Personal Reflections on Practice

स्कूल से अंतर्क्रिया: मेरे बदलाव की दास्तान

जब शिक्षकों से शिक्षा संबंधी चर्चा की जाती है … उनका मानना है की सर्व शिक्षा के लिए बने नियमों ने उनके हाथ बांध दिए हैं। बच्चे का वर्ग उसकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि उसकी उम्र के आधार पर निर्धारित होते हैं, बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आते, नाम कटना आसान नहीं होता , बच्चे को हर वर्ष अगले वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें पास तो हो ही जाता है. जिस कारण शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात है कि “शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही न खो दें । ऐसा न हो जाये कि ‘बस्तियाँ बसती रहें और आदमी उजड़ता चला जाये’ ।

Print Friendly, PDF & Email

स्कूल से अंतर्क्रिया: मेरे बदलाव की दास्तान

लेख: प्रभात कुमार
संपादन: गुरबचन सिंह

जब शिक्षकों से शिक्षा संबंधी चर्चा की जाती है … उनका मानना है की सर्व शिक्षा के लिए बने नियमों ने उनके हाथ बांध दिए हैं। बच्चे का वर्ग उसकी  योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि उसकी उम्र के आधार पर निर्धारित होते हैं, बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आते, नाम कटना आसान नहीं होता , बच्चे को हर वर्ष अगले वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें  पास तो हो ही जाता है. जिस कारण शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात है कि “शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही न खो दें ।  ऐसा न हो जाये कि ‘बस्तियाँ बसती रहें  और आदमी उजड़ता चला जाये

पृष्ठभूमि

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के तक़रीबन 6-7 वर्षों के अनुभव के दौरान न जाने कितने ऐसे किस्से हुए जिन्होंने मेरा समाज के प्रति, शिक्षा के प्रति और बच्चों के प्रति नज़रिया बदल कर रख दिया । यह अवसर तब बना जब मैंने वर्ष 2012 में QUEST Alliance के प्रायोगिक कार्यक्रम ‘स्कूल ड्रॉपआउट प्रिवेंसन पायलट प्रोग्राम’ (SDPP) में भागीदारी की और वहाँ बच्चों, शिक्षकों , हेड मास्टर, और समुदाय को नजदीक से जानने-समझने का मौका मिला । उस समय हम लोग शिक्षा की पहलकदमियों / क्रियान्वयन को ज़मीनी स्तर से देखने का प्रयास कर रहे थे और तब हुए अनुभवों से शिक्षा की जो तस्वीर हमारे सामने आई वो बहुत आशावादी नहीं थी । आमतौर पर शोध कार्यक्रम के जरिये हम जो बदलाव देखना चाहते हैं कोई जरूरी नहीं है कि उसका प्रतिफल उसी रूप में सामने आए । वह बदलाव कई अन्य रूपों में भी दिखता है । शोध में हमारी सीमाएँ बंधी होती है और हम उसी चारदीवारी के भीतर अपने शोध की जाँच करते है, जिसके परिणाम चौंकाने वाले होते हैं । आखिरकार हम लोगों ने जान लिया कि बच्चे स्कूल से क्यों नहीं जुड़ पाते हैं या स्कूल में ठहर नहीं पाते हैं जिसके फलस्वरूप उनकी परफोरमेंस का स्तर नीचा होता है और इसी कारण वे बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते । शोध से मिली सीख व अनुभव के आधार पर वर्ष 2014 के बाद यह कार्यक्रम ‘आनंदशाला कार्यक्रम’ के रूप में विकसित हुआ। जिसके माध्यम से बिहार के समस्तीपुर जिले में 4.00 लाख से अधिक बच्चों तक पहुँच बनाने वाले 996 सरकारी मध्य विद्यालयों को सक्षम बनाया गया है । इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों की स्वतंत्र व रचनात्मक अभिव्यक्ति की क्षमताओं को विकसित करने और स्कूल के प्रति स्वामित्व बढ़ाने के लिए शिक्षकों का क्षमता संवर्धन करना है ताकि बच्चे स्कूल में ‘ठहरें, जुड़े और सीखें’। अपेक्षा है कि बच्चे स्कूल में नियमित रूप से आएं , स्कूल संबंधी गतिविधियों में अधिक जुड़ाव दिखाएँ और उनकी भाषा और संचार की क्षमता में सुधार हो । शिक्षक, आवश्यक ज्ञान और कौशल की प्राप्ति के साथ ही चेंज लीडर के तौर पर काम करें ताकि स्कूल में विद्यार्थियों के लिए मित्रवत माहौल और सकारात्मक शिक्षक-छात्र सम्बन्ध सुनिश्चित हो सके । इसे शिक्षा के क्षेत्र में एक मिशन के रूप में देखा जा रहा है । बिहार राज्य में शिक्षकों और स्कूल संबंधी बुनियादी जरूरतों का अभाव सबसे अधिक शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति व छुट्टी की घंटी तक ठहराव एवं सीखने का स्तर अभी भी नीचे है, जो एक चिंता का विषय है । एक तरफ बिहार का गौरवशाली अतीत है और दूसरी तरफ आज इस राज्य का शैक्षणिक पिछड़ापन है । यह सचमुच कचोटने वाला विरोधाभास है । इन सारी समस्याओं के बावजूद कार्यक्रम के जरिये हमने समस्तीपुर के सरकारी मध्य विद्यालयों को नजदीक से देखने -समझने की कोशिश की है , उनके साथ मिलकर काम किया है और अभी भी इस बात के लिए प्रयासरत हैं कि बिहार में शिक्षा के पिछड़ेपन को कैसे दूर किया जा सकता है ?

हितकारक के साथ सम्बन्ध बनाना

समस्तीपुर जिले में हम लोगों ने जो काम किया है, इससे मैंने व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया कि यह समझना ज़रूरी है कि जो भी हमारे हितकारक हैं, जैसे- बच्चे, हेड मास्टर, शिक्षक, शिक्षा समिति के सदस्य , संकुल समन्वयक व प्रखंड साधन सेवी, प्रखंड एवं जिला के पदाधिकारी एवं समुदाय उनके साथ आपके प्रोफेशनल सम्बन्ध कितने मजबूत है और वे एक दूसरे को नजदीक से कितना समझते हैं । वे एक दूसरे की भावना को सम्मान देते है तभी जाकर एक मजबूत सम्बन्ध की नींव पड़ती है जो आगे एक दूसरे के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलते है और बदलाव की ओर बढ़ते है। यह मेरा मानना है कि आपके जितने अच्छे प्रोफशनल सम्बन्ध होंगे आपके लिए काम उतना ही आसान हो जायेगा । यद्यपि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार एवं गैर सरकारी संस्थान योजना बना कर कार्य कर रहे हैं , लेकिन अभी भी अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे हैं । हम लोग शायद अधिक बल सिद्धांत पर देते है उतना शायद व्यावहारिकता व सम्बन्धों पर , जो एक दूसरे को समझने में मदद करते हैं, कम ध्यान देते है । उन्हें यह लगता है कि जो सरकारी निर्देश मिले है उसका पालन करना है । किसी तरह से काम को पूरा करना है, जो एक आदेश के रूप में होता है । उन्हें कभी भी अहसास नहीं होता कि उनकी इस काम से सोच जुड़ी है, उन्हें कोई अपनत्व नहीं दिखता, जिससे कि वे सिर्फ एक आदेश पालक के रूप में होते है । शायद यह ऊपर से नीचे सभी लोगों की यही स्थिति होती है , सभी अपने–अपने काम को पूरा करने की भागमभाग में रहते है । एक दूसरे को समझना नहीं चाहते जिस कारण उनका व्यवहारिक सम्बन्ध गहरा नहीं होता और हम अपने लक्ष्य से दूर हो जाते है और समय सीमा के अन्दर अपने कार्यों को अंजाम देने में असमर्थ हो जाते हैं ।

शिक्षक एवं बच्चों का सम्बन्ध

मेरा निजी तौर पर मानना है कि जब हम एक विद्यालय के बच्चे के बारे में सोचते हैं तो एक शिक्षक को हमेशा बच्चों के साथ एक मित्र का किरदार अदा करना चाहिए । एक ऐसा मित्र जिससे एक बच्चा अपने सुख-दुःख को बेझिझक साझा कर सके। हर बार हमारे पास उनकी परेशानियों का समाधान नहीं होगा और कई बार हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे, लेकिन सिर्फ परेशानी बांटने से उनका मन हल्का हो जायेगा, जो उन्हें अपनी परेशानी भुलाने में सहायक होगा। कई बार एक बच्चे के मासूम से शांत चेहरे के पीछे ना जाने कितनी परेशानियाँ बवंडर का रूप धारण किए रहती हैं, और उस समय वो उस मदद को ढूँढ़ता है जो इस बवंडर को शांत कर सके, ऐसा मैं अपने अभी तक के अनुभव से कह पा रहा हूँ | विद्यालय में भी ऐसा कई बार हुआ जब घर की निजी परेशानियों ने बच्चों की क्षमता पर प्रभाव डाला और यह हमें सिर्फ तभी पता चल सका जब उन्होंने हम पर एक मित्र की तरह भरोसा किया और अपनी मुश्किलें हमसे साझा कीं।

शिक्षक एवं प्रधानाध्यापक की परिस्थितियाँ

यदि हम शिक्षक और हेड मास्टर की स्कूली दिनचर्या पर गौर करें तो लगता है कि वे अपनी व्यस्तता एवं परेशानियाँ से इस कदर जकड़े रहते है कि लगता है कि जैसे उनके चेहरे पर मुस्कान सदा के लिए गायब हो गयी हो, और ऐसा क्यों न हो, स्कूल की शिक्षण व्यवस्था जो दुरुस्त करनी है । जाहिर है हम एक आदर्श जगत में नहीं रहते हैं, शिक्षक भी मनुष्य होते जो कभी–कभी अपना कार्य उत्कृष्टता से नहीं प्रदर्शित नहीं कर पाते, यदि यह बात उन्हें पता हो, तो सुधार करने के लिए शायद जरा-सी सहायता की जरूरत पड़ेगी। लेकिन समस्या तब होती है जब शिक्षक को पता नहीं चलता कि वे बेहतर कर सकते हैं। ऐसे में हम उनकी मन: स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं और उनकी महत्ता को बढ़ावा देते हुए बदलाव करने की कोशिश करते है । शिक्षक को जब लगता है कि उन्हें भी कोई सुनने व समझने वाला है उनकी भावनाओं की कद्र की जा रही है, तो यही प्रवेश द्वार होता है उनके साथ जुड़ने का। कई ऐसे विद्यालयों के उदाहरण है जहाँ कभी नकारात्मक बात करने वाले शिक्षक थे, आज वहाँ सकारात्मक सोच के साथ बदलाव की बयार बह रही है, रचनात्मक परिवर्तन हो रहे हैं ।

प्रधानाध्यापक नेतृत्व से बदलाव हुआ संभव

विभा जी मध्य विद्यालय दलसिंहसराय (समस्तीपुर) की प्रधानाध्यापिका हैं। जब उनसे हमारी मुलाकात हुई तो वह सरकारी काम के बोझ और विद्यालय को व्यवस्थित करने में ही अपने को लगाए रखने का दुखड़ा सुनातीं रहतीं । ऐसे में उनसे किसी तरह के नवाचार या बदलाव के बारे में बात करना कही से संभव नहीं दिखता। लेकिन मुझे लगता था कि यह शिक्षिका विद्यालय में कुछ बदलाव तो करना चाहती है पर कुछ समस्याओं के कारण अपनी सोच को दबा देती है । उनमें सरकारी तंत्र के असहयोगी रवैये से नकारात्मक सोच पैदा हो गई थी, उन्हें लगता था की कोई बदलाव नहीं होने वाला है। मैं लगातार उनके सम्पर्क में रहा । शायद वह दिन मेरे लिए भी सीख का दिन था जब मैं उन्हें बातों से टटोलते हुए उनके साथ विद्यालय परिसर में घूम रहा था । परिसर के एक वीरान कोने में उनके पैर रुकते हैं और बोलती हैं “यह कोना विद्यालय की खूबसूरती में बाधक है !” बस क्या था मेरे लिए यह वह समय था कि मैं उनसे बदलाव के बारे में कुछ बात करूँ। बस बात शुरू होती है, उन्हें भी लग रहा था कि कोई मेरी बात को सुन रहा है, फिर क्या था शुरु होती है बदलाव को लेकर चर्चा, समस्या के साथ समाधान, उस वीरान कोने को किचिन गार्डन के रूप में विकसित करना, खुला पुस्तकालय, हर वर्ग में गतिविधि बोर्ड बनाना और विद्यालय को स्वच्छ बनाने के प्रयास करना । कुछ ही समय में यह विद्यालय बदला– बदला-सा दिखने लगा । विद्यालय का वह कोना जो सुनसान लगता था वहाँ एक सुन्दर किचेन गार्डन है जहाँ तरह-तरह की हरी सब्जियां उगाई जा रही हैं, जिसमें बच्चे खुद से पौधे लगाने व सिंचाई करने का काम कर रहे हैं, जो कि गाँधी जी की नई तालीम की याद ताजा करती है। अब यहाँ बच्चे कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं और आज यह विद्यालय प्रखंड में मिशाल पेश कर रहा है। इसी तरह से विद्यालय में गतिविधि बोर्ड, खुला पुस्तकालय एवं स्वच्छता ने विद्यालय को आकर्षक बना दिया जिससे बच्चों की उपस्थिति तो बढ़ी ही है, साथ–साथ बच्चों का ठहराव व अंतिम घंटी आकर्षक बन गई है । वर्ष 2017 में इस विद्यालय को नवाचार कार्यों के लिए ‘आनंदशाला शिक्षा रत्न पुरस्कार’ एवं वर्ष 2018 में राज्य स्तर पर “स्वच्छता पुरस्कार” से नवाज़ा गया। यह विद्यालय जिले को गौरवान्वित कर रहा है । ऐसे कई विद्यालय हैं जहाँ के शिक्षक व हेडमास्टर के साथ व्यवहारिक संबंधों से विद्यालय को नयी दिशा मिल रही है ।

चेंजलीडर का समुदाय से जुड़ाव

बदलाव की इस कड़ी में कुछ चयनित चेंज लीडर, खासकर संकुल समन्वयक व प्रखंड साधनसेवियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिनके व्यावहारिक सम्बन्ध ने समुदाय को विद्यालय से जोड़ कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया । शिक्षा विभाग भी मान रहा है कि अभी समुदाय और विद्यालय का सम्बन्ध अच्छा नहीं है, अभी दूरियां बरक़रार है । विभागीय निर्देश के बावजूद मासिक शिक्षक-अभिभावक गोष्ठी सफल नहीं हो पा रही है ।

मैं इन बिन्दुओं को उजागर करना चाहता हूँ कि क्या सिर्फ विभागीय निर्देश या पत्र निर्गत होने मात्र से लोग विद्यालय से जुड़ जायेंगे, शायद कभी नहीं, आवश्यकता है एक दूसरे को समझने की। इसका अनुभव हुआ तब हुआ जब चेंज लीडर ने समुदाय से सीधा संपर्क कर विद्यालय में अपनी सहभागिता का महत्त्व समझा ।

जैसा हम सभी जानते है की आज के परिप्रेक्ष्य में शैक्षणिक वातावरण निर्माण एवं विश्वसनीयता बनाने में केवल सरकारी या गैर सरकारी संस्थान के प्रयास ही नहीं बल्कि आम लोगों का सहयोग भी आवश्यक है। जब चेंज लीडर को गगन सेट्टी जैसे एक्टिविस्ट का साथ व परामर्श मिला तो उनकी सक्रियता बढ़ गयी। विद्यालय के प्रति समाज में जो नकारात्मक सोच बनी हुई थी वह धीरे-धीरे बदलने लगी। चेंज लीडर के सुविचारित व्यावहारिक प्रयोगों ने विद्यालय एवं समुदाय के लिए एक साथ मिलकर काम करने की जो पिच तैयार की वह सचमुच काबिलेतारीफ है । मसलन विद्यालय में पुस्तकालय बनाने की बात हो या बच्चों के कौशल विकास के लिए विद्यालय में सिलाई मशीन या कंप्यूटर जैसे उपकरण को स्थापित करने की पहल हो या बच्चों के लिए साइकिल स्टैंड बनाना हो या चिल्ड्रेन बैंक आदि में समुदाय द्वारा आर्थिक एवं शारीरिक सहयोग प्राप्त करना हो, इन सब के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई है ।

कुछ चिन्तन के पल

सर्व शिक्षा का अर्थ है सभी को शिक्षा के साथ जोड़ना और समाज के सभी वर्ग स्वयं इसकी आवश्यकता को समझें। परन्तु खेद है कि जनसधारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझ पा रहा है इस समस्या के उपचार के लिए सरकार एवं गैर सरकारी संस्थान मिलकर कार्य कर रहे हैं पर परिणाम अभी भी संतोषजनक नहीं है । एक चुनौती बनी हुई है, वह है कि किसी समस्या के उपचार के लिए समस्या के मूल तक जाना पड़ता है। प्रश्न उठता है कि आखिर कैसे जाया जाये ? इसका उत्तर, माता–पिता जिनका अपनी संतान के लिए उत्तरदायित्व होता है, बताते है कि हमारे पास न तो समय है और न ही हम उपचार को जानते है । क्योंकि माता–पिता अशिक्षित है, वे बच्चों की पढ़ाई में मदद नहीं कर सकते, दैनिक जीवन की आधारभूत सुविधाओं के अभाव की पूर्ति करने में ही असमर्थ हैं, भला इस दिशा में अपने बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में क्या भागीदारी निभाएंगे। सर्व शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में बच्चों के अभिभावकों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि चाहे कितनी ही अच्छी योजना क्यों न बन जाये, जब तक अभिभावक की भागीदारी नहीं होगी तब तक योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती । कुछ माता–पिता सामग्री या भोजन ,छात्रवृति, पोशाक राशि आदि के लिए ही नामांकन करवाते है । उनके बच्चों की उपस्थिति काफी दयनीय होती है । इनका पाठशाला में आने के लिए केवल सामान का ही आकर्षण होता है, पढ़ाई से इनका वास्ता दूर- दूर तक नहीं दिखता । बच्चों की शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उतरदायित्व अभिभावक के साथ–साथ शिक्षक वर्ग का भी उतना ही है । जब शिक्षकों से शिक्षा संबंधी चर्चा की जाती है तो वे इस समस्या से अपना हाथ खींच लेते है । उनका मानना है की सर्व शिक्षा के लिए बने नियमों ने उनके हाथ बाँध दिए हैं। बच्चे का वर्ग उसकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि उसकी उम्र के आधार पर निर्धारित होते हैं, बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आते, नाम कटना आसान नहीं होता , बच्चे को हर वर्ष अगले वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें पास तो हो ही जाता है, जिस कारण शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है । ध्यान देने योग्य बात है कि “शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही ना खो दें । ऐसा न हो जाये कि ‘बस्तियाँ बसती रहें और आदमी उजड़ता चला जाये’ ।

हमारी भूमिका

अंत में हम अपनी भूमिका की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं– चलो दीप जलायें जहाँ आज भी अँधेरा है। वस्तुतः हमारी भूमिका होती है उत्प्रेरक एवं सहजकर्ता के रूप में, खासकर ऐसे लोगों के बीच जो नकारात्मक सोच के साथ अपनी कार्य शैली को मद्धिम गति से अंजाम देने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं जिन्हें लक्ष्य की प्राप्ति में कई वर्ष लग सकते हैं ।

वैसे लोगों से सम्पर्क स्थापित कर बीच की कड़ी के रूप में कंधे से कंधा मिलाकर योजनाबद्ध तरीकों से काम को आसान एवं उपयोगी बनाने में सहयोग देना, नये–नये नवाचार को लेकर विचार-विमर्श करना, अच्छे अभ्यासों को बढ़ावा देना व प्रेरित करना, आनंदशाला के मॉडल को सहज रूप से विद्यालय में लागू करने में मदद करना जो बच्चे की उपस्थिति एवं ठहराव में मदद करता है ।

समय-समय पर विद्यालयों का भ्रमण एवं शिक्षकों के साथ मिलकर योजना बनाना एवं बेहतर कार्य के लिए सुझाव देना व लेना जिसके आधार पर उनके कौशल विकास या क्षमता वर्धन के लिए प्रशिक्षण आयोजित करना । प्रशिक्षण में एक सहज कर्ता के रूप में उनके साथ मिलकर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शामिल होना । संकुल समन्वयकों की मासिक बैठक / संकुल पर आयोजित शिक्षक कार्यशाला में एक सहजकर्ता के रूप में एक दूसरे के प्रयास, चुनौतियों, अच्छे अभ्यास की चर्चा एवं मिलकर अगले माह की रणनीतियाँ तय करना आदि । इन प्रयासों से आगे की दिशा निर्धारित होती है ।

महीने में एक गुरु गोष्ठी का भी आयोजन किया जाता है, जहाँ प्रखंड के सभी प्रधानाध्यापक इकट्ठे होते है इसमें शैक्षणिक एवं प्रशासनिक वार्तालाप होते हैं । यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ एक साथ प्रखंड के सभी प्रधानाध्यापक अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को साझा करते हैं और हम लोग कुछ नये तरीकों पर विचार करते हैं । कुछ तकनीकी उपकरणों के माध्यम से बताने की कोशिश की जाती है कि आप भी कुछ बेहतर प्रयास अपने विद्यालय में कर सकते हैं, जिनसे बच्चों को सीधा लाभ मिल सकता है ।

विद्यालय के बच्चों के साथ मिलकर कार्य करना, खासकर बाल संसद में उनके कौशल क्षमतावर्धन के माध्यम से उनमे नेतृत्व विकास को जागृत करने का प्रयास किया जाता है , नये-नये टिप्स दिए जाते हैं ।

चेंज प्रोजेक्ट की परिकल्पना को लागू करने में सहयोग एवं मार्गदर्शन देना जिससे बच्चे में आत्मबल बढ़ता है और वे किसी भी कार्य को अंजाम देने में सक्षम हो पाते है ।

समुदाय के साथ रिश्ता बनाने में भी शिक्षकों के साथ मिलकर आगे बढ़ने का प्रयास करना व शिक्षक अभिभावक गोष्ठी के एक सहजकर्ता के रूप में उपस्थित होना एवं सीधा रूबरू होना तथा उनकी प्रतिक्रियाओं पर शिक्षक के साथ मिलकर चिंतन करना एवं आगे की रणनीतियाँ बनाना ।

मैं अपनी लेखनी को यही रोकना चाहूँगा – हम सभी के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक चीज होती है। इससे  हमारा ज्ञान बढ़ता है और जीने का तरीका, लोगों से बोलचाल का तरीका बेहतर होता है व  समाज में प्रतिष्ठा मिलती है।

“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया को बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं” – नेल्सन मंडेला

लेखक

प्रभात कुमार: एम.ए. मनोविज्ञान , एम.ए. सामाजिक कार्य अनुभव: 12 वर्ष (समाजिक कार्य) 6 वर्ष (आनंदशाला कार्यक्रम )

Print Friendly, PDF & Email

1 comment on “स्कूल से अंतर्क्रिया: मेरे बदलाव की दास्तान

  1. सीमा says:

    आपके विचार और अनुभव बिल्कुल सही है और बदलाव लाना जरूरी भी है और संभव भी लेकिन बदलाव कैसे होगा सबसे पहले तो आर्थिक मदद चाहिए उसके लिए सरकार बहुत खर्च कर रही है पर ये ख़र्च सही जगह हो रहा है या नही इसकी परवाह किसी को नही जिस विद्यालय में मात्र 2 या 4 बच्चे है उनके लिए बजट देते है जबकि वहाँ आवश्यकता नही झा छात्र संख्या ज्यादा है वह कोई सुविधा दनही दी जाती कुछ न चुने विद्यालय ही ये अनुदान हर वर्ष प्राप्त करते है लेकिन जहाँ के अद्ययापक आफिस के चक्कर नही लगा सकते वहाँ छात्र संख्या है नही है इससे सरकार को कोई सरोकार नही पहले सर्वे कीजिये कहाँ ज्यादा छात्र लाभान्वित होंगे फिर बताइये बजट कहाँ जाना है बहुत से अद्ययापक विद्यालयों में अच्छा काम कर रहे है उनके पास अपने छात्रों से ही समय नही वे उन्हें बेहतर बनाने में दिन रात लगे रहते है उनकी सुध भी तो आप लीजिये और वह और सुविधा दीजिये के और बेहतर कर सकें

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Scroll to top