Personal Reflections on Practice

स्कूल से अंतर्क्रिया: मेरे बदलाव की दास्तान

जब शिक्षकों से शिक्षा संबंधी चर्चा की जाती है … उनका मानना है की सर्व शिक्षा के लिए बने नियमों ने उनके हाथ बांध दिए हैं। बच्चे का वर्ग उसकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि उसकी उम्र के आधार पर निर्धारित होते हैं, बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आते, नाम कटना आसान नहीं होता , बच्चे को हर वर्ष अगले वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें पास तो हो ही जाता है. जिस कारण शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात है कि “शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही न खो दें । ऐसा न हो जाये कि ‘बस्तियाँ बसती रहें और आदमी उजड़ता चला जाये’ ।

आनंदशाला के जतन से विद्यालय के बदलाव का सफ़र

हम सभी जानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में लड़का-लड़की हमेशा अलग-अलग बैठते हैं , अलग–अलग खेलते है साथ में गतिविधि कराना एक चुनौती रहती है। एक दिन एक विद्यालय में गया तो मेरी आँखे खुली की खुली रह गई, काफी मित्रतापूर्ण व्यवहार से पंचमी वर्ग की लड़की–लड़का मिलकर फुटबॉल खेल रहे थे । बच्चों को हम कैसी शिक्षा एवं वातावरण देते है इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। चुनौतियों को हल करने के लिए उसके कैरेक्टर को महसूस करते हुए चुनौतियों की तह तक जाना और कैरेक्टर की बातों को महत्त्व देते हुए अपनी बातों को रखने पर व्यक्ति को समझाना सरल हो जाता है ।

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