Lessons from Practice

सार्वजनिक शिक्षा में सुधार के लिए गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास

आनन्दशाला कार्यक्रम के प्रभाव को देखने के बजाय, यह रिपोर्ट भारत के इस हिस्से में स्कूली शिक्षा में सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित करती है और इन्हें दूर करने के लिए सम्भावित रणनीतियों का भी सुझाव देती है। हम उस भूमिका पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो आनन्दशाला जैसे हस्तक्षेपों द्वारा निभाई जा सकती है और इस कार्यक्रम द्वारा अपनाई गई कुछ निश्चित मुख्य प्रक्रियाओं की पहचान करते हैं।

Print Friendly, PDF & Email

सार्वजनिक शिक्षा में सुधार के लिए गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास: आनन्दशाला (समस्तीपुर, बिहार) से प्राप्त सबक

द्वारा : वी शांताकुमार एवं रमा देवी

1. परिचय

भारत की स्कूली शिक्षा में पाई जानेवाली कमियाँ अच्छी तरह से पता सर्वविदित हैं। हालॉंकि, नामांकन में सामान्य तौर पर काफी वृद्धि हुई है, अनियमित उपस्थिति, छात्रों का ड्रॉप आऊट स्कूल छोड़ना (विशेष रूप से, माध्यमिक कक्षाओं में) और सीखने की  निम्नस्तरीय उपलब्धियां, ऐसी चुनौतियां हैं जो कायम हैं। मानकीकृत जाँचों/परीक्षणों से संकेत मिलता है कि जो बच्चे स्कूल में हैं उनमें से आधे बच्चों में अपेक्षित कक्षा-स्तरीय दक्षताएं नहीं है। यद्यपि, ये परीक्षण उनकी शैक्षिक उपलब्धियों के सबसे अच्छे संकेतक नहीं माने जा सकते हैं, लेकिन अन्य आयामों के संदर्भ में भी, महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के कोई संकेत मौजूद नहीं हैं।

इस स्थिति ने कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को सरकारी स्कूलों के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया है। ये सभी गैर-सरकारी संगठन समुदायों को लामबन्द करने की सुविधा के लिए विभिन्न रणनीतियों का अनुसरण कर रहे हैं, जैसे कि ड्रॉपआउट बच्चों की सटीक समझ हासिल करने में और उनकी समस्याओं को हल करने के क्रम में उन्हीं समुदायों से आनेवाले वेतनभोगी स्वयंसेवियों का समर्थन करना; शिक्षकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करना; या स्कूलों के प्रबन्धन में सहायता करना। इनमें से अधिकांश कार्य राज्य सरकारों के साथ औपचारिक समझौते के आधार पर किए जाते हैं।

हालॉंकि, इस बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है कि इन हस्तक्षेपों को क्या चीज़ प्रभावी बनाता है या सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में टिकाऊ उन्नति की अगुवाई करता है। इनमें से कुछ हस्तक्षेपों को कम या संक्षिप्त करना पड़ सकता है और इनका प्रभाव खो हो सकता यदि इन्हें प्रोत्साहन देनेवाले सरकारी अधिकारी कार्यालय छोड़ कर  चले जाते हैं। इन बाहरी संगठनों के हस्तक्षेप से सरकार के भीतर परिवर्तन को सक्षम बनाने वालों की संख्या कैसे बढ़ाई जाए, इस बारे में भी कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है।

इसी सन्दर्भ में हम बिहार के समस्तीपुर जिले के सरकारी स्कूलों के साथ क्वेस्ट एलायन्स (Quest Alliance) के काम पर नज़र डालते हैं। यह हस्तक्षेपस्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंशन पायलट (SDPP) प्रोग्राम के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, जो 2011-15 के दौरान चार देशों में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना थी। यह 113 हस्तक्षेप स्कूलों और 107 नियंत्रण स्कूलों के साथ किया गया एक यादृच्छिक नियंत्रण परीक्षण (randomized control trial) था और ‘कक्षा V के छात्रों के सम्बन्ध में स्कूल ड्रॉप आउट (छोड़ने) के कारणों और समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए पायलट प्रायोगिक रणनीतियों (pilot strategies) को समझने के लिए डिज़ाइन और क्रियान्वित किया गया था। भारत में स्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंशन पायलट (SDPP) प्रोग्राम को क्रियान्वित करने वाली टीम  ने इस कार्यक्रम के समापन के बाद खुद को गैर-सरकारी संगठन, क्वेस्ट एलायन्स (Quest Alliance) के रूप में पंजीकृत कराया। स्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंशन पायलट (SDPP) प्रोग्राम और क्वेस्ट एलायन्स(Quest Alliance) की फॉलोअप (अनुवर्ती) कार्यवाइयों का उद्देश्य स्कूली शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना है। 2015 के बाद से, इसने बिहार की राज्य सरकार के साथ साझेदारी में समस्तीपुर जिले के एक हजार स्कूलों तक पहुँचने वाले आनन्दशाला नामक एक जिलाव्यापी शिक्षा कार्यक्रम पर ध्यान केन्द्रित किया है। 2017 में, इसने एक जिला शिक्षा प्रणाली का प्रस्ताव रखा जिसमें शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों और सरकारी शिक्षा पदाधिकारियों सहित सभी हितधारक स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बच्चों का जुड़ाव सुनिश्चित करने के साझा लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं।

यह रिपोर्ट समस्तीपुर जिले में किए गए एक अल्पकालिक फील्ड-वर्क  पर आधारित है जहाँ यह कार्यक्रम लागू किया गया है। हमने स्कूलों के एक समूह का दौरा किया और शिक्षकों, अन्य शिक्षा अधिकारियों (ब्लॉक और क्लस्टर रिसोर्स पर्सन्स), माता-पिता और क्वेस्ट एलायन्स के कर्मचारियों के साथ बातचीत की।

2. आनन्दशाला कार्यक्रम

इस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, संगठन ने स्कूल ड्रॉप आउट करने वालों के लिए एक प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली [Early Warning System (EWS)] का उपयोग करने और दूसरा बच्चों के लिए कक्षा को आकर्षक बनाकर कक्षा साझेदारी में सुधार लाने की एक संयुक्त रणनीति अपनाई। ईडब्ल्यूएस प्रणाली स्कूल के रिकार्ड देखकर और कुछ जवाबी कार्यवाई करके उन छात्रों की पहचान करती है जिनका स्कूल ड्रॉप आउट होने के जोखिम में है। हालॉंकि, भारत में कार्यक्रम का फोकस कक्षा में संवर्धन गतिविधियों पर है, जिसके लिए इसने शिक्षा अधिकारियों, जैसे ब्लॉक रिसोर्स पर्सन्स (बीआरपी BRPs) और क्लस्टर रिसोर्स कोऑर्डिनेटर्स (सीआरसी CRCs) को प्रशिक्षित किया है और उन्हीं के माध्यम से स्कूली शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया। स्कूली शिक्षा को प्रदान करने को आकर्षक बनाने और बच्चों का ड्रॉप आउट रोकने के लिए विभिन्न गतिविधियों को आजमाया गया है। इनमें छात्रों के बीच पीयर-कनेक्ट (peer-connect), बाल संसद (children’s parliament) और रचनात्मक गतिविधियों के लिए प्रत्येक दिन अन्तिम कक्षा का उपयोग शामिल है। स्कूल सभा(assembly) का उपयोग कई प्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा करने और छात्रों के बीच नेतृत्व को प्रोत्साहित करने/नेतृत्व को सुगम बनाने के लिए भी किया जाता है। हमारे अवलोकनों के आधार पर इन गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिए गए बॉक्स में दिया गया है।

बाल संसद , प्रातःकालीन सभा, अंतिम कक्षा गतिविधि

बाल संसद   

बाल संसद छात्र समितियाँ हैं जो स्कूल में विभिन्न गतिविधियों की जिम्मेदारी साझा करतीं हैं।वे स्कूल के भीतर विभिन्न कार्यक्रमों के अमल में लाने की योजना बनाने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। यह छात्र निकाय अपने स्कूल के मुद्दों का विश्लेषण करते हैं और इन्हें हल करने के लिए पहल करते हैं, जो उनके आपदा प्रबन्धन और नेतृत्व कौशल के निर्माण में योगदान देता है। वरिष्ठ वर्गों के छात्र प्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री और मंत्रियों के रूप में और कनिष्ठ वर्गों के छात्रों को सहायक मंत्रियों के रूप में नामित किया जाता है। यह छात्र विभिन्न विभागों जैसे स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, उद्यान आदि विभागों के प्रमुख हैं। वे अपनी कक्षा में अनुपस्थित रहने वाले छात्रों की एक डायरी रखते हैं और उनकी अनुपस्थिति का कारण भी दर्ज करते हैं। ये बच्चे, अपने शिक्षकों के सहयोग से, उन छात्रों के घरों पर भी जाते हैं जो नियमित रूप से अनुपस्थित रहते हैं और उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते हैं; छात्रों के बीच होनेवाले साधारण झगड़ों में मध्यस्थता करते हैं; और, स्कूल का एक साप्ताहिक समाचार पत्र तैयार करते हैं। वे अपने सीखने के स्थानों को आकर्षक बनाने में शामिल हैं, चाहे वह एक वनस्पति उद्यान तैयार करने और उसका रखरखाव करने, अपनी कक्षाओं में अधिक चित्र और चार्ट लगाने या विशेष दिनों और समारोहों के दौरान कक्षाओं की सजावट करने का कार्य हो।

सुबह की सभा

स्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंशन पायलट (SDPP) प्रोग्राम के दौरान शुरू किया गया प्रातःकालीन सभा कार्यक्रम अब भी जारी है। शिक्षकों को प्रातःकालीन सभा में मूल्य संवर्धन के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, क्योंकि यह हर दिन स्कूल की पहली गतिविधि है और इसका उचित संगठन कक्षा के बाकी घण्टों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

अन्तिम कक्षा गतिविधि

शिक्षण/सीखने–सिखाने के लिए नवाचारी कलाओं और शिल्पों (innovative arts and crafts) का उपयोग अन्तिम कक्षा की गतिविधि का मुख्य फोकस रहता है। अन्तिम 45 मिनटों का यह रचनात्मक उपयोग सुनिश्चित करता है कि छात्र स्कूल-दिवस के अन्त तक स्कूल में बना रहें। इसमें ओरिगेमी (कागज मोड़ कर विभिन्न आकृतियों आदि को  बनाने की जापानी कला), प्राकृतिक रूप से उपलब्ध रंगों (ईंटों, पत्तियों, लकड़ी के कोयला आदि) का उपयोग करते हुए पेंटिंग/चित्रकारी और (पाक्षिक) पखवाड़े में एक बार होने वाली थीम आधारित गतिविधियां भी शामिल हैं। किसी पखवाड़े के लिए थीम में पाठ्यक्रम सम्बन्धी विषय (त्योहार, पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दे, जलवायु, पेड़ों का महत्त्व, शहरी जीवन आदि) और गांव के अन्य सामान्य मुद्दे शामिल हो सकते हैं। छात्रों को समूहों में विभाजित किया जाता है और शिक्षक और छात्र एक साथ मिलकर हर एक  पखवाड़े के बाद थीम का चयन करते हैं। गतिविधियों में थीम पर एक सामान्य चर्चा, कविताओं, कहानियों, आलेख-लेखन, भूमिका निर्वाह (रोल प्ले) और ड्रॉइंग आदि का निर्माण शामिल हो सकता है। शिक्षक इसे उपयोगी मानते हैं क्योंकि यह सीखने-सिखाने में योगदान देता है, साथ ही साथ छात्रों में भाईचारे व विश्वास की भावना विकसित करने में मददगार होता है।

आनन्दशाला कार्यक्रम में इलाके के स्कूल से दसवीं और बारहवीं कक्षा पूरी करने वाले लड़कों और लड़कियों के एक समूह का ‘सामुदायिक चैंपियन’ (community champions) के रूप में इस्तेमाल किया। इन सभी स्वयंसेवकों (जिन्हें नाममात्र का मानदेय प्राप्त हुआ है) ने समुदाय में बच्चों और माता-पिता के साथ काम किया है, और शिक्षकों के साथ भी स्कूल-समुदाय के जुड़ाव को सुगम बनाने के लिए कार्य किया और इस प्रक्रिया के माध्यम से छात्रों के स्कूल से ड्रॉप आउट की सम्भावनाओं को घटाने का प्रयास किया है। यह कार्यक्रम 2015 में समाप्त हुआ इसलिए हमें इसके काम-काज को करते हुए देखने का मौका नहीं मिल पाया। हालाँकि, हम एक समुदायिक चैंपियन का साक्षात्कार कर सके और उसी साक्षात्कार पर आधारित अवलोकनों की चर्चा निम्नलिखित अनुभाग में की गई है।

आनन्दशाला कार्यक्रम के जुड़ाव का फोकस ‘टीचर ड्रॉपआउट प्रीवेंसन प्रैक्टिस’ पर था अर्थात ‘बच्चों द्वारा स्कूल से ड्रॉप आउट की रोकथाम के लिए शिक्षकों की कार्यप्रणाली’ को मजबूती प्रदान करना था। हालॉंकि, इस कार्यक्रम के प्रभाव मूल्यांकन (यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षणों के माध्यम से किया गया) ने दिखाया कि इससे वांछित परिणाम में कोई महत्त्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ था। दूसरी ओर, इस कार्यक्रम का उन छात्रों के भावनात्मक रवैये पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, जो स्कूल ड्रॉप आउट के जोखिम पर हैं। इसका माता-पिता और शिक्षकों की धारणा पर और बच्चों की उपस्थिति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है लेकिन बच्चों के सीखने की उपलब्धियों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है। संगठन के आन्तरिक रिकार्ड दर्शाते हैं कि हिन्दी पढ़ने की समझ (राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) की आधार रेखा (बेस लाइन) की तुलना में) में महत्वपूर्ण अन्तर आया है। संक्षेप में, कार्यक्रम का बच्चों द्वारा स्कूल ड्रॉप आउट पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा है। ऐसे संरचनात्मक (सामाजिक-आर्थिक और पारिवारिक) कारक मौजूद हैं जो स्कूलों में बच्चों के ठहराव पर असर डाल सकते हैं और शायद आनन्दशाला जैसे हस्तक्षेपों का इन कारकों के प्रभाव पर काबू पाने के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं हो सके। हालॉंकि, इस कार्यक्रम का शिक्षकों, शिक्षा अधिकारियों और छात्रों के कुछ वर्गों के रवैए पर प्रभाव पड़ा है जो स्कूल ड्रॉप आउट के जोखिम पर थे ।

आनन्दशाला कार्यक्रम (2012-2015) के पहले चरण के अनुभव के आधार पर और विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के माध्यम से, क्वेस्ट एलायन्स ने आगामी वर्षों के लिए एक संशोधित रणनीति तैयार की। पहली कार्यवाई है सार्वजनिक शिक्षा के भीतर परिवर्तन लीडर्स का एक समूह तैयार करना, जिसमें बी आर पी और सी आर सी जैसे लोग शामिल किए जा सकते हैं, और जो सीआरसी-शिक्षक बैठकों को सुविधा प्रदान कर सकते है; दूसरा है बाल केन्द्रित स्कूलों के आसपास अच्छे अभ्यासों की खोज करना और उनकी  पहचान करना और जिले के स्कूलों में इन अभ्यासों का प्रसार करना; और तीसरा है, सार्वजनिक शिक्षा में वांछनीय परिवर्तन लाने के लिए जिला स्तरीय समर्थन  कार्यक्रम(advocacy program) शुरू करना।

कार्यक्रम के कुछ प्रमुख पहलू हैं :

  • कार्यक्रम जिला और स्कूल स्तर पर मौजूदा नीतियों और प्रावधानों के आधार पर निर्मित किया गया है, जिससे इसके कार्यान्वयन को आसान बना देगा।
  • संगठन समझता है कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में टिकाऊ बदलाव लाने के लिए निरन्तर प्रयासों की आवश्यकता हैं। इसलिए, उन्होंने जिले में पाँच साल कार्य करने का निर्णय लिया है। हालॉंकि, उन्होंने स्कूल-आधारित दृष्टिकोण के साथ शुरुआत की है, यह पूरे जिले की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की दिशा में आगे बढ़ा है।
  • बी आर पी और सी आर सी प्रधानाध्यापक और बाल संसद के माध्यम से छात्रों में भी: विभिन्न स्तरों पर परिवर्तन लीडर्स तैयार करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। परिवर्तनकारी नेतृत्व तैयार करने के लिए उनका अप्रोच दृष्टिकोण ऊपर या बाहर से (बाहरी विशेषज्ञों द्वारा) थोपा गया प्रतीत नहीं होता है। हितधारकों को समस्याओं की पहचान करने और संघटनात्मक तरीके से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • हितधारकों के एक व्यापक वर्ग के बीच कथा वृत्तान्तों/आख्यानों और कहानियों के माध्यम से अधिक सकारात्मक संवाद सृजित करने और साझा करने का एक सायाश प्रयास किया है। हमने इसे विभिन्न हितधारकों के विश्वास को बढ़ाते हुए देखा है जो यह मानते हैं कि एक वांछनीय परिवर्तन वास्तव में सम्भव है।

वर्तमान में, संगठन द्वारा आनन्दशाला संसाधन केन्द्रों (ARCs) के एक समूह को भी चला रहा है जिसका उद्देश्य युवाओं की क्षमताएं विकसित करना और उनके लिए आजीविका(career) के अवसर निर्मित करना है। यह विभिन्न स्कूल परिसरों में क्लस्टर ट्रेनिंग सेन्टर्स में कार्यरत हैं। गतिविधियों में अंग्रेजी में संवाद कौशल सहित सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सम्बन्धी कौशल और व्यावहारिक कौशल (soft skill) विकास सम्बन्धी सत्र शामिल हैं। किशोरों और वयस्कों के लिए अलग-अलग बैच हैं। हम युवा महिलाओं को करियर (आजीविका) और उद्यमिता अवसर कार्यक्रमों में भाग लेते हुए देख सकते है। अधिकांश लड़कियों की रुचि सरकारी नौकरी पाने में थी लेकिन इस सेक्टर (क्षेत्र) में शायद अधिक अवसर न हों। हालाँकि, आनन्दशाला संसाधन केन्द्र (ARCs) सभी के लिए खुले हैं, इनमें आम तौर पर लड़कियां और युवा महिलाएं नामांकित हैं। जो प्रशिक्षण में भाग ले रहे हैं उन लोगों द्वारा अन्य लड़कियों और महिलाओं को भी आनन्दशाला संसाधन केन्द्रों (ARCs) पर उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। समय-समय पर रोज़गार मेलों (jobs fair) का भी आयोजन किया जाता है और लड़कियों को निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। यह पहल ‘सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा’ के समग्र लक्ष्य के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आनन्दशाला संसाधन केन्द्रों (ARCs) के माध्यम से नौकरी/रोज़गार के अवसरों में वृद्धि स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के लिए छात्रों के प्रोत्साहन को बढ़ा सकती है।

आनन्दशाला कार्यक्रम के प्रभाव को देखने के बजाय, यह रिपोर्ट भारत के इस हिस्से में स्कूली शिक्षा में सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित करती है और इन्हें दूर करने के लिए सम्भावित रणनीतियों का भी सुझाव देती है। हम उस भूमिका पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो आनन्दशाला जैसे हस्तक्षेपों द्वारा निभाई जा सकती है और इस कार्यक्रम द्वारा अपनाई गई कुछ निश्चित मुख्य प्रक्रियाओं की पहचान करते हैं, इन प्रक्रियाओं से प्राप्त सबकों और इनका उन क्षेत्रों की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उपयोग करने की सम्भावना की पहचान करते हैं जहाँ  स्कूल ड्रॉप आउट की दर अधिक है। हम पाते हैं कि आनन्दशाला कार्यक्रम का बी आर पी और सी आर सी जैसे शिक्षा कर्मियों पर प्रभाव एक महत्त्वपूर्ण अवसर/ सम्भावना है जिस पर अन्य संगठन ध्यान दे सकते हैं कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में संघटनात्मक/मूलभूत परिवर्तन लाने के लिए इस अवसर का उपयोग कैसे करे, इस पर भी अन्तिम खण्ड में चर्चा की गई है।

3. सामाजिक सन्दर्भ: हमारे अवलोकन

क्षेत्र में स्कूली शिक्षा की माँग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यहाँ तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की और सरकारी स्कूलों में जाने वाली लड़कियों की आकांक्षाएं बदल गई हैं और वे पुलिस कांस्टेबल, स्कूल शिक्षक या इंजीनियर बनने की ख्वाहिश/आकांक्षा रखती हैं। यहाँ तक ​​कि जिनकी कम उम्र में शादी हो गई है और जो केवल बहुत ही बुनियादी स्तर की शिक्षा पूरी कर सकीं हैं, वे भी सरकारी नौकरी पाने की इच्छा रखती हैं, और इसलिए, इनके लिए भर्ती परीक्षा देना गांवों में भी एक प्रमुख प्रथा बन गई है।

ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार सरकार ने अपने स्कूलों में अधिक निवेश करना शुरू कर दिया है। स्कूल के बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा है, हालॉंकि, अभी भी जीर्ण-शीर्ण इमारतें और अध्ययन कक्षों की कमी आम है। मध्याह्न-भोजन के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित हैं और इस उद्देश्य के लिए कुछ और महत्त्वपूर्ण प्रयास किए जा रहें हैं। ये सभी मानव विकास की दिशा में किए गए निवेश का हिस्सा हो सकते हैं, जिसको बिहार ने पिछले दो दशकों के दौरान देखा है। सम्भव है कि यह इस अवधि में राज्य में हुए राजनीतिक संक्रमण से प्रेरित हो सकते हैं, जिसमें गैर-कुलीनों ने राजनीतिक सत्ता हासिल करना शुरू कर दिया है और प्रतिस्पर्धी राजनीति को भी मजबूत किया है1। हालॉंकि, इन सभी स्कूलों द्वारा कई गम्भीर चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, विशेष रूप से उन स्कूलों द्वारा जिनका हमने समस्तीपुर जिले में दौरा किया था।

इन स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी नज़र आ रही है। नियमित शिक्षक बहुत कम हैं, शेष अतिथि या संविदा शिक्षक हैं या ऐसे हैं जिन्हें स्थानीय सरकारों द्वारा नियोजित किया गया है। इन शिक्षकों में से कुछ प्रतिनियुक्ति पर हैं या स्कूलों के बाहर, किसी अन्य कार्य की व्यवस्था में शामिल हैं और इसलिए, शिक्षण के लिए उपलब्ध नहीं हैं। हम 80 बच्चों वाली कक्षाएं देख सकते थे। शिक्षा में रुचि और सरकार और गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों के नामांकन में भारी सुधार हुआ है। हालाँकि , शिक्षा के लिए उपलब्ध सार्वजनिक संसाधनों में तदनुसार वृद्धि नहीं हुई जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) प्रबन्धनीय स्तरों तक लाया जा सके। बिहार सरकारी स्कूलों के संक्रमण के मामले में शुरुआती चरण में है और इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बच्चे इन स्कूलों का ही उपयोग करते हैं। इसका अनिवार्य रूप में अर्थ यह है कि बच्चों के एक वर्ग का झुकाव एक या अन्य किसी प्रकार के निजी स्कूलों की ओर चला जाता है, उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया है जहाँ सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो जाती है जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात में कमी आती है (कई अन्य राज्यों में देखी जाने वाली प्रवृत्ति जहाँ कई दशकों पूर्व स्कूली शिक्षा की माँग और प्रावधान में वृद्धि देखी जाने लगी थी)।

यद्यपि, क्वेस्ट एलायन्स जैसे संगठनों के काम; और शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के प्रयास के कारण स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में सुधार हुआ है, फिर भी अनियमित उपस्थिति एक गम्भीर मुद्दा बन हुआ है। किसी भी दिन स्कूलों में उपस्थिति केवल 70% के आसपास होती है। कुछ स्कूलों में यह इससे भी कम हो सकता है। किसी निश्चित दिन स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे शामिल हैं जो ‘नियमित रूप से अनियमित’ हैं या बहुत ही कम स्कूल आते हैं। हम ऐसे ही एक बच्चे के घर गए और ऐसा प्रतीत होता है कि माता-पिता (जिनका हमने साक्षात्कार किया) और शिक्षक इस समस्या को हल कैसे किया जाए के बारे में अनिश्चित हैं। हमने कुछ ऐसे बच्चों के घर जाने की भी कोशिश की जो उस दिन स्कूल में नहीं गए थे। गाँव में रहने वाले एक व्यक्ति के रिश्तेदार (जो उस गाँव का नहीं था) की मौत ने उस दिन तीन से चार बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया था (हालॉंकि ये सभी बच्चे गांव में थे)।

यह हमारे जैसे – बाहरी लोगों के लिए – कुछ पेचीदा है कि अधिकांश माध्यमिक कक्षाओं में छात्रों का लिंग अनुपात असमान है। एक सामान्य कक्षा में 50 लड़कियाँ  और 35 लड़के हो सकते हैं। जनसंख्या का लिंग अनुपात जन्म के समय या कक्षा-1  में नामांकन के समय असमान नहीं है। वास्तव में, उस समय लड़कों की संख्या थोड़ी अधिक हो सकती है। सरकारी स्कूलों में माध्यमिक कक्षाओं में ‘लापता लड़कों’ की इस घटना के कारणों का विश्लेषण करना दिलचस्प है। यहाँ दो कारक सक्रिय हो सकते हैं (और यह प्रधानाध्यापकों, बी आर पी और सी आर सी  के साथ बातचीत से स्पष्ट है) : पहला, लड़कों को निजी स्कूलों में स्थानान्तरित कर दिया गया हो। निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के मामले में ऐसा हुआ होगा जो अपने बेटों की स्कूली शिक्षा के लिए भुगतान करने को तैयार रहते हैं लेकिन बेटियों की शिक्षा के लिए नहीं। इनमें से कुछ स्कूल दूर स्थित हो सकते हैं, और इसलिए माता-पिता की अपनी बेटियों को दूर के स्कूलों में भेजने की अनिच्छा एक अन्य कारक हो सकती है। हालॉंकि, निजी स्कूलों की तरफ लड़कों का यह पलायन माध्यमिक कक्षाओं में असमान लिंगानुपात को पूरी तरह स्पष्ट करने में समर्थ नहीं है। इसका कारण यह है कि कुछ लड़के माध्यमिक कक्षा में पहुँचने पर काम करने के लिए स्कूल से ड्रॉप आउट हो जाते हैं। काम के लिए भी पलायन हो सकता है। अतिरिक्त आय उपार्जन करने की पारिवारिक मजबूरियों के साथ स्कूली शिक्षा के प्रति अरुचि इस समस्या का कारण हो सकती है। इन लड़कों की सटीक गिनती सम्भव नहीं हुई है क्योंकि उनमें से अधिकांश गाँव में मौजूद नहीं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों को माध्यमिक कक्षाओं से लापता लड़कों की इस समस्या का पर्याप्त बोध नहीं है। हालॉंकि, घर का काम सम्भालने की मजबूरी का लड़कियों की उपस्थिति पर कोई गम्भीर असर होता प्रतीत नहीं होता है। कम उम्र में विवाह के उदाहरण हैं, लेकिन यह माध्यमिक स्कूली शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावित नहीं करता है (लेकिन उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में एक मुद्दा हो सकता है)।

यद्यपि, स्कूली शिक्षा के मामलों में माता-पिता की भागीदारी के लिए ढाँचा मौजूद और क्रियाशील हैं (जैसे स्कूल प्रबन्धन समितियां  School Management Committees), यह बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार और सुविधाओं की बेहतरी की दिशा में ले जाती प्रतीत नहीं होती हैं। ऐसा आंशिक रूप से माता-पिता की अपनी जीवन-यापन की खराब स्थितियों के कारण उनकी की ओर से महसूस की गई  आवश्यकता की कमी के कारण हो सकता है। इन इलाकों में, जहाँ ज्यादातर लोग खुले में शौच करते हैं, स्थिर अपशिष्ट जल वाला कोई तालाब या स्कूल के ठीक से काम नहीं करने वाले शौचालय बहुत अधिक सरोकार का कारण नहीं हो सकते हैं। स्थानीय राजनीतिक प्रक्रियाएं किसी स्कूल का निर्माण सम्भव बना सकती हैं, लेकिन यह सुविधाओं और शिक्षण/अधिगम दोनों के सन्दर्भ में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने में समर्थ नहीं हो सकती है।

4. आनन्दशाला कार्यक्रम: हमारे अवलोकन

यह स्पष्ट है कि आनन्दशाला कार्यक्रम के हिस्से के रूप में जिले में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के विभिन्न हितधारकों के साथ अन्तःक्रिया हुई है। हमने जिन स्कूलों का दौरा किया है, उनके प्रधानाध्यापक, शिक्षक, बीआरपी और सीआरसी ने विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम के साथ अंतःक्रिया  की है।

संगठन जिला मुख्यालय पर स्थित संसाधन व्यक्तियों के एक समूह को तैयार करने और उनकी क्षमता विकसित करने में सक्षम है। इन व्यक्तियों को न केवल शिक्षा में सामने आने वाली चुनौतियों बल्कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और अन्य अधिका-रियों को प्रेरित करने में सामने आने वाली कठिनाइयों की भी अच्छी समझ है। वे अपनी नाजुक भूमिका के प्रति संवेदनशील हैं – बाहरी लोगों के रूप में जो शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। जिला स्तर पर ऐसे कर्मियों का होना संगठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण लाभ है।

हस्तक्षेपों ने लक्षित स्कूलों में उपस्थिति दर, जो हस्तक्षेप से पहले लगभग 50% थी, से बढ़ाकर वर्तमान में 70% से अधिक कर दिया है। हस्तक्षेप से पहले, अधिकांश स्कूलों में बच्चे आमतौर पर मध्याह्न भोजन के तुरन्त बाद स्कूल से चले जाते थे और शिक्षक खाली बैठे रहते थे या स्कूल को जल्दी से छोड़ भी देते थे। हालॉंकि, ऐसा लगता है कि हस्तक्षेप ने इस स्थिति को बदल दिया है। उपस्थिति पर यह सकारात्मक प्रभाव यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के लिए किए गए प्रभाव अध्ययन में भी देखा गया है।

हमारे अनुसार, आनन्दशाला के हस्तक्षेप का सबसे उल्लेखनीय हिस्सा सीआरसी और बीआरपी के एक समूह का निर्माण है, जिन्हें स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और ठहराव में सुधार की आवश्यकता और उसके लिए आवश्यक सक्रिय कदमों से अवगत कराया गया है। कार्यक्रम ने 52 सीआरसी (CRCs) और 6 बीआरपी (BRPs) के साथ अन्तःक्रिया की जा चुकी थी। हम उनमें से तीन (दो सीआरसी और एक बीआरपी के साथ) बातचीत करने में सफल रहे। उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों में उन बच्चों के सम्बन्ध में उठाए गए सक्रिय कदमों के बारे में बताया जो अनियमित हैं या जो स्कूल से ड्रॉप आउट होने की जोखिम पर हैं। हम इन अधिकारियों के बीच बदली हुई और प्रतिबद्ध लीडर्स का एक समूह देख सकते थे। आनन्दशाला के साथ उनकी बातचीत और मेल-जोल भी उल्लेखनीय है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने संगठन के रिसोर्स पर्सन्स के साथ एक सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध विकसित कर लिए हैं।

हमने जिन दो प्रधानाध्यापकों के साथ बातचीत की, उन्होंने अपने स्कूलों के प्रबन्धन में उच्च स्तर की दक्षता का प्रदर्शन किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि आनन्दशाला ने उनके और अन्य प्रधानाध्यापकों के साथ एक अच्छा जुड़ाव विकसित कर लिया है, और इसका उनकी कार्यप्रणालियों पर एक सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। कार्यक्रम के तहत शिक्षकों के अधिकांश प्रशिक्षण सीआरसी और बीआरपी के द्वारा क्वेस्ट एलायन्स के संसाधन व्यक्तियों के सहयोग से संचालित किए गए थे। शिक्षकों को ऑन-साइट सहायता भी सरकारी स्कूलों के अधिकारियों के नेतृत्व में प्रदान की जाती है (बाहरी विशेषज्ञों की सहायता से)। यह, इस अर्थ में, अन्य संगठनों द्वारा उपयोग किए जाने वाले मॉडल से कुछ अलग है जो शिक्षकों को सीधे प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रयास करता है। आनन्दशाला का मॉडल टिकाऊ प्रतीत होता है क्योंकि यह शिक्षकों की क्षमता और गुणवत्ता में सुधार के लिए सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का आन्तरिक संसाधन-आधार को उन्नत करेगा।

हालॉंकि, ‘स्थानान्तरण’ की प्रक्रिया के माध्यम से शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करने में सम्प्रेषण की कुछ हानि हो सकती है। यद्यपि, हमने ऐसे शिक्षक देखे हैं जिन्होंने प्रशिक्षण में भाग लिया है और प्रशिक्षण में जो कुछ उन्होंने सीखा है उसे कक्षा में लागू करने का प्रयास करते हैं, हमारी धारणा यह है कि इन शिक्षकों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता में भी पर्याप्त सुधार की गुंजाइश है। कक्षा का बड़ा आकार; कुछ दशकों पहले भारत के इन हिस्सों में स्कूली शिक्षा (और उच्च शिक्षा) की अपेक्षाकृत निम्न गुणवत्ता और इसने जिस तरह से शिक्षकों की शैक्षिक तैयारियों को प्रभावित किया है; और, सेवा-पूर्व प्रशिक्षण की गुणवत्ता कुछ ऐसे कारक हैं जिन्होने शिक्षकों की क्षमता को प्रभावित किया हो सकता है।

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, सामुदायिक चैंपियन्स के रूप में इलाके के स्वयंसेवियों के एक समूह के द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत में समुदाय-जुड़ाव पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। हालॉंकि, पहले चरण के अन्त में, उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई। संगठन के लीडर्स के साथ चर्चा से हमें पता चला कि जब इन सामुदायिक चैंपियनों  की सेवाएं समाप्त कर दी गई तब उनमें कुछ अप्रसन्नता थी। हमने पूर्व सामुदायिक चैंपियनों में से एक का साक्षात्कार लिया जो वर्तमान में एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं। हालॉंकि, आनन्दशाला के साथ काम करने के अनुभव ने शिक्षक बनने में उसकी कोई मदद नहीं की, लेकिन इसने एक शिक्षक के रूप में उसके प्रदर्शन को सक्षम बना रहा है। उसने बताया कि स्कूली शिक्षा में सामने आने वाली अधिकांश चुनौतियों से उसका परिचय आनंदशाला के सामुदायिक चैंपियन के रूप में हो गया था। कुछ अन्य पूर्व सामुदायिक चैंपियंनों ने इसी तरह के शिक्षण पद प्राप्त किए हैं और कुछ अन्य दूसरी विभिन्न नौकरियों के लिए भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उनकी सेवाओं की समाप्ति से पहले संगठन ने उन्हें विभिन्न विषयों पर अनेक प्रकार के प्रशिक्षण की एक शृंखला प्रदान किए हैं, जैसे व्यावहारिक कौशल जो उन्हें नौकरी खोजने में मदद करेंगे।

सामुदायिक-जुड़ाव की वर्तमान स्थिति कमजोर प्रतीत होती है। अब उपस्थिति में सुधार और स्कूल ड्रॉप आउट की संख्या घटाने के लिए अध्ययन कक्ष और स्कूल प्रक्रियाओं में सुधार पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। हमारे अनुसार दो कारणों से ऐसा हो सकता है। पहली है क्वेस्ट एलायन्स जैसे संगठन के लिए समुदायिक लामबन्द कर्त्ताओं/संयोजकों के बिना समुदायों के साथ काम करने में कठिनाई। समुदाय चैंपियनों के पहले समूह को समाप्त करने की आवश्यकता संगठन को ऐसे संयोजकों को फिर से सूचीबद्ध करने से रोकना। दूसरी, यह शिक्षाविदों और पेशेवरों  में प्रचलित एक आम धारणा पर भी आधारित हो सकता है कि कक्षा और स्कूल प्रक्रियाओं में सुधार उपस्थिति और ठहराव के मुद्दे को काफी हद तक कम कर सकता है। हालॉंकि, हमारा मत यह है कि इस इलाके के स्कूलों में बच्चों का ठहराव संरचनात्मक (सामाजिक-आर्थिक और पारिवारिक) कारकों से प्रेरित (मुख्य रूप से) होना जारी है। इसका निहितार्थ यह है कि इस सम्बन्ध में उपलब्धियों और मौजूदा चुनौतियों को आकार देने में इन कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। ऐसे सन्दर्भ में,  कक्षा और स्कूल प्रक्रियाओं में सुधार के माध्यम से उपस्थिति या ठहराव में सुधार की सीमित सम्भावना हो सकती है। यह बच्चों के ठहराव पर आनन्दशाला के सीमित प्रभाव का कारण हो सकता है – प्रभाव विश्लेषण का एक निष्कर्ष जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है।

5. प्रमुख सबक

सामाजिक सन्दर्भ की समझ और आनन्दशाला के काम के आधार पर, हम क्वेस्ट एलायन्स और अन्य गैर सरकारी संगठनों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सबकों पर रोशनी डाल रहे हैं जो सरकारी स्कूलों के साथ मिलकर ‘सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा’ प्रदान करने के लिए कार्य करते हैं।

5.1 सीआरसी और बीआरपी के साथ काम/कार्य करने का मॉडल

हमने उल्लेख किया है कि आनन्दशाला कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सीआरसी और बीआरपी के साथ काम करना और इन अधिकारियों को सहायता प्रदान करना है ताकि वे शिक्षकों को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षण और ऑन-साइट सहायता प्रदान कर सकें। यह देखते हुए कि प्रभावी शिक्षा अधिकारियों का एक समूह विकसित हो गया है, सार्वजनिक शिक्षा में हस्तक्षेप के इस मॉडल से सबक लेने की आवश्यकता है। यद्यपि, हमने अन्य संगठनों द्वारा इन मध्यम स्तर के शिक्षा अधिकारियों के साथ काम करने के प्रयासों को देखा है, लेकिन हमने इस तरह के सफल मॉडल अधिक नहीं देखे हैं। यह क्वेस्ट एलायन्स के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर आनन्दशाला के अगले चरण को डिज़ाइन करने के सन्दर्भ में।अच्छी तरह से काम कर रहे सीआरसी और बीआरपी का एक समूह न केवल अपने अधिकार क्षेत्र में बल्कि आसपास के जिलों में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

हमने ऐसे मामले देखे हैं जहां सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए शिक्षकों के बीच सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों का उपयोग किया जाता है और अन्य शिक्षकों के बीच उन्हें प्रचारित किया जाता है। इसी तरह की रणनीति का उपयोग बीआरपी और सीआरसी में बीच सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों के प्रदर्शन के माध्यम से किया जा सकता है।

5.2 आनन्दशाला का संचालन क्षेत्र बढ़ाने के उपाय

क्वेस्ट एलायन्स इस कार्यक्रम को उचित अनुपात में बढ़ाने की योजना बना रहा है। संगठन ने अन्य ब्लॉकों और अन्य राज्यों में कार्यक्रम का विस्तार करने के लिए भागीदारों(पार्टनर) के माध्यम से काम करने की योजना बना रहा है। उनके कर्मचारी मुख्य प्रशिक्षकों के रूप में बने रहेंगे और भागीदारी के लिए समुदाय में मजबूत आधार वाले अन्य संगठनों की पहचान की जाएगी। रणनीति यह है कि क्वेस्ट एलायन्स की विशेषज्ञता के साथ भागीदार संगठन के क्षेत्र अनुभव को संयोजित किया जाए।

यदि हमारी समझ सही है, तो समस्तीपुर जिले के संकुलो (क्लस्टर्स) और प्रखंडों  (ब्लॉक्स) में अपने स्वयं के विशेषज्ञों द्वारा किए जाने वाले अधिकांश कार्य किसी एक सहयोगी गैर सरकारी संगठन (NGO) को हस्तान्तरित करने की योजना है। यह सम्भव है कि क्वेस्ट एलायन्स विश्वसनीय और साधन संपन्न गैर सरकारी संगठनों की पहचान करने और उनके साथ साझेदारी करने में समर्थ हो। हालॉंकि, इसमें समय लग सकता है और इन साझेदार गैर सरकारी संगठनों में से प्रत्येक के लिए ऐसे विशेषज्ञों का एक समूह तैयार करना कठिन हो सकता है जिनमें ऐसी विश्वसनीयता और संवेदनशीलता मौजूद हो जो उन्हें सीआरसी और बीआरपी, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों से निपटने के लिए विश्वसनीयता और संवेदनशीलता है।  सामान्य तौर पर, शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के साथ काम करने के लिए एक विशेष विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है और पहले वाले  को यह महसूस होना चाहिए कि ऐसे संवाद के माध्यम से उन्हें अकादमिक रूप से कुछ लाभ होगा। सार्वजनिक शिक्षा में कर्मियों के साथ संवाद संवेदनशील तरीके से (उनके व्यक्तिगत अहंकार को ध्यान में रखते हुए) किया जाना चाहिए। इसके अलावा, समय के साथ सरकारी स्कूल में शिक्षक और अन्य अधिकारी बनने वाले लोगों की ओर से एक बढ़ी हुई शैक्षिक उपलब्धि किसी के भी द्वारा देखी जा सकती है, और विशेषज्ञों के समूह जो उनके साथ संवाद कर सकते हैं उन्हें तुलनीय (भले ही उच्च नहीं) योग्यताओं की आवश्यकता हो सकती है, और किसी स्थानीय गैर सरकारी संगठन के लिए इन क्षेत्रों में शिक्षा की समग्र स्थिति और अल्पकालिक वित्तपोषण की अनिश्चितताओं को भी देखते हुए काम के लिए ऐसे लोगों को नियोजित करना इतना आसान नहीं होता है। हमारा मत है कि क्वेस्ट एलायन्स को रणनीति में बदलाव का बारीकी से विश्लेषण करने की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में, पिछले खण्ड की तरह, हमारा सुझाव है कि वे उन बी आर पी और सीआरसी पर ध्यान दें, जिन्होंने उच्च-स्तरीय क्षमता हासिल की हो और आस-पास के क्षेत्रों में बदलाव अभिकर्ता (परिवर्तन एजेंटों) के रूप में या नेटवर्क के माध्यम से और शिक्षा अधिकारियों के एक व्यापक समूह के बीच सूचना-साझाकरण के रूप में प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों के सहयोग से सक्रिय कदम उठाने के लिए तत्परता दर्शाई हो (उपस्थिति में सुधार और स्कूल ड्रॉप आउट  की संख्या घटाने के लिए)।

5.3 सामुदायिक चैंपियनों के संक्रमण को समझने की आवश्यकता

बच्चों की उपस्थिति और ठहराव में सुधार के लिए माता-पिता और समुदायों के साथ काम करने के लिए सामुदायिक स्वयंसेवियों का उपयोग एक ऐसी रणनीति है जिसे भारत में कई गैर सरकारी संगठनों द्वारा अजमाया गया है। (ऐसी रणनीति की आवश्यकता और एक छोटे से प्रयोग का विवरण जो अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के एक जिला संस्थान में संचालित किया गया जिसका विवरण सन्त (संथा) कुमार व अन्य (Santhakumar et al, 2016) में दिया गया है)। यह तर्क दिया गया है कि स्थानीय समुदाय से ऐसे स्वयंसेवी और प्राथमिकता के तौर पर महिला स्वयंसेवियों को पाना अत्यावश्यक है जो अन्य लड़कियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर सकें। हालॉंकि, सामुदायिक स्वयंसेवियों को शामिल करने के इस कार्यक्रम के संक्रमण में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं। यह देखते हुए कि सम्भवतः यह लोग न्यूनतम शैक्षिक उपलब्धियों (कक्षा X और XII) के साथ शुरुआत करते हैं और वह भी उन स्कूलों से जो बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान नहीं करते हैं, गैर-सरकारी संगठनों और फाउंडेशन्स के लिए यह मुश्किल हो सकता है जो आमतौर पर यह सोच कर शिक्षित लोगों को नियुक्त करते हैं कि वे लम्बे समय तक काम करेंगे। दो से तीन साल तक सामुदायिक लामबन्दी के लिए पूर्णकालिक आधार पर काम करने वाले यह स्वयंसेवी अच्छे रोज़गार के लिए आवश्यक उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होंगे या नहीं, यह भी अनिश्चित है। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि इनमें से कुछ स्वयंसेवी अपनी सेवा की समाप्ति तक पहुँचते समय अपने संगठनों से निराश या उनके विरोधी हो सकते हैं और इससे एक कठिन स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए, सामुदायिक स्वयंसेवी शामिल करने के लिए गैर सरकारी संगठनों और फाउंडेशन्स में अनिच्छा पाई जाती है।

इस सम्भावना को देखते हुए, आनन्दशाला कार्यक्रम के हिस्से के रूप में सामुदायिक चैंपियंस के इस्तेमाल के अनुभव पर दृष्टि डालना दिलचस्प हो सकता है। इसने ऐसे लगभग 220 स्वयंसेवियों का इस्तेमाल किया है और इनके साथ सम्पर्क कायम रखे हुए है। इसलिए, हम इन सामुदायिक चैंपियंस के आनन्दशाला कार्यक्रम के साथ काम के और उसके बाद के अनुभव और विचार समझने का सुझाव देते हैं।

5.4 स्कूली शिक्षा तक पहुँच और गुणवत्ता सम्बन्धी चुनौतियों के लिए निरन्तर  जुड़ाव की आवश्यकता

माध्यमिक कक्षाओं में अनियमित उपस्थिति और लड़कों के स्कूल छोड़ने के निरन्तर  चले आ रहे कुछ मुद्दों पर, जैसा कि ‘असन्तुलित लिंगानुपात’ से प्रमाणित है, इस रिपोर्ट में पहले चर्चा की गई है। इन इलाकों में सभी के लिए स्कूली शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इन चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। हालॉंकि, यह सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा सम्भव बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। प्रधानाध्यापकों के साथ हमारी अनौपचारिक चर्चा से संकेत मिलता है कि लगभग 50% या उससे अधिक बच्चे कक्षा-स्तरीय अपेक्षित अधिगम कुशलता हासिल नहीं करते हैं।

प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों का मानना है कि ख़राब प्रदर्शन के लिए किसी विशेष समुदाय को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। हालॉंकि, घर के कामों में व्यस्तता, घर पर अधिगम के वातावरण का अभाव, आदर्शों(role models) का अभाव, माता-पिता की ओर से कम सहायता और प्रेरणा या बिलकुल सहायता और प्रेरणा नहीं होना आदि जैसे विभिन्न कारक भी अधिगम उपलब्धियों का स्तर निर्धारण करते हैं। जबकि कुछ शिक्षकों का मानना है कि बच्चों की रुचि की कमी ख़राब प्रदर्शन का निर्धारक है, कुछ अन्य का मानना ​​​​है कि सभी बच्चे उत्साही और जिज्ञासु होते हैं और यह शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे ऐसी शिक्षा दें जो सभी बच्चों को रुचिकर लगे। शिक्षक कम उपस्थिति को ख़राब प्रदर्शन से जोड़ते हैं और मानते हैं कि उच्च कक्षाओं की तुलना में निम्न कक्षाओं में अधिगम उपलब्धियों में अन्तर  अधिक है।

हालॉंकि, ठहराव के सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और इसे पहला कदम माना जा सकता है, कक्षा-उपयुक्त शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त करना अगली महत्त्वपूर्ण चुनौती है और सम्भवतः इसके लिए भी गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रभावी संवाद की आवश्यकता है। सम्भवतः क्वेस्ट एलायन्स जैसे संगठनों को शिक्षकों की अपर्याप्तता और प्रति कक्षा बच्चों की अधिक संख्या के सम्बन्ध में उपयुक्त रणनीतियों के बारे में सोचने की आवश्यकता है, जो कि ऐसे दो कारक हैं जो गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के लिए अहितकर हैं। जब अधिगम या शिक्षण की गुणवत्ता मुख्य चिन्ता का विषय हो तब सम्भवतः यह आवश्यक है कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के साथ अन्तःक्रिया की अकादमिक गुणवत्ता एक उच्च स्तर पर हो। जिले में प्रारम्भिक बाल शिक्षा (ECE) तक पहुंच और गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में रुकावटें हैं बुनियादी ढाँचे और उपयुक्त शिक्षण/अधिगम सामग्री की कमी और पूर्व-प्राथमिक शिक्षकों की अपर्याप्त क्षमता।

लेखक

वी शांताकुमार, प्रोफ़ेसर, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी

रमा देवी अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की फ़ील्ड प्रैक्टिस टीम से सम्बद्ध रही हैं। वे प्रैक्टिस आर्गेनाइज़ेशन्स और प्रैक्टिस कनेक्ट टीम के बीच समन्वय में सहायता करती हैं। उन्होंने सामाजिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर भारत भर में विभिन्न नागरिक समाज संगठनों के साथ काम किया है।

You can read this article in English here.

Print Friendly, PDF & Email
Scroll to top