संगठनों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, खासकर लोगों की और अपने संगठनों की क्षमता के निर्माण में।

2.4.4   भूमि का निजी स्वामित्व

भूमि का निजी स्वामित्व जनजातीय आबादी के विकास को सम्भव बनाने वाला महत्त्वपूर्ण कारक नहीं हो सकता। यह दो तथ्यों से स्पष्ट होता है। पहला, अनुसूचित जाति के परिवारों की प्रति व्यक्ति भूमि जोत केरल में न केवल अनुसूचित जाति बल्कि उच्च जाति के हिन्दुओं की तुलना में औसतन अधिक है। केरल की The Human Development Report (2006: 65) में कहा गया है कि अनुसूचित जनजातियों में भूमि का औसत आकार 0.68 एकड़ है, जो अनुसूचित जाति (0.32 एकड़), अपिव (0.40 एकड़) और अन्य (0.63 एकड़) की तुलना में अधिक है। दूसरा, छत्तीसगढ़ और क्षेत्र के अन्य ज़िलों में आदिवासी परिवारों को भी उनकी राज्य सरकारों द्वारा भूमि आवण्टित की गई है। भूमि की उपलब्धता से वास्तव में अनुसूचित जनजातियों की आय में वृद्धि या विकास की स्थिति में सुधार सम्भव नहीं है। चूँकि वे परम्परागत रूप से भूमि पर खेती नहीं करते थे, इसलिए अनुभव की कमी के कारण उन्हें कृषि के माध्यम से समृद्ध होने में अधिक समय लग सकता है। खेती योग्य भूमि या खेती के स्वामित्व से अनुसूचित जनजातियों की असुरक्षितता घटना सम्भव नहीं है क्योंकि अन्य सामाजिक समूहों के किसानों को भी भारत के कई हिस्सों में गम्भीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। केरल जैसे राज्यों के अनुभव से पता चलता है कि अनुसूचित जनजातियों की निम्न स्थिति का एक प्रमुख निर्धारक सीमित आय है जो उन्हें गैर-कृषि कार्यों से प्राप्त होती है।

इन चर्चाओं ने संकेत दिया है कि स्थानीय, सामाजिक सक्रियता और आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) जैसे संगठनों के काम ने गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी ब्लॉक्स में अनुसूचित जनजातियों के विकास की स्थिति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहाँ की जनजातीय आबादी को सामुदायिक वन अधिकारों के क्रियान्वयन और प्रभावी उपयोग और स्थानीय सक्रियता से लाभ हुआ है, और गैर-सरकारी संगठन (NGO) की कार्यवाही ने उन्हें अपने अधिकारों को समझने, उनकी माँग करने और उनका उपयोग करने में मदद की है।

3.  चुनौतियाँ जो कायम हैं

फिर भी, इस विवरण का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि गढ़चिरौली ज़िले की अनुसूचित जनजातियों को उनके कल्याण के सम्बन्ध में किसी गम्भीर चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता है। अनौपचारिक चर्चाओं से संकेत मिलता है कि परिवारों का आकार बड़ा है क्योंकि प्रजनन दर (प्रति महिला बच्चों की संख्या) तीन से अधिक बनी हुई है, और इससे भविष्य में भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घट सकती है। जीवन प्रत्याशा में सुधार को देखते हुए उन्हें परिवार के आकार को नियंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए उच्चतर स्तर की शिक्षा और युवा महिलाओं को कौशल-आधारित गैर-कृषि कार्यों में लगाना आवश्यक हो सकता है।

इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास एक अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौती है। यदि राज्य सरकारें निजी उद्यमों को खनिज संसाधन निकालने की अनुमति देती हैं, तो उन्हें आदिवासी आबादी के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा, जो न केवल अपना हिस्सा घटाए जाने से पीड़ित हैं, बल्कि लाभ से प्रेरित उद्यमों द्वारा अपनाए जाने वाले अनैतिक तरीकों के कारण उन्हें इस बात का डर है कि वे इन प्राकृतिक संसाधनों को पूरी तरह गंवा देंगे। संसाधनों के सतत दोहन और स्थानीय आबादी के साथ लाभों को साझा करने वाला मॉडल लागू किया जाना चाहिए।

कृषि में उनकी भागीदारी और गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) के संग्रह से परे युवाओं को नौकरियों की आवश्यकता होगी। इस उद्देश्य के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यवर्धन के अवसरों का पता लगाया जाना चाहिए। ऐसे मूल्यवर्धन के लिए कौशल विकास के लिए उच्च विद्यालयों और उच्चतर शिक्षा की आवश्यकता हो सकती है। स्थानीय लोगों द्वारा अपनी उत्पादकता और आय बढ़ाने के उद्देश्य से व्यवहार्य लघु-उद्यमों की स्थापना में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इनमें स्थानीय (खेत और वन) उत्पाद बेचने के प्रयास शामिल हो सकते हैं जो जैविक तरीके अपनाते हुए उत्पादित किए जाते हैं।

4.       आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) की सतत भूमिका की आवश्यकता

हालाँकि वनों पर सामुदायिक अधिकारों की रीति अपनाना आवश्यक है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं है। इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि यह समुदाय इन संसाधनों का स्थाई तरीके से प्रबन्धन करेंगे। संसाधनों की हानिकारक निकासी की सम्भावना तब होती है जब समुदाय संक्रमण के दौर से गुज़र रहे हों और उनके लोग विस्तृत विश्व के साथ विभिन्न तरीकों से बातचीत कर रहे हों (वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान, प्रवास, शिक्षा और संचार के माध्यम से)। इसलिए, बाहरी हितधारकों (जैसे गैर-सरकारी संगठनों) की मदद से सामुदायिक संस्थानों को मज़बूत करके इन समुदायों को उनके लिए उपलब्ध संसाधनों को एक स्थाई तरीके से प्रबन्धित करने के लिए लगातार प्रेरित करने की आवश्यकता है। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) द्वारा ग्राम सभाओं को मज़बूत बनाने के लिए किए गए प्रयास अनुकरणीय हैं ताकि ग्राम सभाएँ अपने सदस्यों को अच्छी प्रथाओं का पालन करने के लिए राज़ी कर सकें।

भरिटोला गाँव में वृक्षारोपण के लिए बाड़ लगाना
पौधों के लिए किया गया जल संग्रह

आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) ने वनों में संसाधन आधार की पुनः पूर्ति करने के लिए बाँस के वृक्षारोपण (और ऐसे अन्य पौधों और पेड़ों) जैसी परियोजनाओं के क्रियान्वयन का दायित्व सम्भाला है। उनका सहयोग उन नवाचारों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण होगा जिनसे वन संसाधनों की उत्पादकता बढ़ सकती है (जैसे जैव प्रौद्योगिकी या ऊतक संवर्धन का उपयोग) और जिनमें बाह्य सामग्री आदानों (जैसे उर्वरकों) के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है।

5.  गढ़चिरौली से प्राप्त सबक

महाराष्ट्र राज्य के गढ़चिरौली ज़िले के उत्तरी भाग में अनुसूचित जनजातियों के मानव विकास संकेतकों में तुलनात्मक सुधार सामर्थ्यकारी कारकों के संयोजन के कारण हुआ प्रतीत होता है। सम्भवतः महाराष्ट्र राज्य द्वारा लागू की गई कुछ प्रगतिशील नीतियों, जिसके पीछे दलित और आदिवासी सक्रियता का तुलनात्मक रूप से लम्बा इतिहास रहा है, ने एक सामर्थ्यकारी वातावरण बनाया है। हालाँकि, राज्य की प्रगतिशील नीतियों और कार्यक्रमों के लाभों की प्राप्ति के लिए स्थानीय स्तर की सक्रियता की आवश्यकता है ताकि इनके वितरण और प्रभावी क्रियान्वयन की माँग उठ सके। सम्भव है जनजातीय आबादी के बीच स्थानीय आन्दोलनों, जैसे स्वर्गीय नारायणसिंह और स्वर्गीय सुखदेवबाबू उइके के नेतृत्व में हुए आन्दोलन, ने उस ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया को शुरू किया हो। सम्भव है गैर-सरकारी संगठनों जैसे आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) के प्रयासों ने स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करने और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर स्थाई आजीविका का अभ्यास करने की क्षमता में वृद्धि की हो। आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) का द्विआयामी दृष्टिकोण रहा है (1) लोगों को सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन की माँग करने के लिए सशक्त बनाना; (2) स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने और जीवन की बेहतर गुणवत्ता का आनन्द लेने की उनकी क्षमता को बढ़ाना।

गढ़चिरौली ज़िले से प्राप्त सबक संक्षेप में निम्नानुसार प्रस्तुत किए जा सकते हैं :

  • गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) पर अनुसूचित जनजातियों के सामुदायिक अधिकारों को यथाशीघ्र और यथासम्भव ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए।
  • आदिवासी समुदायों की ग्राम सभाओं को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है ताकि वे गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) के संग्रह और बिक्री और उनसे होने वाली आय के वितरण में मध्यस्थता कर सकें।
  • सामुदायिक संस्थानों को सहकर्मी दबाव और अन्य तरीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यक्ति पारिस्थितिक रूप से हानिकारक तरीके से वन संसाधनों का दोहन न करें।
  • संसाधन आधार मज़बूत करने के लिए समुदायों और वन विभाग के सहयोग से गैर-सरकारी संगठनों की ओर से अभिनव कार्यवाही की जा सकती है (जैसे बाँस और अन्य ऐसे पेड़ और पौधे लगाना) ताकि भविष्य में गैर-इमारती वन उत्पादों (NTFP) से होने वाली आय में गिरावट न हो।
  • सरकार द्वारा सार्वजनिक सेवाओं, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। हालाँकि, इसके लिए गैर-सरकारी कार्यवाही की भी आवश्यकता हो सकती है, पहले, क्षेत्र की विशिष्ट विशेषताओं, जैसे जनसंख्या का कम घनत्व, शहरों से दूरी, स्थानीय लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं आदि पर विचार करके अभिनव समाधानों का प्रयास करना। दूसरे, इन लोगों के बीच इन सेवाओं की माँग उठाने की निरन्तर आवश्यकता है। परिवार का औसत आकार बड़ा बना हुआ है और इसे केवल लड़कियों के बीच शिक्षा के प्रसार, शादी की उम्र बढ़ाने और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच के माध्यम से ही संबोधित किया जा सकता है।

लेखक
वी शांताकुमार, प्रोफ़ेसर, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी
सुब्रत मिश्रा, प्रोग्राम मैनेजर, फ़ील्ड प्रैक्टिस एंड स्टूडेंट्स अफ़ेयर, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी

नोट: यह रिपोर्ट वी शांताकुमार (V Santhakumar) और सुब्रत मिश्रा (Subrat Mishra) ने आम्ही आमच्या आरोग्यसाठी (AAA) के संस्थापकों और सदस्यों के सहयोग से तैयार की है। अनंत गंगोला (Anant Gangola) ने प्रारम्भिक मसौदे में बहुमूल्य सुझावों को जोड़ने के अलावा इस पूरे क्षेत्र के अध्ययन को सुगम बनाया है।

You can read this article in English here.

References

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